जीवन की हूं उस राह पर जहां
छोड़ना आसान नहीं
और पाना तुम्हें नामुमकिन सा
सुनो ... गर मैं कहूं
के साथ ये बस यहीं तक था प्रिय
अब फिर मिलेंगे हम कभी
जहां है नूर तारों का बिखरता प्रिय
सुनो गर मैं कहूं की
साथ अब न चल सकूंगी
मैं तुम्हारे,क्योंकि
सांस अब थमने को है
तो बोलो भला
क्या तन्हाइयां अपनी
मेरी यादों के संग बांट लोगे
है अंतिम मेरी अब ये घड़ी
सांसें भी हैं अब चंद बाकी
बोलो अगर मैं न रही
साथ छूटा मेरा तुमसे
तो क्या माफ मुझको कर सकोगे
उस अंबर के ऊपर हैं जहां जो
वहां राह तुम्हारी मैं तकू ?
तो बंधन धरा से मुक्त होकर
पास मेरे आ सकोगे?
जीवन में जो है प्रेम दिया
आखिर मोल उसका चुका सकोगे
गोद में मैं तुम्हारे ये सांस अंतिम ले सकूं
मेरी जीवन के अंतिम से इस क्षण में
क्या साथ मेरा निभा सकोगे ?
सुनो गर मैं कहूं..
के रूह अब साथ छोड़ रही
और सांस भी खफा सी है
क्या प्रेम से सज्य आंखों से
तुम मुझे अलविदा कहने आ सकोगे
है मेरी ये अंतिम इच्छा
क्या पूरी तुम कर सकोगे ??
क्या पूरी तुम कर सकोगे ??
✍️ प्रियंका विश्वकर्मा