अकल्पनीय चित्र है,
स्थिति विचित्र है।
सब कुछ स्थिर है,
भविष्य अनिश्चित है।
अनश्वर नहीं नश्वर है,
भले समस्या विस्तृत है।
यह परीक्षा का पल है,
आज धैर्य तो ही कल है।
किसने देखा स्वर्ग ,
यह सब स्वप्न है ।
निज घर विश्राम ही,
अपनो की खुशी, जन्नत है।
प्रधान प्रार्थना निस्वार्थ है,
स्वस्थ भारत की आस है।
-----मुकेश कुमार