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सोतैली मां भाग-2

4 अप्रैल 2022

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हरीश की मां की लाश के पास बेटे सभी लोग बहुत ही दुखी थे। कुछ लोग उसके गुणों की चर्चा कर रहे थे। वह एक बहुत अच्छी सीधी-साधी औरत थी जिसने कभी भी किसी से बुरे शब्द नहीं कहें सभी लोग रात के तारे गिन रहे थे कि अब सुबह हो जिससे कि इसकी लाश अंतिम संस्कार किया जा सके। 

उस समय लोगों में यह भ्रम रहता था कि यदि रात में किसी भी मनुष्य की लाश अकेली रह जाये तो वह आत्मा बंधक जिंदा हो सकती है। इसलिए सभी लोग इकट्ठे होकर उसके पास ही बैठे रहते थे। जिन लोगों को डर लगता था वे लोग भय के कारण लाश के नजदीक नहीं आते थे। वे लोग अपने घर ही छुपकर बैठ जाते थे। उन्हें एक जीवित मनुष्य से डर नहीं लगता लेकिन एक मृत शरीर से इतनी दूर भागते हैं कि वह उसे खा जायेगा।

मनुष्य का जीवन बहुत ही स्वार्थी होता है एक मनुष्य किसी मनुष्य के जीवित रहने पर उसको बहुत प्यार करता है और हमेशा उस पर जी जान देने की बातें करता है लेकिन जब उस मनुष्य से उसकी आत्मा स्थान छोड़ दें तो वह मनुष्य उस मृत शरीर के साथ एक मिनट नहीं रुकना चाहता है क्योंकि जब वह जीवित था तो उसको उससे मतलब था लेकिन जब वह आज मर गया है तो वह उसके द्वारा कोई भी काम सिद्ध नहीं कर सकता इसलिए उसके द्वारा उसका साथ छोड़ दिया जाता है। जिस प्रकार एक मशीनरी को काम करते रहने पर बहुत ही साथ संवारकर रखा जाता है जब वह खराब हो जाती है उसे उस समय तक प्रयोग में लेता रहता है जब तक कि वह पूरी तरह काम ना कर सके। इसके पश्चात जब वह पूरी तरह से खराब हो जाती है और मनुष्य के काम करने योग्य ना रहे तो उसे कबाड़े में डालकर बेच दिया जाता है।

इसी प्रकार एक मनुष्य में सबसे अधिक महत्व उसकी सांसों का होता है जब तक मनुष्य की सांस चलती रहती है तब तक वह मनुष्य को बहुत ही प्यार से रखता है सांसें बीत जाने के बाद उस शरीर का कोई महत्व नहीं रहता और उसे कबाड़े के रूप में अग्नि को सौंप दिया जाता है जिससे कि उस शरीर की दुर्गति ना हो सके।

रात का समय जो सोने के बाद इतना जल्दी निकल जाता है । आज वह बहुत ही धीमी गति हशसे चलने लगा है क्या? कुछ लोग बैठे-बैठे ये बात सोच रहे थे। लेकिन रात को जागकर गुजारना उन सभी लोगों की मजबूरी थी। सभी लोग अपनी रैना गुजारने के लिए बैठे-बैठे बातें करते रहे। आज क्या रात है जो हमें एक मृत व्यक्ति की लाश की रखवाली करन पड़ रही है। कुछ समय बाद धीरे-धीरे उजाला होने लगा सभी लोग शौचादि के लिए बारी बारी से जाकर वापस लौटने लगे सारे गांव में लोगों के मन में शौक था गया सबको इस बात का दुख था कि वह एक छोटे से बालक को छोड़कर उसकी जिंदगी को कैसे अकेला कर गई‌। उस समय के जीवन का कैसा अनुभव रहा होगा जब किसी के घर में मौत हो जाने पर उसके अंतिम संस्कार तक खाना नहीं बनता था।

गांव के सभी लोग उसके अंतिम संस्कार के लिए जल्दी मचाने लगे क्योंकि गांव के सभी लोगों के घरों में खाना नहीं बना था और उनके बच्चे ज्यादा देर भूखे नहीं रह सकते थे। इसके अलावा सारी रात रखी हुई लाश में हवा भर जाने से वह फूल जाती है जिससे उसके अंतिम संस्कार में ज्यादा दिक्कत आती है।

सुबह जब सभी लोग इकट्ठे हुए तो हरीश की नींद खुली जिसको तुरंत बिस्तर से उठाकर लाया गया। उसे जागते ही रोना शुरू किया शायद उसे भूख लग रही थी। एक औरत ने अपनी गोद में लेकर उसे खिलाना शुरू किया। उसके बाद उसकी भूख मिटाने के लिए उसे पानी पिलाया गया जिससे वह कुछ समय के लिए शांत हो गया। कुछ लोग जब उसकी मां को अंतिम संस्कार के लिए उठाकर लेकर जाने लगे तो उसके बेटे को अंतिम दर्शन के लिए लाया गया। जैसे ही हरीश ने अपनी मां का मुंह देखा वह उछलकर उसके ऊपर जाकर उसको पकड़ने लगा। 

आज उसकी मां उसके हाथों को नहीं पकड़ रही थी। वह अपना मुंह बचाने की कोशिश नहीं कर रही थी। हरीश बहुत खुश हो रहा था। वह उसके साथ खेलना चाह रहा था लेकिन उसे क्या पता कि आज के बाद वह मां का चेहरा नहीं देख पायेगा। आज इसका अंतिम दिन था। जितना खेलना है खेल  लो।  लेकिन वह इस बात को कैसे समझ पाता। कि वह इस दुनिया से हमेशा के लिए अलविदा हो गई है।

बहुत अन्याय होता है ऐसे बच्चों के साथ जिनके माता-पिता में से कोई भी बचपन में छोड़कर चला जाता है। उन बच्चों का जीवन बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण होता है जो अपने माता-पिता के सुख से बचपन में दूर हो जाते हैं। एक गृहस्थी में माता और पिता दोनों में से कोई एक चला जाता है तो उस समय एक बालक को जीवन यापन करना बहुत ही कठिन हो जाता है। लेकिन कुछ किया भी नहीं जा सकता।

यह उसकी किस्मत के खेल कह सकते हैं। या फिर उसकी गरीबी की सजा जिसके कारण उन्हें उचित पोषण नहीं मिल पाता है और वे बीमारी का शिकार होकर अपने जीवन का अंत कर लेते हैं।

अब हरीश की मां को उसके अंतिम संस्कार के लिए शमशान घाट में ले जाया गया पूरे गांव ने मिलकर शोक में उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया। सबके मन में बहुत दुख हो रहा था कि उसके बच्चे का पालन बिना मां के कैसे हो पायेगा।

अंतिम संस्कार के बाद सभी लोगों ने बारह दिन तक हरीश के परिवार वालों को सांत्वना दी। पूरे बारह दिन तक लोगों ने उनके घर रहकर उसके दुख को कम करने की कोशिश की लेकिन उसका दुख तो उसके दिल का दर्द था जिसे वह बयान नहीं कर सकता था उसने अपने मन में संतुष्टि की और उसने अपने बेटे के विषय में सोचा। 

बारह दिन के बाद लोगों और रिश्तेदारों ने उसके यहां से आना जाना कम कर दिया अब उसे भी काम धंधे से बैठे हुए काफी दिन हो गये थे। उसने भी काम धंधे पर जाना शुरू किया अब हरीश का लालन पालन उसकी दादी के द्वारा किया जा रहा था। जो उसका बहुत क्या रखने लगी।

हरीश के दो साल का होने तक उसकी दादी ने अच्छी तरह लालन पालन किया। इसके बाद उसकी उम्र लगातार बढ़ती जा रही थी। बढ़ती उम्र के साथ उसके हाथ -पैर जबाव दे रहे थे। वह पहले जैसी शक्ति के साथ काम नहीं कर सकती थी। इसलिए हरीश के पिताजी बहुत चिंतित रहते थे।

दूसरी शादी करने के लिए हरीश के पिता का मन नहीं था। वह दूसरी शादी इसलिए करना नहीं चाहता था क्योंकि उसने अपने बच्चे को सोतैली मां के व्यवहार का सामना ना करना पडे। उसने सौतेली मां के व्यवहार के विषय में किस्सा सुन रखें थे जिसमें रूप बसन्त का किस्सा गांवों में काफी प्रसिद्ध था। जिसमें सोतैली मां के द्वारा अपने सोतैले बेटे को मरवा दिया था।

अब हरीश के पिताजी करें तो क्या करें इधर मां की बढ़ती उम्र का तकाजा और उधर उसके एक मासूम पुत्र का लालन-पालन। अपनी पत्नी के इलाज के लिए उसने बहुत कर्ज कर लिया था। उसे चुकाने के लिए उसे मेहनत मजदूरी करके रूपया कमाना भी जरूरी था।

अब हरीश के पिताजी दिन में काम करने के लिए जाते थे और उसके बाद सुबह शाम घर में काम करते थे। उसकी माता-पिता खेतों का काम मजदूरों के साथ मिलकर निपटा लेते थे। दो-तीन साल तक इस तरह हरीश के पिताजी ने अपना जीवन अथक परिश्रम के द्वारा निकाल लिया लेकिन वह हमेशा चिंतित रहता था क्योंकि जब वह काम पर जाता था तो उसे अपने पुत्र की चिंता हमेशा परेशान करती थी। वह बुढ़ापे में अपने माता-पिता की हालत के लिए चिंतित था कि जिस उम्र में उन्हें आराम की जरूरत है आज वे एक जवान आदमी के बराबर काम का भार उठा रहे हैं। उनके जीवन में उन्हें कब शांति मिलेगी। इसलिए गांव के कुछ लोगों ने उसे दूसरी पत्नी लाने की सलाह दी जिससे कि वह घर को संभाल सके। हरीश के पिताजी इस बात के लिए लगातार मना कर रहे थे। लेकिन अब उसकी और उसके माता पिता की हालत को देखते हुए दूसरी पत्नी लाने के लिए दबाव बढ़ाने लगे। हरीश के पिताजी ने ज्यादा दबाव के कारण अपनी परिस्थितियों से समझौता करना पडा। वह इस बात के लिए तैयार होने लगा।

"जीवन में हिम्मत करके, कुछ समझौते करने होते।

कुछ संकट ऐसे होते, हिम्मत से पार करने होते।

हिम्मत करके कुछ लोगों ने, तूफानों से टक्कर ले डाली।

गिरि गुरूर को तोड दिया,वह हस्ती थी हिम्मत वाली।

सागर की लहरों से अडकर, कुछ लोग किनारे आ पहुंचे।

हिम्मत करके कुछ लोग यहां,धरती से गगन पर जा पहुंचे।

हिम्मत के बलबूते पर,मंगल पर परचम लहराया।

वे लोग कभी भी डरे नहीं,जीत का झंडा फहराया।

डर के आगे जीत है, हिम्मत धारण करनी होगी।

जीत आगाज सफलता का, लेकिन हिम्मत तुझको करनी होगी।

हरीश के पिताजी ने सभी रिश्तेदारों और कुछ गांव के लोगों के कहने पर यह बात स्वीकार कर ली कि वह दूसरी पत्नी लाने के लिए तैयार हैं जिससे कि उसके बच्चे और माता-पिता का सही से पालन-पोषण हो सके। उसने अपने रिश्तेदारों और कुछ मित्रों को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह उसके लिए कोई ऐसी लड़की देख ले जिसका पति किसी दुर्घटना में खत्म हो गया हो या कोई ऐसी विधवा जो अपने जीवन की शुरुआत करने से पहले ही उसके पति की मौत हो गई हो। उसके एक रिश्तेदार को ऐसी ही एक लड़की जो उसके गांव से लगभग तीन सौ किलोमीटर दूर थी जिसकी उम्र भी हरीश के पिताजी से लगभग मिलती-जुलती थी।  उसके लिए हरीश के पिताजी से बात की गई। हरीश का पिताजी उसे अपनाने के लिए राजी हो गया। उसने उस लड़की को अपनी पत्नी बनाने के लिए स्वीकार कर लिया। जब लड़की के घर वालों से बात की तो उन्होंने लड़का और उसके परिवार को देखने की इच्छा रखी। 

एक दिन लड़की वाले उसे देखने के लिए आ गये। हरीश के पिताजी लड़की वालों को पसंद आ गये। उन्होंने इस रिश्ते के लिए हां कर दी। कुछ दिन बाद उसको लाने के लिए योजना बनाई गई ‌‌। हरीश के पिताजी ने गांव के कुछ चुनिंदा लोगों को साथ लेकर उसे लेने के लिए चले गए। लड़की के परिवार वालों ने सभी अतिथियों का भव्य स्वागत और सत्कार किया इसके पश्चात उन्होंने अपनी लड़की माया को विदा कर दिया।

हरीश के पिताजी उसको लेकर घर पर आया। उनके मन में थोडी खुशी थी लेकिन उसकी पत्नी का खोने का दुख भी था। हरीश के पिताजी ने माया को हरीश को संभाला कर बोला कि यह तुम्हारा बेटा है। इसको अपनी कोख से जन्मा पुत्र ही समझना क्योंकि मेरे बेटे की मां को उसके बचपन में ही भगवान ने उठा लिया था। माया ने उसे अपनी गोद में लेकर चूमा और उसे अपने बेटे जैसा प्यार देकर उसे जिंदगी भर खुश रखने की बातें कहने लगी। 

हरीश बेचारा क्या जाने कि उसकी असली मां कौन है। अभी वह पांच वर्ष का ही हुआ था और बचपन से ही उसको उसके दादा दादी ने पाला। वह सही से अपनी मां का चेहरा भी नहीं जान पाया था जिससे कि वह अपनी असली मां को पहचान सके। उसने अपनी जिंदगी की शुरुआत ही कष्टों कै साथ की थी । जन्म लेने के साथ ही उसके सिर से उसकी मां का साया हट गया था। आज वह अपनी मां की गोद में बैठकर बहुत ही प्रसन्न था। उसने अपने पिताजी से पूछा पापा हमारी मां इतने दिनों से कहां गई थी। 

हरीश के पिताजी को अपनी पत्नी की याद आ गई उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे। उसके आंसू देखते ही माया ने कहा आप इस तरह हताश क्यों होते हैं।उसके पिताजी ने कहा यह तुम्हारी  मां मुझसे गुस्सा होकर चली गई थी। आज बड़ी मुश्किल से लेकर आया हूं। इस तरह की बात सुनकर हरीश मां की तरफ मुंह करके हंसने लगा। 

मां ने उसे अपनी गोदी में रखकर उसके मुंह को चूमा। आज वह अबोध बालक माया को अपनी ही मां समझ रहा था। उसने उसे अपनी जन्म देने वाली मां स्वीकार कर लिया।

मां की गोद से उठकर हरीश भागकर दोस्तों के साथ खेलने चला गया। वह बड़ा नटखट हो गया था क्योंकि उसकी दादी काम में व्यस्त रहती थी जिससे वह दादी से नजरें चुराकर भाग जाता था और सारे दिन बच्चों के साथ खेलने में व्यस्त रहता था।

माया ने आकर अपने घर को इस तरह संभाला कि उसके सास ससुर को अब फुर्सत मिल जाती थी। वह घर  और खेतों पर खूब मेहनत करती थी। उसने हरीश को भी अपनी मां की कमी ना खलने दी। वह हमेशा अपनी मां के साथ खेलता रहता था। माया भी उसे बहुत प्यार करने लगी थी। हरीश के पिताजी घर से बाहर मेहनत मजदूरी करने लगे थे क्योंकि उन्होंने अपनी पहली पत्नी की बीमारी के लिए बहुत कर्ज ले लिया था जिसके कारण उसके घर में बहुत तंगी हो गई थी। उसके कर्ज का ब्याज बुरी तरह बढ़ने लगा था। अब कुछ कर्ज दार अपने रूपया के लिए तंग करने लगे थे। 

हरीश के पिताजी अपनी परिस्थितियों को देखते हुए बहुत दुखी थे। लेकिन अब कर्जदारों ने उसे दुखी करना शुरू कर दिया इसलिए वे बाहर जाकर कमाने लगे थे। जिससे कि कुछ कर्ज को चुका सके। माया भी अब हरीश के साथ उचित व्यवहार के साथ रहती थी। वह अपने बच्चे की तरह उस पर तनिक भी आंच नहीं आने देती थी। उसने हरीश को कुछ नियंत्रण में करके बाहर जाने से भी रोक लिया था।

दीपावली का त्यौहार था हरीश के पिताजी इस बार बाहर से कमाकर आ गये थे। चारों तरफ दीपावली की खुशियां के मध्य हरीश के पिता ने माया से कहा कि हमें हरीश को विद्यालय में पढ़ाई के लिए भेज देना चाहिए जिससे कि उसके बच्चे कुछ सीख ले। और जीवन में कुछ कर लें।

माया:- हां जी हमें इसे स्कूल में पढ़ाई के लिए प्रवेश दिला देना चाहिए। यह सारे दिन बच्चों के साथ खेलता रहता है। यदि यह घर पर ज्यादा दिनों तक रहा तो यह बिगड़ जायेगा।

पिताजी:- इस समय तो स्कूलों में एडमिशन नहीं हो रहे लेकिन उसे तुम हमारे पडौस के संतोष के साथ भेज दिया करो जिससे कि वह आना जाना ही सीख जायेगा और जैसे ही स्कूल खुलेंगे हम इसे एडमिशन दिलवा देंगे।

हरीश के पिताजी हरीश को पढा-लिखाकर कुछ बनाने की सोचने लगे। उन्होंने अपनी पत्नी माया को उसकी देखभाल सही तरह से करने के लिए बोल दिया था। माया भी उसे अपना सगा बेटा मानने लगी थी। अब वह उस पर लगातार ध्यान रखने लगी थी। वह सही तरह से केयर न होने के कारण थोड़ा कमजोर हो गया था लेकिन माया ने उसे सही तरह से खाना-पिलाना शुरू कर दिया जिससे उसके शरीर में थोडा परिवर्तन होने लगा था । 

माया ने हरीश को अब विद्यालय भेजना भी शुरू कर दिया था। हरीश इस समय बहुत खुश रहता था। वह कभी अपने दादा दादी के पास रहता और कभी अपनी मां माया के पास। उसे जिंदगी में मां की कमी न हो रही थी। वह उसे एक सगी मां से भी ज्यादा समझने लगा था। इसके कारण हर समय वह उसके साथ ही चिपका रहता था।

माया के आने के बाद उसके सास-ससुर पर काम का दबाव भी कम हो गया था। वे अब केवल खेतों का काम देखने लगे थे। जिसमें माया उनके काम में सहायता कर देती थी। अब उनके दिल में भी थोड़ी प्रसन्नता थी कि उसकी बहु ने आकर सब कुछ संभाल लिया उन्हें अपनी पुरानी बहु के खोने की चिंता कम होने लगी थी। उनके जीवन में थोडी खुशियां आने लगी थी। 

हरीश अपने दादा-दादी को बहुत प्यार करता था। वह मां माया के साथ रहने के अलावा अपने दादा-दादी के पास भी बहुत रहता था। वह अपनी मां से ज्यादा अपना समय अपने दादा-दादी के पास गुजारता था। वह अपने पिता से भी ज्यादा उनको चाहत था।

हरीश के पिताजी ने काम धंधा करके कुछ कर्ज को चुका दिया था लेकिन उसकी इतनी आय नहीं थी कि वह पूरे कर्ज पर एक साथ नियंत्रण कर सके। वह कर्ज में से ब्याज की कुछ राशि चुका देता था। इसके बाद भी उसके कर्ज में कभी नहीं हो पा रही थी। इसलिए उसने अपने मां-बाप की सलाह पर एक खेत को बेचकर कर्ज चुकाने का निश्चय किया क्योंकि वह कमाते तो कितना कमाये।

वह अपनी श्री पत्नी आने के बाद दिन-रात एक करके मेहनत कर रहा था लेकिन वह अपने घर के खर्च के अलावा कुछ रूपये ही साहुकारों को दे पाता था।

इस तरह उसने सोच-विचार करने के बाद एक खेत का सौदा कर दिया जिससे उसके सारे कर्ज को एक बार में ही चुका दिया गया।कर्जा के चुका जाने के बाद उसके जीवन में कुछ शांति आई अब वह सुख चैन से रहने लगा था। उसके बेटा और माता पिता भी सही तरह से अपना जीवन गुजारने लगे थे। उसकी पत्नी माया ने घर को पूरी तरह संभाल लिया। इस समय माया के मन में कोई दुर्भावना नहीं थी।

" मां का प्यार अनुपम होता,जीवन में नहीं मिले धन से।

ममता,दया, करुणा मां के गुण,करती प्यार सुत को मन से।

बड़े दुखों को सहकर के, संतान पालती माता है।

हर सुख करती संतान के नाम,वह बालक की भाग्य विधाता है।

उंगली पकड़ कर चलना सिखाया,आंगन में  खेला मैं बड़ा हुआ।

मेरा जीवन शून्य से शिखर किया,तेरे आशीष से मां मैं धन्य हुआ।

तेरे आंचल में सदा रहूं ,तेरे हाथ सदा रहे मेरे सिर पर।

मैं जीवन में ना अलग हो सकूं,सदा रहूं तेरे दर पर।"

मां का मनुष्य के जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है।  मां मनुष्य के जीवन में वह सब कुछ खुशियां देती है जो वह कभी नहीं पा सकता है। मां अपनी सारी खुशियां अपनी संतानों पर न्यौछावर कर देती है। वह एक साक्षात देवी का रूप होती है जो हमें हमारे जीवन में सब कुछ बिना किसी स्वार्थ के प्रदान करती है। मां के आंचल का सहारा यदि सारे जीवन में मिल जाये तो उससे खुशनसीब कोई मनुष्य नहीं होता है।

माया आज एक सच्ची मां की भूमिका निभा रही थी। उसने अपनी कोख से कभी भी बच्चे को जन्म नहीं दिया था। वह इस समय केवल मानवता के आधार पर एक देवी का रूप बनकर मां का व्यवहार कर रही थी। इस समय उसके मन में ऐसा कोई भी स्वार्थ नहीं था जो उसके जीवन में मां के प्यार को कमजोर कर दें। 

इस समय वह अपनी जिंदगी में बहु का फर्ज भी बखूबी निभा रही थी। उसने उसके परेशान माता-पिता को आराम देने के लिए उनकी पूरी तरह सहायता करना शुरू कर दिया था। वह घर के कार्य में भी बहुत निपुण थीं क्योंकि उसने अपने माता के साथ हमेशा घर में काम किया था और वह एक मजदूर परिवार की महिला थी जो हमेशा मेहनत के बल पर अपनी जिंदगी का निर्वाह करते हैं।

इस समय हरीश के पिताजी भी बहुत खुद खुश थे क्योंकि उन्होंने कर्ज़ को भी खेत बेचकर खत्म कर दिया था। अब उसे केवल अपने घर कुछ चिंता थी। जिसके लिए वह मेहनत मजदूरी करके कमा लेता था।

कुछ समय तक जीवन सामान्य चलता रहा। सभी लोगों में बहुत खुशियां थी। अब माया के गर्भ ठहर गया था। गर्भ ठहरने के बाद माया के मन में बहुत प्रसन्नता हुई। क्योंकि एक स्त्री को अपनी कोख में गर्भ धारण करने से बड़ी कोई खुशी नहीं रहती है। क्योंकि यह उसके जीवन की बहुत बड़ी खुशी होती है।

वह अपनी जिंदगी में संतान पाने के लिए कुछ भी कर सकती है। वह जीवन यात्रा में हर कठिन सफर को तय करने के लिए तैयार रहती है। वह हर संभव प्रयास करती है कि उसे जिंदगी में अच्छे बच्चे मिले। जिन स्त्रियों के बच्चे पैदा नहीं होते हैं वे स्त्रियां हर दिन चिंता में मरती है क्योंकि किसी स्त्री के लिए बांझ कहलाना उसके लिए नरक में जीवन जीने के समान माना जाता है। हमारा समाज उस स्त्री के लिए कभी वह सम्मान नहीं देता है जो एक बच्चे पैदा करने वाली स्त्री के लिए देता है।

बांझ स्त्री को समाज में उस उजड़े हुए चमन के समान माना जाता है जिसमें पेड बहुत खड़े हुए हैं लेकिन उसके पत्ते और फूल किसी ने तोड़कर उसे नंगा कर दिया हो।समाज में जिस स्त्री के बच्चे जन्म नहीं लेते उसे महत्वहीन समझा जाता है। उसे  समाज में कम सम्मान दिया जाता है। घर के सभी लोगों के द्वारा उससे बहुत बुरा व्यवहार किया जाता है। कुछ लोग तो उसे कुलटा,कुलक्षणी और पापिन कहने से नहीं चूकते हैं। इसका महत्व समाज में उस पेड़ की तरह होता है जो बाग में हरे पेड़ों के बीच अपने पत्ते और फूलों को खो देता है।

समाज में यह बहुत ही बड़ी कमी की है कि उन्हें स्वार्थी बनने की आदत होती है। जब किसी स्त्री के संतान पैदा नहीं होती है तो इसमें उसका कोई दोष नहीं होता है। यह उसमें या उसके पति में शारीरिक कमी के कारण होता है। यदि उसके बच्चे नहीं होते हैं तो उसे महत्वहीन नहीं समझना चाहिए।

" वह नारी सुंदर, सुशील हो, या गुणों से भरपूर।

जिसके बच्चे नहीं जन्म ले,लोग रहे उससे दूर।

समाज सम्मान नहीं देता है,करते हैं सब नफरत भारी।

हर समाज में फैली है,एक बांझपन की बीमारी।

यह दोष शारीरिक होता,नारी को दोषी क्यों कहते।

पुरूष भी दोषी हो सकता है,एक बार जांच करवा लेते।

अत्याचार,जुल्म किये जाते हैं,वह बेचारी हो जाती।

बच्चे पाने की इच्छा में,जीते जी वह मर जाती।

ठोकरें खानी पड़ती है, शब्दों के बाण कड़े होते।

शुभ काम में उस पर नजर रखे,ऐसा सम्मान उसे देते।

नारी के संग में अत्याचार, जो जीवन भर सह जाती है।

बच्चों की आस में वह नारी,अबला बनकर रह जाती है।

कितने स्वार्थी हम होते,मानव से प्यार नहीं करते।

हर रिश्ते से मतलब रखकर,ये व्यवहार क्यों करते।

प्यार की कीमत पहचानों,तुम समता का व्यवहार करो।

किसी कमी के कारण किसी से,क्यों भेदभाव व्यवहार करो।"

जब माया के गर्भ में बच्चा शहर गया तो उसे बहुत खुशी होने लगी थी। उसके पति भी इस बात से बहुत खुश थे कि अब उसके एक नहीं दो बच्चे हो जायेगें। उसका आने वाला समय बहुत अच्छा होगा।

माया के सास-ससुर में खुशियों का ठिकाना नहीं था। वे इस बात से अत्यंत प्रसन्न था। कुछ अपवादों को छोड़कर उस समय के मनुष्य मनुष्यता से बहुत प्यार करते थे क्योंकि उस समय लोगों के पास धन नहीं था लेकिन इंसान से प्यार करने के लिए मन असीम था। उस समय के लोगों में अपने बच्चे के जन्म पर बहुत खुशी होती थी। यह एक अपवाद था कि उस समय लड़कियों को कम महत्व दिया जाता था। 

समय निकलता जा रहा था। हरीश के परिवार के सभी लोगों में बहुत खुशी थी इस समय तक माया का व्यवहार एक सगी मां से भी अच्छा था। वह हर तरह से हरीश के माता-पिता और दादा-दादी की उम्मीदों पर खरी उतरी।

माया के नौ महीने बीतने का आभास भी नहीं हुआ। जिस परिवार में खुशियां और प्यार हो वहां पर मनुष्य को समय कम पड़ जाता है। क्योंकि खुशियों के माहौल में लोगों का मन अच्छे कार्यों में व्यस्त रहता है। 

अब वह दिन भी आ गया जब हरीश की मां के बच्चे ने जन्म ले लिया। हरीश और उसके परिवार में बहुत खुशियां मनाई जा रही थी। घर में सभी लोग अतीश प्रसन्न थे। हरीश का मन अब बहुत ज्यादा खुश था क्योंकि उसे दूसरा भाई मिल गया था। अब वह अकेला दूसरे बच्चों के साथ नहीं खेलेगा सदा अपने भाई के साथ ही खेलेगा।
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रचनाएँ
सौतेली मां
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इसमें उस बच्चे की कहानी है जिसमें उसकी मां बचपन में ही छोड़कर स्वर्ग लोक सिधार जाती है। उसके बाद उसकी जिंदगी में बहुत ही बडा मोड़ आ जाता है जब उसका पिता अपने लिए एक नई पत्नि लेकर आ जाता है जो उसे बहुत सताती है।
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