बात सिर्फ इतनी सी है जैसे एक अध्यापक अपने स्टूडेंट्स को पढ़ाता है तब तक वो उन्हें वो सारा कुछ बताता है जो उन्हें नहीं आता या जो पूछते है।उसी बीच उसी अध्यापक का ड्यूटी एग्जाम कराते समय हो तो वो अध्यापक ना होकर एक एग्जाम कराने और कक्ष निरीक्षक के रूप मे होता तब क्या वो स्टूडेंट को एग्जाम के लिए मदद करेगा क्या? सेम ऐसा प्रोसेस चुनाव के दौरान भी होता है और सबका रोल बदल जाता है जिसे जो काम दिया जाता है तब वो वही हो जाते है उसके बाद चुनाव और आचार संहिता हटते ही वो पुनः अपने पद पर वही कार्य करने लगते हैं।*
आचार संहिता चुनाव की तारीख से चुनाव के फैसला आने तक वो चलता है।इस बीच चुनाव प्रचार पर भी रोक लगा दी जाती है ताकि कोई जनता को गुमराह ना कर पाये इसी बीच सारी लाइसेंसी बंदूके वगैरह भी सरकार पहले ही जमा करवा लेती है और आचार संहिता खत्म होने पर वापस दे दी जाती है।ताकि सुरक्षा व्यवस्था बनी रहे।
*चुनाव आयोग इस बीच अपना कुछ जरुरी निर्देश जारी करती है चुनाव के लिए कि आप भीड़ इकठ्ठा नहीं कर सकते,कहीं कोई रैली या जुलूस निकालने के लिए चुनाव आयोग से पहले से इजाजत लेनी होगी।आप धर्म के नाम पर कोई प्रचार नहीं कर सकते,सरकारी चीजों जैसे गाड़ी, मकान,ऑफिस जैसी चीजों का चुनाव प्रचार के लिए नहीं प्रयोग कर सकते आदि।*
इस बीच सिर्फ वोटिंग करते समय जनता को सही जगह वोट करना चाहिए जो देश हित में हो। नहीं तो देश के साथ साथ जनता को भी पछताना पड़ता है।
त्रिभुवन गौतम s\o शिव लाल
शेखपुर रसूलपुर चायल कौशाम्बी उत्तर प्रदेश भारत।