कैसे करूं मैं सभी का धन्यवाद,सोचता रहा दिन भर;आपकी ये शुभकामनाएं,खुशनुमा बना देती दिन के हर पल को।कैसे करूं मैं साधुवाद,शब्दों में व्यक्त करना है मुश्किल इन पलों को।जन्मदिवस पर मिलने वाली ये शुभकामनाए
अकल्पनीय चित्र है,स्थिति विचित्र है।सब कुछ स्थिर है,भविष्य अनिश्चित है। अनश्वर नहीं नश्वर है,भले समस्या विस्तृत है।यह परीक्षा का पल है,आज धैर्य तो ही कल है। किसने देखा स्वर्ग ,यह सब स्वप्न है ।निज घर विश्राम ही,अपनो की खुशी, जन्नत है।प
बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पौड़ी या सीढ़ी पर थोड़ी देर बैठे। क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है ?आईए जानते हैं आजकल तो हम लोग मंदिर की पौड़ी पर बैठकर अपने घर की व्यापार की या राजनीति की
मेरे जीवन का पल-पलप्रभु तेरा पूजन हो जाए,श्वास-श्वास में मधुर नामभौंरे-सा गुंजन हो जाए।जब भी नयन खुलें तो देखूँतेरी मोहिनी मूरत को,मेरा मन हो अमराईतू कोकिल-कूजन हो जाए।जग में मिले भुजंग अनगिनतउनके दंशो की क्या गिनती?वह दुःख भी अच्छा है
प्रार्थना जितनी सरल होती शायद ही कुछ इतना सरल हो, मैं यहाँ पर उतने ही कम शब्दों में और इसके बारे में कहना चाहूँ की प्रार्थना जितनी निःशब्द रहे उतनी सरल और तेज प्रभाव वाली होती है। शब्दों में कमी रह सकती है मगर निःशब्द प्रार्थना बहुत कुछ कहती है।वैसे प्रार्थना निवेदन करके ऊर्जा प्राप्त करने की शक्ति
कौन हूँ मैं समझ नहीं पाती ये पहेली क्यों सुलझ नहीं पाती मैं ममता का अंश हूँ या पीड़ा का दंश हूँ जूही चमेली का इत्र हूँ या देह पर लिखा संधि पत्र हूँ विधि की अनुकृति न्यारी हूँ या औलादों की क्यारी हूँ अभिलाषा का राग हूँ या सन्यासी का