15 अप्रैल 2022
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क्या लिखूं पहचान अपनी कलम सब बयां कर ही देगीD
एकाकी मन और भीड़ सघनचाह कि ,मन की व्यथा बताएंपर देखा तो कोई नजर न आए वात्सल्य से कुंठित हृदय जो था अब निर्मम जग से संधित है विलगन की है चाह अधम पर कर्तव्यों से वो क
मन पंख पसारे उड़ता है ख्वाबों के बादल बुनता है, है डगर नहीं आसान कोई पर मन को अब ये फिक्र नहीं धरती से नाता तोड़-मोड़ बस आसमान को सुनता है मन पंख पसारे उड़ता हैख्वाबों के बा
तुम्हारा प्रेम.....मेरे लिए ईश्वर के समान था...परंतु अब लगता है ,की मैं नास्तिक हो रही हूं !! ✍️ प्रियंका विश्वकर्मा
जीवन की हूं उस राह पर जहांछोड़ना आसान नहीं और पाना तुम्हें नामुमकिन सासुनो ... गर मैं कहूंके साथ ये बस यहीं तक था प्रियअब फिर मिलेंगे हम कभीजहां है नूर तारों का बिखरता प्रियसुनो गर मैं कहूं कीसाथ