जब पूरी दुनियां मानवाधिकार और वर्ग सघर्ष कर रही थी, तब हिन्दुस्तान अपनी आज़ादी की लड़ाई लड़ रहा था. दुनियां की सबसे पहली मानवाधिकार की लड़ाई शायद फ्रांस में 1789 में लड़ी गई थी. उसके बाद ये आग जल्दी ही पुरे यूरोप में लगने लगी और फिर अमेरिका तक पहुँच गई. उसके बाद ही वर्ग सघर्ष शुरू हो गया. इस आग की आंच हिन्दुस्तान में नहीं आई जिसके कई कारण थे. पहला अंग्रेजी हकूमत और दूसरा इंडियन नेशनल कांग्रेस. अंग्रेज़ो की अपनी वज़ह थी, वो नहीं चाहते थे कि एक आम हिन्दुस्तानी को मालूम हो कि उसकी हैसियत क्या है और वो अंग्रेजी राज की ख़िलाफ़त करे. कांग्रेस कि एक और वज़ह थी, वो यह कि हिन्दुस्तान पहले से ही मज़हब, जाति और अमीरी गरीबी में बटा था, और उस वक्त इस लड़ाई को छेड़ने का मतलब था हिन्दुस्तान के अंदर एक और लड़ाई छिड़ जाना ,जाति और मज़हब के नाम पर और आज़ादी की लड़ाई का कमज़ोर हो जाना. जिसका फायदा सिर्फ अंग्रेजी हकूमत को मिलता. गाँधी जी आज़ादी की जंग से ज्यादा इस लड़ाई पर ज़ोर देना चाहते थे और उसके लिए आज़ादी की जंग को छोड़ने को भी तैयार थे क्योकि उनका मानना था सच्ची आज़ादी तभी मिलेगी जब सबको सामान अधिकार मिले और सभी धर्मो में प्यार रहे.