सखी! हरि हमको देखि लजाये। हरि नें जनम दियो मानुष को हम पशु बनि ही बिताये। सहज सुबेली धरनी हरि की हम अपनी ही बताये।।1।। नयन दिखाये सारे जग को काया करम कराये। माया रमन कराये हरपल जो छाया दिख जाये।।2।। आपा-धापी करमहिं व्यापी प्रीतम नेह गवाये। मोह किये नासी काया से अविनासी नहिं ध्याये।।3।। वेद-कतेब उपनिषद गाये हरिपद अन्दर भाये। सो पद ना सुमिरा "हे धीरा" हर क्षन बिरथ गँवाये।।4।।