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स्वर्ग में क्या है जो नारी में नहीं है-----एक लेख क का कहना है कि विधाता ने पुरुषोंको संतुलित व् सामान्य रखने के लिए स्त्रियों को बनाया है | अगर ये न होतीं तो हमपशु वत होते | स्वर्ग में क्या है जो नारी में नहीं हैं | प्यार , ममता , सहानुभूति ,दया, बलिदान सभी तो इनमें
नारी के प्रति दृष्टि कोण ------ एक लेख क का कहना है कि ईश्वर ने नारी की आँखों में दो दीपक रख दिये हैं जिससेसंसार के भूले भटके लोग उनके प्रकाश में अपना खोया हुआ मार्ग खोज सकें | अज्ञात
ईश्वर कभी कभी अपनेबच्चों की आँखों को आंसुओं से धोता है , जिससे वो उसकी सृष्टी की सभीकृतियों को सदैव स्वच्छ दृष्टि से देखतेरहें और यदि कोई किसी प्रकार का विषाक्तधूल का कण आँख में आ गया हो तो वह भी स्वच्छ हो सके |
गीत कुसुमसिन्हा ( बुलंदशहर ) एक उजलीदृष्टि अन्तर में समाई | बिन बुलायेतीर्थ मेरे द्वार आया , बिन छुए पावन हुई है मोह माया , एक भोलीभावना गंगा नहाई |फूल से वरदान आंचल में पड़े हें ,पुण्य केफल सामने आकर
एकबड़े कक्ष में देश के बड़े बड़े नेताओं के बहुत से चित्र लगे हैं | एक बच्चा अपनी माँके साथ चित्र देखता हुआ जब गांधी जी के चित्र के सम्मुख पहुंचता है तो वह अपनी माँसे पूछता है --- चरवाहे सी लाठी पकड़े चिकनी पतली छोटी, बप्पाजैसी घड़ी , कमर में ताऊ जैसी धोती
तुम्हारी शपथ मैं तुम्हारा नहीं हूँ ,भटकती लहर हूँ किनारा नहीं हूँ || तुम्हारा ही क्या , मैं नहीं हूँकिसी का , मुझे अंत तक दुःख रहेगा इसी का | किया एक अपराध मैंने जगत में , नहीं जिसका कोई हुआ मैं उसी का | आगे की तो कुछ जानता नहीं हूँ , अभी तक तो जीवन से हार
तुमसे अच्छी यादतुम्हारी | अहवाह्न पर आ जाती है ,आकुल मन बहला जाती है | मेरा अद्वेत द्वेत बनकर , हर लेता मन की लाचारी | तुमसे अच्छी याद तुम्हारी | चुप चुप हरो व्यथा भार तुम सगुण बनो या निराकार तुम | आराधन निर्गुण का करते , प्रिय
गजल सोचता हूँ अब क्या किया जाये ,कब तलक इस तरह जिया जाये |प्यास आबे हयात से बुझी जहर अब कौन सा पिया जाये |मेरी रुसवाइयों के बारे में ,आपका नाम क्यों लिया जाये |तुझको प्यासों की तिश्नगी की कसम ,जाम खाली है भर दिया जाये |इन्कलाबे बज्म में यारो ,कुछ नया रंग भर दिय
भारत में जोभी मरे स्वर्ग को सीधा जाय , फिर विधाताने भला , क्यों नर्क दिया बनाय वहाँ क्याभैंस बधेंगी , वहाँ क्या भैंस बधेंगी | सबरस २ यात्री बोलेअकड़ कर इसका क्या है अर्थ , घेर कर तुमपड़े हुए चार सीट की बर्थ , चार सीट कीबर्थ ,यात्
हमीं को कत्ल करते हैँ , हमीं से पूछते हैँ वो , शहीदे नाज बतलाओ मेरी तलवार कैसी है |
मुक्तक भाग्य में अपने क्या बस काली रात है , नयन ने पाई आंसू की सौगात है |बस ऊंचे पेड़ों तक आता उजियारा , गाँव में अपने उगता अजब प्रभात है