तुम्हारी शपथ मैं तुम्हारा नहीं हूँ ,
भटकती लहर हूँ किनारा नहीं हूँ ||
तुम्हारा ही क्या , मैं नहीं हूँ
किसी का ,
मुझे अंत तक दुःख रहेगा इसी का |
किया एक अपराध मैंने जगत में ,
नहीं जिसका कोई हुआ मैं उसी का |
आगे की तो कुछ जानता नहीं हूँ ,
अभी तक तो जीवन से हारा नहीं
हूँ ||
तुम्हारी शपथ
मैं तुम्हारा नहीं हूँ |
२
जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम विश्वास बहुत है ||
ओ जीवन के थके पखेरू बढ़े चलो हिम्मत मत हारो ,
पंखों में भविष्य बंदी है ,मत अतीत की ओर निहारो |
क्या चिता धरती यदि छूटे , उड़ने को आकाश बहुत है |
जाने क्यों तुमसे मिलने की
आशा कम विश्वास बहुत है ||
बलवीर सिंह रंग
३