तुलसी और श्री रामचरितमानस
बचपन में एक निबंध पढ़ा था उसमें ‘मेरा प्रिय ग्रंथ’ के अंतर्गत रामचरितमानस को आधार बनाया गया था। उस समय थोड़ा अटपटा सा लगा था। शायद इसलिए कि उसे तो हम धार्मिक ग्रंथ के रूप में जानते थे। प्रिय जैसा संबोधन कुछ अलग सा लगा था। जैसे प्यारी मां, प्यारे पिता जैसी बात समझ में नहीं आती । मां, मां है, पिता, पिता