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सौतेली मां भाग-1

2 अप्रैल 2022

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हरीश एक बहुत ही सीधा-साधा और भोला-भाला लडका था। जो बहुत ही मासूमियत के साथ रहता था। उसकी मासूमियत को देखकर सभी को दया आ जाती थी। दुबला-पतला शरीर और हमेशा एक थकी हुई सी जिंदगी जो उसे जीने के लिए मजबूर कर रही थी। 

हरीश की किस्मत जो उसे दुख में जीने के लिए मजबूर कर रही थी। उसके माता-पिता जिनकी शादी बचपन में हो गई थी। इसके पिता अपने माता-पिता की अकेली औलाद थी। जिसे उसके माता-पिता ने बहुत ही लाड प्यार से पाला था। उनको जीवन में उनके बेटे से बहुत आशाएं थीं। इसलिए हरीश के दादा-दादी ने उनके पिता को हमेशा से ही संकटों से दूर रखा था। आज वह खुशी का मौका था जब उनके बेटे की शादी हो रही थी और पूरे गांव में खुशियां ही खुशियां थी। उसके माता-पिता के मन में इतनी प्रसन्नता थी कि उसके पैर जमीन में नहीं टिक रहे थे। वह चारों तरफ बहुत ही गर्मजोशी के साथ इस खुशी के माहौल का लुत्फ उठा रहे थे।

शादी होने के बाद हरीश के माता-पिता के दिन बहुत ही प्रसन्नता से गुजर रहे थे। गांव में उनके सभी से अच्छे संबंध थे‌। यह प्रसन्नता के दिन भगवान या प्रकृति को मंजूर नहीं थे। जो ज्यादा दिन टिक नहीं पाये। जब हरीश उनकी माता के गर्भ में था तो उनकी प्रसन्नता बहुत थी। गर्भ के नौ महीने का समय एक औरत के लिए बहुत ही संघर्ष का होता है लेकिन संतान के पीछे एक माता सब कुछ सहन कर लेती है। वह उसके लिए एक स्वर्णिम सपना होता है जो उसके भविष्य को एक आशाओं का महल खड़ा कर देता है। 

समय बड़ा ही बलवान होता है। लोग उसका इंतजार करने की चाह में अपने सारे कार्य भूल जाते हैं। खुशी का समय सबके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है जो उसे भविष्य में एक अच्छा संदेश देकर जाता है।

आज हरीश की माता गर्भ की पीड़ा से बैचेन थी। उस समय अस्पताल की सुविधाएं बहुत ही कम थी। बच्चा पैदा करने के लिए कुछ कुशल औरतें होती थी जो दाई कही जाती थी। वे अपने अनुभव के आधार पर बच्चों को जन्म करा देती थी। 

हरीश के जन्म के समय भी यही हुआ । दाई ने उसके जन्म को दिलवा दिया था। जैसे ही हरीश के पिता ने खबर सुनी की उसके बेटे का जन्म हुआ है खुशी के मारे फूले नहीं समाए। यह वही समय था जब बेटे के जन्म पर खुशियां मनाई जाती थी और बेटी के जन्म पर लोगों के मन में बहुत ही दुःख पैदा होता था। 

हमारे भारतीय समाजों में बेटी को शुरू से ही कमजोर समझा जाता है। बेटी को पर ये घर का धन समझकर उनसे असमानता का व्यवहार किया जाता है।

पुत्र के जन्म पर घर के सभी लोगों की खुशियां बहुत ही असीम होती है। अक्सर समाजों में देखा जाता था कि  बेटी का जन्म एक निराशा का प्रतीक माना जाता है। हरीश के जन्म के समय सब लोगों की खुशियां देखने लायक थी। सभी के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव थे। इसलिए सभी के लिए मिठाइयां वितरित की जा रही थी। हरीश के पिता फूले नहीं समा रहे थे। यह खबर जब उसकी माता ने सुनी तो वह भी बहुत खुश थी। वह अपनी  सारी पीड़ा भूलकर चेहरे पर मुस्कान लिए बहुत ही खुश हो रही थी। गांव की सारी औरतों ने यह बात सुनी तो चारों तरफ उसकी चर्चा हो रही थी। सब कुछ सही तरह से चल रहा था। 

एक दिन शाम का समय था सभी लोगों के घर पर निकलता हुआ धुंआ और गांव के चौक पर खेलते हुए बच्चे सभी जाते हुए सूरज का अभिवादन कर रहे थे। हरीश के माता-पिता में कुछ बात को लेकर झगड़ा चल रहा था। वहां पर तू तू मैं मैं के कुछ स्वर कानों में स्पष्ट सुनाई दे रहे थे। गांव के कुछ लोग इकट्ठे होकर उन्हें समझा रहे थे। यह झगड़ा किस बात के ऊपर था लोगों को स्पष्ट नहीं हो पा रहा था। जेसै-तैसे समझाकर लोगों ने उस समय यह झगड़ा शांत कर दिया। 

हरीश के पिता और माता एक दूसरे से रूठे हुए से रहने लग गये थे। लेकिन एक घर में रहकर कब तक रूठ सकते हैं। उसके पिताजी दिन में अपने कामकाज पर चले जाते थे और शाम को घर आते थे। हरीश को देखकर दोनों ही माता-पिता बहुत खुश रहते थे।उसकी माता सारे दिन उसके साथ रहती और उसको देखकर बहुत ही प्रसन्न होती थी। वह अपने बेटे को बड़े ही लाड प्यार से रखती थी। उसे इतना साफ सुथरा रखती थी गांव कि हर महिला को उसे गोद में लेकर खिलाने का मन करता था। वह लड़का बहुत ही चंचल स्वभाव का था बिना भूखा लगे वह मां को बिलकुल भी परेशान नहीं करता था। वह किसी भी स्त्री की गोदी में जाकर खेलने लगता था। कभी कभार जब मां किसी काम के लिए इधर-उधर जाती तो उसे पडौस की स्त्रियों के पास भी छोड़ आती थी। वे उसे बड़े ही प्यार से खिलाती थी। उसका रंग रूप उसके पिताजी पर गया था जिससे कि उसका रंग थोड़े सांवले रंग का था। सांवले कलर का होने के कारण प्यार से उसे कन्हैया भी बुलाया जाता था। 

बच्चों की चंचलता एक मनुष्य को उसके दुख भुला देने में बहुत ही सहायक होती है। यदि खुशी से खेल रहे एक नवजात शिशु को अपनी गोदी में लेकर खिलाया जाये तो मन को बहुत ही ज्यादा प्रसन्नता देखने को मिलती हैं। यह प्रसन्नता दिल को बहुत ही शुकून देने वाली होती है। इसलिए एक मां अपने बच्चे के साथ रहने पर अपने सारे दुख दर्दों को भूल जाती है। क्योंकि वह उसके चांद जैसे मुखड़े पर बहुत ही गर्व महसूस करती है जो उसकी कोख से बड़े ही दुख संकट झेलकर उसने पैदा किया है। मां के लिए एक बच्चा बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। वह अपने बच्चे के होते हुए कभी भी अकेलापन महसूस नही करती है। वह हमेशा अपने बेटे से असीम प्यार करती है। इसलिए उसे प्यार करूणा और ममता की मूर्ति माना जाता है।

जब गांव में ही कोई काम होता तो वह उसे पडौस में किसी औरत के था उसके दादा-दादी के पास छोड़ जाती थी लेकिन जब हरीश की माता खेतों पर काम करने के लिए जाती थी तो वह हरीश को साथ ही ले जाती थी। वह वहां जाकर किसी पेड़ की टहनी पर किसी कपड़े का झूला बनाकर उसपर लोरी गा-गाकर सुला देती थी। हरीश भी ठहरा नाटकबाज जो कुछ समय तक झूलता हुआ हंसने लगा रहता और जब उसे शुकून मिलता तो वह आंखों को झपकते हुए सो जाता था । उसके रोते ही उसकी मां दौडी चली आती थी।

एक मां अपने बेटे से कितना लगाव रखती है। उसके कितने भाव होते हैं अपने बेटे की तरफ कि वह अपने बच्चों के लिए वह कुछ भी करने को तैयार हो जाती है। वह अपने बच्चे के लिए हर तरह के संकट झेलने के लिए तैयार रहती है। उसने कभी भी अपने बच्चों से किसी भी तरह की शिकायत नहीं होती है। एक मां ही तो होती है जो अपने बच्चे को सूखे में सुलाती है। और खुद गीले में सोकर पर भी बच्चे के साथ अपने चेहरे पर मुस्कान बनाये रखती है। वह हमेशा अपने बच्चों के लिए भला सोचती है। उसने हमेशा से ही अपने बच्चे अपना खून पसीना बहाकर पाले हैं यह प्रेम और त्याग की एक अदभुत मूर्ति होती है जिसको हमें पुजा जितना चाहिए। इस दुनिया में हम हर व्यक्ति का कर्ज चुका सकते हैं मगर माता पिता का कर्ज कभी भी नहीं चुका सकते हैं । क्योंकि माता-पिता अपनी सारी खुशियां हमारे नाम कर देते हैं और सारे दुख अपने नाम कर लेते हैं।

यह मां का ही दिल होता हैं जब कभी भी बच्चे की तनिक भी रोने की आवाज आती वह तुरंत झूले के पास पहुंच जाती थी। हरीश की मां भी उस रूप में एक साक्षात देवी थी जो अपने बच्चे को बहुत ही लाड प्यार से पाल रही थी। वह अपने जीवन में अपने बच्चे को सब कुछ मानने लगी थी।

किस्मत का निर्माण कर्म से होता है और कर्म हमेशा अपनी जिंदगी में मेहनत लगन और मनुष्यता से निर्मित होता है। आज हरीश की मां बहुत खुश थी । वह अपनी सारी खुशियां अपने बच्चे के नाम करना चाहती थी। वह खुदा को मंजूर नहीं था। कुछ ही दिनों बाद उसकी मां बीमार रहने लगी थी। वह बहुत ही कमजोर हो गई और हमेशा थकी हुई रहती थी।

उस समय अस्पताल की सुविधाएं सीमित थी लोग सयाने-भोपों पर बहुत विश्वास किया करते थे। उनके प्रति गांव की जनता की बहुत ही आस्था होती थी। ये देशी दवाएं देते थे या अपने स्थानीय देवता के नाम पर झाड़ फूंक किया करते थे । इससे लोगों की बीमारियां ठीक भी हो जाती थी। क्योंकि उस समय का देशी खान-पान होने से इम्युन सिस्टम बहुत ही मजबूत रहता था और सभी लोगों के द्वारा कठिन परिश्रम किया जाता था जिसके कारण वह अपने जीवन में कम ही बीमार होते थे। 

आज हरीश के पिताजी  उसकी पत्नी को लेकर गांव- गांव घूम  रहे थे क्योंकि वह उनको ठीक कराना चाहते थे। लेकिन वह ठीक नहीं हो पा रही थी। उसकी मां अब उसके बच्चे का भी पालन नहीं कर पा रही थी। उसकी सही तरह से देखभाल न होने के कारण वह बहुत ही परेशान रहने लगा था। अब हरीश का ज्यादातर समय उसके दादा दादी के हाथों में ही बीतता था। वह अपने माता के समान ही अपनी दादी के साथ रहने लगा। उसका स्वभाव बहुत ही भोला-भाला था और एक सामान्य बच्चों की तरह ज्यादा परेशान नहीं कर रहा था उसे  केवल पेट भरने से ही मतलब होता था। पेट भरने के बाद वह कभी भी रोता नहीं था। बिस्तर में लेटे लेटे हमेशा खेलते रहता था। 

उसके पिताजी को किसी ने उसे सयाने भोपों को छोड़कर अस्पताल में इलाज करने के लिए कहा था। अब उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह किसी निजी अस्पताल में इलाज करवा सके । इसलिए वह शहर के सरकारी अस्पताल में उसका इलाज कराने के लिए ले गया। वहां पहले दिन तो उसका नम्बर ही नहीं आया क्योंकि आसपास के गांवों में वह अकेला ही अस्पताल था। कई दिनों दौड़ भाग करने के बाद उसका अस्पताल में दिखाने के लिए नम्बर आया। इसके बाद हरीश के पिता ने उसकी पत्नी की समस्या डाक्टर को सुनाई यह हमेशा बीमार रहती है मैं इसका बहुत अस्पतालों में  दिखा चुका हूं लेकिन इसकी तबियत सही नहीं हो पा रही है। डॉक्टर ने उसके लक्षण देखकर उसके कुछ टेस्ट करवाये इसके बाद हरीश के पिता ने उसके टेस्ट करवाकर अगले दिन उन्हें डॉक्टर को दिखाया।

डॉक्टर टेस्ट रिपोर्ट देखकर चौंक गया। उसके कैंसर हो गया था। उसने हरीश के पिताजी को एक तरफ बुलाकर उसे बताया कि तुम्हारी पत्नी को कैंसर हो गया इसका इलाज कर पाना बहुत ही मुश्किल होगा। मैं तुम्हें कुछ दवा लिख देता हूं इनको लेकर चले जाना इसके बाद इसमें कुछ सुधार होता है तो सही है। यदि सुधार नहीं होता है तो तुम इसकी जिंदगी की जितनी सेवा कर सको उतनी कर लो। यह कुछ दिनों की मेहमान है क्योंकि इसके कैंसर का स्तर बहुत बढ़ चुका है।इस तरह की बात सुनकर हरीश के पिताजी चिंतित हो गए लेकिन डॉक्टर ने उसे समझाया कि तुम तुम्हारी पत्नी को चिंता मत करने देना और इसके विषय में बताना मत देना क्योंकि वह बिना चिंता के कुछ दिन ज्यादा जी लेगी। हरीश के पिताजी ने अपने आपको संभाला और उसने अपनी पत्नी को यह बात नहीं सुनाई उसने उसे कह दिया कि डाक्टर ने दवाई दे दी है। उनसे तुम ठीक हो जाओगी। हरीश के पिताजी के चेहरे पर चिंता के भाव स्पष्ट झलक रहे थे। उसके चेहरे को देखकर उसकी मां समझ गई थी कि मुझसे कुछ छुपाया जा रहा है। 

हरीश के पिताजी ने वहां से डाक्टर द्वारा लिखी गई दवाई खरीदी और उनको लेकर घर आ गये। घर पर आकर उसने अपने बच्चे को आकर संभाला। वह बच्चा अपनी मां के बिना अपना जीवन यापन करने लग गया था क्योंकि मां हर समय उसे लेकर इधर-उधर नहीं घूम सकती थी। इसलिए वह अपने दादा-दादी के साथ ही खेलता रहता था। 

हरीश के पिताजी बहुत ही दुखी हो गये। उनके दिल में बहुत चिंता हो रही थी क्योंकि उसके जाने के बाद उसका कौन सहारा रहेगा। वह अपने जीवन के बचे हुए समय को कैसे व्यतीत करेगा। वह एक अबोध और अनजान बच्चे के जीवन का कैसे जीवनयापन करवायेगा? इसी चिंता में वह चिंतित रहने लगा इस बात को उसने अपने माता-पिता को बताई तो वे भी बहुत घबरा गये लेकिन वे इसमें कुछ नहीं कर सकते थे क्योंकि यह बीमारी उस समय एक गरीब आदमी के लिए लाइलाज बीमारी थी जिसका इलाज करवाने के लिए एक आम आदमी सोच ही नहीं सकता था,जबकि उनके पास तो खाना-खाने के लिए भी सीमित संसाधन थे। उनकी जदूरी भी उतनी नहीं थी कि वह अपने खर्च से बहुत कुछ बचा सके। 

गरीबी का हाल बहुत ही बेकार होता है। उसमें व्यक्ति हर बात के लिए मजबूर हो जाता है। वह दो वक्त का खाना भी बहुत ही मेहनत, मजदूरी करके प्राप्त करता है।

"गरीबी का हाल"

जीवन की अभिलाषाएं, अभिलाषाएं बन रही जाती।

फटे हुए हाल की कहानी, अश्रु में ही बह जाती।

दो जून की रोटी को,खून-पसीना बहाने पड़ते हैं।

अपने सपने बुनने को,जहर के घूंट पीने पड़ते हैं।

यह वह राह है, जहां चैन नहीं है राहों में।

सब ठुकरा देते हैं मानव,नहीं थामता कोई बाहों में।

कांटों की बाड बिछी होती,उस पर चलना मजबूरी है।

कोई ना दूसरी राह होती,चलना उस पर ही जरूरी है।

वह स्वाद ना जाने चीजों का,जिन पर जी ललचाता है।

वह सोच ना सकता जीवन में,जीवन में थककर रह जाता है।"

हरीश के पिताजी की चिंता दिनोदिन बढ़ती ही जा रही थी।वह अब अपने काम के लिए जाता था लेकिन उसे हमेशा अपने ही घर की चिंता रहने लगी। उसका बिलकुल भी काम में मन नहीं लगता था। वह मजदूरी के अलावा गांव की भजन-मंडली में भजन-कीर्तन करने जाता था। उसकी मधुर आवाज उसकी गरीबी में दबकर रह गई थी वह हमेशा अपनी सुरीली आवाज के लिए आसपास के गांवों में मशहूर था।  लेकिन उसे उसकी गरीबी उसकी सारी जिंदगी को तबाही के कगार पर लाकर छोड़ने वाली थी। 

अपनी पत्नी की चिंता में हरीश के पिताजी अब भजन-कीर्तन में जाने से रूकने लगे थे।उसका काम में बिलकुल भी मन नहीं लगता था। उनके दुख के लिए उनके कुछ पडौसी चिंतित रहते थे। उनका यह दुख देखा नहीं जा रहा था कि उनकी शादी को अभी ज्यादा दिन भी नही हुए हैं उससे पहले ही उनकी जिंदगी उनकी बर्बादी करने के लिए मौका देख रही थी। हरीश के पिताजी अपनी प्यारी पत्नी से बहुत प्यार करते थे। उनके लिए वह सब कुछ थी। उसके जीवन में वह बहुत ही बहार लेकर आई थी लेकिन गरीबी कभी-कभार उनके मन-मुटाव पैदा करती थी। वे अपने माता-पिता की इकलौती संतान होने के कारण बहुत ही प्रिय थे। उनके माता-पिता ने उन्हें बहुत ही बड़े प्यार से पाला था। 

काफी सपने देखने के बाद उनके एक सुन्दर सी बहु आई थी लेकिन उसको सही तरह से पोषण नहीं मिलने के कारण उसे घातक बीमारी ने अपनू आगोश में लेकर बहुत ही बड़ी समस्या पैदा कर दी थी। 

हरीश के पिताजी ने इस बात की भनक उनके माता-पिता के अलावा किसी को नही लगने दी कि उसकी पत्नी को एक बहुत ही खतरनाक बीमारी ने जकड़ लिया है। उसने अपनी पत्नी की अब हर इच्छा की पूर्ति करना शुरू कर दिया वह उसे उसकी इच्छा के अनुसार उसे वह हर चीज उपलब्ध कराने लगा जो उसे अच्छी लगती थी। उसने उसे काम करने से बिलकुल मना कर दिया उन्होंने काम करने के लिए अपने माता-पिता से कह दिया कि तुम्हें मेरे बच्चे का पालन-पोषण करना है। 

मेरी पत्नी मेरी जिंदगी में कुछ दिन की मेहमान है इसै उसे बिलकुल परेशान नहीं करना है। उसके लिए मैं उसे वह हर सुख दूंगा जो उसके लिए इच्छित हैं इसके लिए मैं अपनी जान की बाजी लगा सकता हूं क्योंकि वह अपनी जिंदगी के अधूरे पल ही गुजारने के लिए ईश्वर ने इस धरती पर भेजी है। उसने जिंदगी में सही से कुछ देखा भी नहीं है वह अपनी जिंदगी के दूसरे दौर में पहुंचने के साथ ही बहुत बड़ी बाधा में फंस चुकी है। 

इस तरह हरीश के पिताजी की बात उनके माता-पिता के दिल और दिमाग में उतर गई। उन्होंने भी मनुष्यता का पूरा परिचय दिया और यह स्वीकार लिया कि हमें इसकी सेवा करते हुए मानवता का धर्म निभाना होगा। 

मनुष्य में सामाजिकता का एक सबसे अच्छा लक्षण मनुष्यता का पालन करना होता है।यदि मनुष्य एक मानव को ईश्वर का रूप समझकर व्यवहार करें तो समाज में कभी भी कोई मनुष्य कठिनाइयों के दौर से  नहीं गुजरेगा। हमें हमेशा मनुष्य की कठिन परिस्थिति में साथ देना चाहिए क्योंकि कठिन परिस्थिति मनुष्य के जीवन में भूचाल मचाकर उसकी जिंदगी को पूरी तरह असंतुलित कर देती है।

हरीश के पिता ने अब उसकी माता को पूरी तरह यह कह दिया कि जब तक तुम बीमार रहोगी तब तक तुम्हें आराम की जरूरत है तुम्हें  किसी काम-धंधे को करने की आवश्यकता नहीं है। मेरे माता-पिता तेरे बच्चे के साथ घर को संभाल लेंगे तुम फ्री समय में बच्चे को रख लिया करो बाकी घर के कार्य को मेरी मां संभाल लेगी और पिताजी खेत केकाम देख लेंगे।

अब हरीश के पिताजी मजदूरी करके कमाकर लाते थे और उसके बाद घर पर आने के बाद में अपने माता-पिता का काम में हाथ बंटाने लगे। उनकी मजदूरी घर के खर्च में ही खत्म है जाती थी इसलिए अब हरीश के पिताजी उनकी पत्नी की दवाई के लिए काफी कर्जा भी ले चुके थे। इसलिए लगातार उनके ऊपर कर्ज भी बढ़ने लगा। 

हरीश के पिताजी ने कर्जा की बिलकुल फ़िक्र नहीं की वह उसके लिए बहुत रुपये बर्बाद करने लगा। वह किसी भी तरह अपनी पत्नी को उसके बच्चे के लालन-पालन के लिए बचाना चाहता था। 

जिंदगी में समय का बहुत बड़ा महत्व होता है क्योंकि समय के साथ ही मनुष्य के कर्म का निर्माण होता है और कर्म से भाग्य की रेखा बनती है उसके आधार पर मनुष्य के भविष्य का निर्माण होता है।समय के साथ मनुष्य अपने आप को बदल लेता है। जिसके लिए कुछ पंक्तियां हैं:-

समय ना रुकता,कभी ना थकता।

मानव जीवन की गति समय है।

समय को समझा जिसने जीवन में,

मानव जीवन की प्रगति समय है।

समय ने सबको जीना सिखाया,

गहरे जख्मों को सिलना सिखाया।

कभी गगन पर पर लगाकर,

गगन में हमको उड़ना सिखाया।

हमने समय के बंधन में ही,

धरती पर पहला कदम रखा।

समय के साथ हम बढे कदम,

समय ने हमको चलना सिखाया।

समय ने हमको हंसना सिखाया,

समय ने हमको रोना सिखाया।

समय बदलने के समय भी ,

हमको जीवन में फलना सिखाया।।

हमने समय को रोका बहुत,

पीछे रखने की कोशिश की,

समय ने हमको पीछे छोड़ दिया,

हमारे पास था समय बहुत।

जब समय हमारा आया होगा,

हम चैन की नींद सोए होंगे।

अब हमें चैन नहीं मिलता,

हम तुमसे मिस हुए होंगे।"

हरीश के पिता जी को संतुष्टि नही हो रही थी इसलिए उसने उसे अभी भी कुछ अस्पतालों में दिखाया जिससे कि उसका इलाज हो सके। उसने अपनी पत्नी की जान की कीमत के सामने रुपयों का महत्व नकार दिया। 

वह चाहता था कि उसे कोई ये बोल दे कि उसकी पत्नी ठीक हो जाते तो वह उस पर सब कुछ न्यौछावर करने के लिए तैयार हैं। वह हमेशा इस बात को सुनने के लिए इधर उधर भटक रहा था लेकिन उसे हर जगह पर असंतुष्ट होकर ही लौटना पड़ता था। वह इस बात से थक चुका था कि उसे कोई भी यह निश्चित नहीं कर पा रहा था का वह सही होकर अपनी जिंदगी को पूरी कर सकेगी।

हालांकि हरीश की मां की दवाइयां चल रही थी लेकिन उसकी तबियत ठीक होने के बजाय लगातार बिगड़ रही थी। हरीश के पिताजी ने अब हार-थककर उसकी सेवा करना ही मुनासिब समझा। उसने अपनी पत्नी को इस बात की भनक नहीं लगने दी। 

अब हरीश के पिताजी और दादा-दादी उसे बिलकुल ही कष्ट नहीं देते। उसके लिए समय पर खाना-पीना और उसके हर काम के लिए तत्पर रहते थे।

इधर हरीश का पालन पोषण उसके दादा-दादी के द्वारा ही किया जा रहा था। 

वह बालक जिसने अभी पृथ्वी पर कदम रखे हों वह सुख-दुख का आभास कैसे समझता। वह अपने दादा-दादी के साथ रहता था। उसे मां के दुख से भी अलग कर दिया क्योंकि उसके पिता के मन में यह डर बस गया कहीं इसे भी इस तरह की बीमारी नहीं जकड़ ले।

हरीश को अब बाहर का दूध पिलाने लग गये थे। जब भी उसे भूख लगने लगती उसके हाथों में निप्पल को थमा दिया जाता था जिससे कि वह अपने पेट की क्षुधा को शांत कर सके। 

कुछ समय ऐसे ही निकलता गया हरीश की मां की तबियत बहुत ज्यादा बिगड़ने लगी इसके चक्कर में हरीश के पिताजी चिंतित रहते।

अब उन्हें भी इस बात पर गुस्सा आने लगा कि इससे तो यह मर जाये तो भी सही है क्योंकि इसकी पीड़ा मुझसे देखी नहि जाती। यह रात-दिन इस दुख के कारण तड़पती रहती है। यह दुख इसे इतना क्यों तडपा रहा है क्यों ना इसकी जान छीन ले जिससे कि यह सुख की नींद सो जाये।

हरीश की मां को इस बात की भनक लग गई कि मेरी बीमारी खत्म होने वाली नहीं है यह मेरी जान लेकर छोड़ेगी इसलिए मैं मेरे बेटे को बचे हुए दिनों में लाड लडा लूं। जब भी हरीश उसकी मां के पास आता वह बहुत ही प्रसन्न मुद्रा में अपनी मां के साथ खेलने लगता उसकी मां भी उसे बार-बार चूमती और उसके साथ बहुत ही प्रसन्न होकर खेलती रहती थी। जब इस प्रकार खेलते हुए उसे देखा जाता तो उसके पिताजी यह देखकर बहुत दुखी हो जाते उसके पिताजी की आंखें आंसुओं से भर जाती थी लेकिन वे उससे नजरें छुपाकर वहां से चले जाते और छुप-छुपकर रोने लगते थे।

जब यह नज़ारा गांव के कुछ लोग देखते तो वे भी नयनों में जल आने से रोक नहीं पाते। हरीश के घर पर आये दिन मिलने वालों का तांता लगा रहता था। सभी रिश्तेदार जिन्हें भी इस बात की सूचना मिलती थी वे मिलने के लिए आते और हरीश के पिताजी को धैर्य रखने के लिए प्रेरित करते थे। लेकिन इस बात से उसके पिताजी पूरी तरह टूट चुके थे। उन्होंने उसे बचाने की हर संभव कोशिश की लेकिन वे आज उसे तड़पते हुए देखते हैं। यह उनके आंपे से बाहर हो चुका था। 

" जीवन एक यात्रा है जिसमें कांटों का जाल बिछा।

इसका शिकारी कब छीन ले, मनुष्य को नहीं जिंदगी का पता।

मरण-जन्म जीवन का सच है,इस विजय ना पाई है।

समय के साथ विनाश निश्चित,यह जीवन की सच्चाई है।

भ्रम में रहते हैं हम सब,भाग-दौड से फुर्सत ना।

जीवन क्या है किसलिए जन्मा,इसे जानने की फुर्सत ना।

मोह माया और धन का लालच,हमको अंत तक भगा रहा।

अपने जीवन में क्या करना,इसका हमें ना पता रहा।

जीवन एक ऊर्जा है, परिवर्तन होकर बदल जाये।

पंचतत्व में विलीन हो,रूप परिवर्तित कर जाये।

तन है मिट्टी का एक ढांचा,इसको शक्ति ने तैयार किया।

पुतला बनाया श्वास डालकर, बहुत कोशिशों से खड़ा किया।

हम होश में ना रहते, अभिमान में फंसकर घूम रहे।

मानव के कर्म भूलकर के, नर्क के दरवाजे घूम रहे।"

मनुष्य का जीवन एक सार्वभौमिक सत्य है जिसको पाकर मनुष्य बहुत ही प्रसन्न होता है लेकिन उसने अपने जीवन के लिए किस तरह के कर्म किते है इसकी तरफ वह बिल्कुल नहीं देखता है। मनुष्य कर्मों के आधार पर ही अपने जीवन का जीवनयापन करता है। यदि कोई भी मनुष्य अच्छे रास्ते पर चलकर अपनी जीवन यात्रा को पार करता है तो वह व्यक्ति हमेशा सफल व्यक्ति होता है। उसको जीवन के अंतिम दौर में हमेशा याद किया जाता है कुछ व्यक्ति जो जीवन के पलों का ध्यान साधना में लगाकर अपने आप को समझ जाते हैं उन्हें परमात्मा का दर्जा दिया जाता है। वे मनुष्य इस दुनिया में सबसे बुद्धिमान होते हैं और उन्हें युगों युगों तक याद रखा जाएगा।

एक अंधेरी रात जिसमें सभी लोग चैन से सो रहे थे। गगन में कुछ तारे मंदी-मंदी रोशनी के साथ झिलमिल कर रहे थे। सायं-सायं की आवाज आ रही थी। इसी शांति के बीच में हरीश के माता-पिता अपने घर में सो रहे थे। हरीश के पिता उसके पास में ही काट लेकर सो रहे थे अचानक से रमेश की माता के कुछ पीड़ा होने लगी उसने पास में सो रहे अपने पति को आवाज दी। वह तुरंत खड़ा होकर उसके पास गया।

आज उसकी पत्नी की पीड़ा असहनीय थी। वह केवल रो रही थी उसके मुंह से कुछ आवाज भी नहीं निकल पा रही थी। उसने जाकर उसे सहारा दिया लेकिन वह कुछ नहीं कर पा रहा था। पीड़ा के अधिक होने के कारण उसकी मां लगाता रो रही थी। उसका गला भर आया वह असहनीय पीडा को झेलने की कोशिश कर रही थी। अचानक से उसकी आवाज बंद हो गई हरीश का पिताजी घबरा गया उसने अपने माता-पिता को जगाया और उसके पास लाकर उसकी सांसों को देखने के लिए कहा। अचानक से उसके पिताजी ने इशारा किया कि यह अपनी अंतिम सांस ले चुकी है। अब इसके पास कोई सांस नहीं है । इसलिए अब हम कुछ नहीं कर सकते हैं। हरीश के पिताजी अपनी पत्नी की शक्ल की तरफ देखते ही रह गये । उसकी आंखों से आंसू निकल रहे थे ये आंसू की बूंदें यह प्रतीत करा रही थी कि वह अपने अंतिम समय में भी रो रही थी। वह हमारा साथ छोड़ना नहीं चाहती थी। उसकी सुंदर काया को देखकर हरीश के पिताजी स्थिर होकर उसे देखते ही रह गये। स्वत: ही उसकी आंखों से आंसू निकल रहे थे। लेकिन वे कुछ बोल नहीं पा रहे थे। अंतिम घड़ी तक उसने उसका साथ नहीं छोड़ा आज वह हमसे दूर होकर हमें अकेला छोड़ गई।

हरीश की दादी जो अपने बहु के पास में बैठी अपनी बहु की अचेतन काया के पास बैठकर एकदम से जोर से रो पड़ी उसके रोने की आवाज सुनते ही पडौस के कुछ लोग जागकर आ गये। कुछ ही देर में सारे गांव में हल्ला हो गया कि उसकी बहु की मौत हो गई। लोग उस अंधेरी रात में अपने बिस्तर से खडे होकर उनके घर की तरफ दौड़ने लगे। 

कुछ ही समय में गांव के बहुत सारे लोग इकट्ठे हो गये। 

रात का समय था लोगों ने बड़ी मुश्किल से सभी को धीरज बंधाया और उन्हें चुप करने की कोशिश की। लेकिन इस असहनीय दुख को भुला पाना बहुत कठिन था। हरीश के पिताजी,दादा और दादी के दिल को बहुत बड़ा धक्का था। उसके अलावा एक छोटा सा बेटा जो उन्हें पालने के लिए छोड़ गयी थी। बच्चा दूसरे घर में बहुत ही चैन से सो रहा था उसे क्या पता कि उसके जन्म देने वाली मां उसे सदा के लिए छोड़कर इस दुनिया से चली गई। 

" यह तन है नश्वर, इस संसार में,

हम बात भूल गए सारी ,मोह और प्यार में।

 

पंचतत्व से बना है पुतला,

सबको इसकी फिकर है भारी।

सारे जीवन धोया-पखारा,

लग जाती है दुख बीमारी।

नहीं पता हम कब तक जिंदे रहेंगे इस संसार में।

 

जिस काया को हम निखार रहे हैं

तब भी साफ ना हो पाई।

भाग-दौड क्या ढूंढ रहे,

वह चीज हमें ना पाई।

शांति धारण करो जीवन में जीवन जियो तुम प्यार में।

 

श्वास छोड़कर जब जाती है,

हमको पछतावा होता है।

जीवन भर मैंने क्या किया था,

इसके लिए जन रोता है।

जन सेवा कुछ काम आये बाकी धन-दौलत कमाई बेकार में।

 

ना कुछ लाये ना ले जाये,

जीवन में फिर क्यों भरमायें।

जीवन एक मिट्टी का ढेला,

पानी पढ़ें एक दिन घर जायें।

पंचतत्व का मिलन होय जब मौत होय संसार में।

 

 

सभी लोगों ने उस लाश को जमीन पर रखकर उसके ऊपर कपड़ा डाल दिया इसके पश्चात वहां पर आग जलाकर और अगरबत्तियां लगाकर गांव के समझदार लोग बैठ गये। सभी लोगों में उसके कठिन जीवन संघर्षों के विषय में चर्चा होने लगी। उसके गुण-अवगुण का विश्लेषण होने लगा। सारे गांव में एक शोक की लहर छा गई। 

मृत्यु जीवन की एक कड़वी सच्चाई है जिससे कोई भी ना बच सका इसके ऊपर किसी ने विजय नहीं पाई कि वह मृत्यु को रोक सका। मृत्यु पर विजय पाने के लिए इस संसार में ऋषि मुनियों और वैज्ञानिकों ने बहुत कोशिश की लेकिन इसम हमेशा से असफल रहे। यह जीवन का आखिरी मोड़ होता है जिस पर मनुष्य अपने जीवन के विषय में कभी नहीं सोचता इससे पहले उसे केवल घर, परिवार, समाज और देश की चिंता रहती है जिसके कारण वह हमेशा धन-दौलत के चक्कर में भटकता रहता है। वह अपने जीवन के विषय में उस समय सोच पाता है जब उसे उसकी मृत्यु से भय होने लगता है। इसलिए मानव को अपनी जिंदगी का मूल्य उसके अंतिम समय में ही पता लगता है।

लोगों में चर्चा हो रही थी कि मनुष्य पूरी जिंदगी इधर से उधर परेशान रहता है लेकिन इस तन को अंत में जाकर मिट्टी,अग्नि,जल ,वायु और आकाश के साथ ही समायोजित हो जाता है। यह जीवन की एक बहुत बड़ी भूल होती है जो मनुष्य को अंतिम समय में जाकर याद आती है। 

"अब पछताये क्या होता है जब चिड़िया चुग गई खेत"

अब पछताये क्या होता है जब चिड़िया चुग गई खेत।

जल में जल मिल जायेगा,रेत में जाय मिले रेत।

पवन ,पवन का रूप लेकर, आकाश में उड़ जाती।

अग्नि को तुम सौंप दिये होते,वह अपने रुप समा जाती।

आकाश गमन सब कर जाते,वह तुम्हें समा लेता है।

यह तन का नाश दुनिया में,जो तुम्हें ज्ञान देता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

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रचनाएँ
सौतेली मां
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इसमें उस बच्चे की कहानी है जिसमें उसकी मां बचपन में ही छोड़कर स्वर्ग लोक सिधार जाती है। उसके बाद उसकी जिंदगी में बहुत ही बडा मोड़ आ जाता है जब उसका पिता अपने लिए एक नई पत्नि लेकर आ जाता है जो उसे बहुत सताती है।
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सौतेली मां भाग-1

2 अप्रैल 2022
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हरीश एक बहुत ही सीधा-साधा और भोला-भाला लडका था। जो बहुत ही मासूमियत के साथ रहता था। उसकी मासूमियत को देखकर सभी को दया आ जाती थी। दुबला-पतला शरीर और हमेशा एक थकी हुई सी जिंदगी जो उसे जीने के लिए मजबूर

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सोतैली मां भाग-2

4 अप्रैल 2022
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हरीश की मां की लाश के पास बेटे सभी लोग बहुत ही दुखी थे। कुछ लोग उसके गुणों की चर्चा कर रहे थे। वह एक बहुत अच्छी सीधी-साधी औरत थी जिसने कभी भी किसी से बुरे शब्द नहीं कहें सभी लोग रात के तारे गिन रहे थे

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सौतेली मां भाग-3

8 अप्रैल 2022
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माया के लड़का पैदा होने पर वह बहुत खुश थी। वह सोच रही थी कि वह एक भाग्यशाली औरत है। वह अपने घर पर रहने से जितनी दुखी थी। अब उसे उससे कहीं ज्यादा खुशी का अहसास हो रहा था। वह हरीश को भी बड़ा प्रसन्न रखत

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सौतेली मां भाग-4

9 अप्रैल 2022
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" जिसके दिल में प्रेम है, इंसान के रूप से।वह मनुज प्यार करता है, ईश्वर के स्वरूप से।समय का तकाजा है, इंसान को बदल देता है।कुछ छीन लेता है, कुछ जन को दे देता है।प्रेम के रिश्ते हैं,जो सदियों तक याद रहत

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सौतेली मां भाग-5

18 अप्रैल 2022
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उस रात पूरी रात हरीश को चैन से नींद नहीं आ पाई थी। लेकिन वह सारी रात उल्टा ही पड़ा रहा। वह जैसे ही पीठ के बल लेटने की कोशिश करता उसकी नींद खराब हो जाती थी। उसके दादा सारी रात उसकी इस कराहट के लिए परेश

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सौतेली मां भाग-7

20 अप्रैल 2022
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हरीश के दादा और दादी के शरीर में चलने फिरने के लिए बिल्कुल ऊर्जा नहीं बची थी। उसके दादा थोड़े बहुत चल-फिर लेते थे। लेकिन हरीश की दादी पैरों से लाचार हो गई थी उसकी दृष्टि भी कमजोर हो गई थी। उसे दिखाई द

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सौतेली मां भाग-6

18 अप्रैल 2022
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जब हरीश के पिता के समझाने पर माया ने यह स्वीकार नहीं किया कि वह हरीश को अपना बेटा समझकर उसे अपने साथ रखने के लिए तैयार हो जायेगी। तो हरीश के पिताजी ने उसे अपने माता पिता के साथ रखना ही उचित समझा।&nbsp

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सौतेली मां भाग-8

23 अप्रैल 2022
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शाम का समय था सभी लोग इकट्ठे हो गये थे। लोग तरह-तरह की बातें करने लगे। सभी लोगों की हरीश द्वारा अपने दादा और दादी की सेवा करने के विषय में जानकारी दी। इसलिए सभी लोग हरीश की सराहना कर रहे थे। लेकिन माय

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