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स्त्री जब प्रेम में डूबती है...

9 जनवरी 2024

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स्त्री जब प्रेम में डूबती है...  

उसका पूरा शरीर बगीचा हो जाता है। 

आशाओं के बिटपों, 

आसक्ति के पुष्पों, मदहोशी की लताओं 

और समर्पण के पल्लवों की अस्सीम ऊर्जा से युक्त अलौकिक बगीचा।

प्रेम के समस्त अलंकारों, रसों के आनंद की 

सुधबुध हर लने वाली खुश्बू को 

निरंतर प्रवाहित करता बगीचा। 

लेकिन-

उस प्रेममय शरीर रूपी बगीचे से फूटती 

खुश्बू का सहभागी, सहगामी सिर्फ वही होता है 

जिसके लिए निरंतर उच्छवासित होती है। 

प्रेम में डूबी स्त्री की प्रीत की गहनता का 

रहस्यमयी पैगाम जानिए इस खुश्बू को, 

जो सिर्फ प्रियतम तक पहुंचता है। 


प्रेम में डूबी स्त्री आपके पास से गुजरती है, 

आपको स्पर्श कर जाती है।

आप नहीं सुन पाते उस खुश्बू से फूटते संगीत की 

लहरों के मर्म को।

क्योंकि, वो खुश्बू आपके लिए है ही नहीं। 

वौ खुश्बू जिसके लिए है सिर्फ उसी को उस खुश्बू के संगीत का भान है। 

वही उस संगीत में डूबता-उतराता है, थिरकता है, गुनगुनाता है और जी उठता है।

प्रेम में डूबी स्त्री के पास है वो संगीत।


और, जब पुरूष किसी के प्रेम में डूबता है...

प्रेम में पड़ता है पुरुष , शायद

डूबता नहीं।

डूबना स्वाभाविक समर्पण है।

प्रेम में पड़े पुरुष का शरीर अलौकिक खुश्बू से युक्त

बगीचा नहीं बन जाता।

यह स्त्रियोचित भव्यता/ भावुकता है।


प्रेम में पड़़ा पुरुष...

शायद, समंदर जैसा कुछ हो जाता है।

नीलवर्नीय, अनंतिम, अप्रतिम,

लहरों सा उछलकर गिरता हुआ।

यह गिरना, गिरजाना नहीं है।


बल्कि...

ऊपर से नीचे आते झूले की 

किसी पालकी पर सवार,

गिरता सा, लेकिन गिरता नहीं।

उठता सा, लेकिन उड़ता नहीं।

आसक्ति की रेत पर बिछी प्रेम की खुश्बू को,

अपने ज्वार में समेट लेने को आतुर।

प्रेम में पड़ा पुरुष...


                            -सुनील संवेदी 

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