कविताएँ , कहानी शब्दचित्र , मुक्तक आदि
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चाक दामन तो सभी सीते हैं मयक़दे में तो सभी पीते हैं दिल में एक दर्द बसालें तो जियें यूँ तो जीने को सभी जीते हैं
कहीं डूबी हुई रंगीनियों में शाम होती है कहीं पर हर सुबह एक मोत का पैगाम होती है मगर कुछ लोग दुनियाँ में यहाँ ऐसे भी जीते हैं न जिनकी सुबह होती है न कोई शाम होती है
क्या भ्र्ष्टाचार किसीने बोलो रोका है छल झूट भरे वादों कथनों को टोका हैमैली बनियान सफेदी से ढकने वालो कितना हो छोटा , धोका तो पर धोका हैमैंने उगता छिपता सूरज देखा है क्षितिज नहीं कुछ भी बस भृम की रेखा है तुम शासन के प्रगति आंकड़े मत बांचो भोग रहे जो बस वो असली लेखा हैLikeCommentShare</form>
प्यार पाने का नहीं कुछ खोने का नाम है हर भावना बलिदान की सँजोने का नाम है तुम इसे अधरों से कहकर मत करो जूठा यह तो मौन व्यवहार में सँजोने का नाम है
शुभ दिन शुभ दिन जपने से क्या अँधेरी छट जायेगी पथ बुहारने से पल भर क्या मलिनता मिट जायेगी हर विकार का मूल स्रोत जो स्वच्छ प्रथम वह मन करो फिर गन्दगी तो सब स्वम् ही हर जगह हट जायेगी
काश इंसान ये सरल सी बात कभी समझ पाता तो कितने ही अंजान दुखों से स्वयं उबर जाता तुम प्यार उपकार दुआओं का धन जुटाते रहना बुरा वक्त कभी दस्तक देके द्वार पर नहीं आता
धनवान बनने के लिए क्या नहीं करते हैं लोग हर खास पद उनको मिले ,जाल नित बुनते हैंलोग पर येजीवन ही नहीं , कई जन्म संवरते जिससे नेकइन्सान बनने की , कितना सोचते हैं लोग
फूलकली न हों तो चमन नहीं होता सूरचन्द्र के बिना गगन नहीं होता वह सबसे अभागा गरीब है जग में जिसके पास प्यार का धन नहीं होता
अंधेरों के दुःख दर्द सूरज से कहते हो तुम नाव कैसे डूबी लहरों से पूछते हो तुम छल से जिस मगर ने सब खाई चुरा के मछली सत कथन की उससे क्या उम्मीद करते हो तुम जिन्दगी एक दर्द भी हैगीत भी है जिन्दगी एक हार भी हैजीत भी है
जिन्दगी एक दर्द भी हैगीत भी है जिन्दगी एक हार भी हैजीत भी है तुम इसे यदि प्यार कामधुर साज समझो तो ये सौ खुशियों भरासंगीत भी है
कैसा हुआ विकास किसी गाँव में रह कर देखो कितना कौन खुश है बुजुर्गों से पूछ कर देखो स्वतन्त्रता से अब तक हर जन हित की योजना ने निर्धनों को क्या दिया झुग्गियों में जाकर देखो
हर फूल डाल पर खिलता है बस झरने के लिए हर दीप रातभर जलता है बस बुझने के लिए आत्मा तोएक मुसाफिर है सराय में तन की कुछ देर ठहरतीहै मंजिल पर पहुचने के लिए
हर भ्रष्टको सजा दो शासन से कहते हो तुम काला धनकहाँ है संसद से पूछते हो तुम पंक रंजितपग कभी क्या धर्म पथ पर चलें हैं क्योंअसंगत बात पर ज़िद इतनी करते हो तुम
पहले तो बांटा मजहब के नाम पर हमें फिर भाषा प्रांत जाति के आधार पर हमें फिरभी न मन भरा तो ये अब देख रहें हैं आरक्षणसे और टुकड़ों में बाँट कर हमें
तुमकभी खुद से बीते कल का सवाल मत करना कुछ सुनहरे ख्वाब बिखरने का मलाल मत करना जिन्दगी अश्कों से नहीं हिम्मतों से चलती है जो गुजर गया उसका ज्यादा खयाल मत करना
दो मुक्तक १ जाने कैसाघुटन भरा अँधेरा है , सक
मुक्तक प्यार तो निर्मल बरन है चन्द्रमा का ,एक आभूषण है पावन आत्मा का | स्वार्थ की कुदृष्टि तुम इस पर न डालो ,प्यार तो पर्याय है परमात्मा का | २ हर फूल डाल पर खिलता है बस झरने के लिए , हर दीप रात भर जलता है बस बुझने
सच बोलने का जिनमें साहस नहीं ,किस श्रेणी में उनको रखा जायेगा |देश से अधिक जिनको धन पद प्रिय ,इतिहास में उन्हें क्या लिखा जायेगा |
फूल कली न हों तो चमन नहीं होता , सूर चन्द्र के बिना गगन नहीं होता | वह सबसे अभागा गरीब है जग में , जिसके पास प्यारका धन नहीं होता
जो झंझावातों से खेले बस वह उपवन मुस्काता है ,तिल तिल जलकर ही हर दीपक मंगल उजियारा पाता है |मेरे पथ के शूल देख कर , मत आंसू आँखों में लाओ , मैंने जीवन- सिन्धु मथा है , मुझे गरल पीना आता है
छल की . गर्व कीआयु बहुत छोटी होती है , जीते जी हीजिन्दगी कफन ओढ़ लेती है | सदभाव की सुगंधपर कई युग नहीं जाती मृत्यु के भी बाद बहुत दुनियांयाद करती है |
पन्थ कोई भी होअहम सत्संग ध्यान होता है , व्यक्ति धन पद से नहीं कर्म से महान होता है | जिसकी आयु केलिए हर दीन दुखी दुआ मांगे , सच्चेअर्थों में बस वह ही इन्सान होता है |
जब कोई पास रहता है हमें , सौ कमीनजर आती हैं , नित उभरती हजार अच्छाई भी दृष्टि से फिसल जाती हैं | पर जब वह दूर बहुत दूर चला जाता हैकहीं हमसे , तो याद ही नहीं आता बहुत , आँखें भी डबडबातीं हैं |
झंडा गीत यह है अपना अमर तिरंगा , भरतामन में उल्लास है , हररंग में भूगोल है इसके , हर रंग में इतिहास है | ऊपर भगवा रंग कह रहा , अपनी भू पर्वत वाली | अगणित अनुपम बलिदानों की , झलक रही रज में लाली |
जिस देश में शिक्षक का मन घायल हो , उसकातुम भविष्य अँधेरे में स
मानव जब राह भटक जाता , -नैतिक मूल्यों से हट जाता , - तब मानवता अपने पावन आदर्श बता उससेकहती -
मैं तो ऐसा दीप कि जिसको , झंझावातों में जलना है | मुझे दिया अभिशापकिसी ने , जीवन भर ज
सच अभी भी मरा नहीं है , झूठ भी पर डरा नहीं है | यह भी सच है आदमी अब ,पूर्व जैसा खरा नहीं है |
जाने कैसा घुटन भरा अँधेरा है , सकल कारवां विपदाओं ने घेरा है | पथ दर्शक सब दरबारी चारण हुये , किससे पूछें कितनी दूर सवेरा है | 2 मैंने उगता छिपता सूरज देखा है ,क्षितिज नहीं कुछ भी बस भ्रम की रेखा है | तुम शासन के प्रगति आंकड़े
<p> गीत</p> <p> तब मैं गीत लिखा करता हूँ |</p> <p> &nbs