मुक्तक
भाग्य में अपने क्या बस काली रात है ,
नयन ने पाई आंसू की सौगात है |
बस ऊंचे पेड़ों तक आता उजियारा ,
गाँव में अपने उगता अजब प्रभात है
२
मैंने उगता छिपता सूरज देखा है ,
क्षितिज नहीं कुछ भी बस भ्रम की रेखा है
तुम शासन के प्रगति आंकड़े मत बांचो ,
भोग रहे जो बस वह असली लेखा है |
आलोक सिन्हा ---
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