shabd-logo

"कर सकोगे "??

2 मई 2022

31 बार देखा गया 31

जीवन की हूं उस राह पर जहां
छोड़ना आसान नहीं 
और पाना तुम्हें नामुमकिन सा

सुनो ... गर मैं कहूं
के साथ ये बस यहीं तक था प्रिय
अब फिर मिलेंगे हम कभी
जहां है नूर तारों का बिखरता प्रिय

सुनो गर मैं कहूं की
साथ अब न चल सकूंगी
मैं तुम्हारे,क्योंकि 
सांस अब थमने को है
तो बोलो भला
क्या तन्हाइयां अपनी
मेरी यादों के संग बांट लोगे

है अंतिम मेरी अब ये घड़ी
सांसें भी हैं अब चंद बाकी
बोलो अगर मैं न रही 
साथ छूटा मेरा तुमसे 
तो क्या माफ मुझको कर सकोगे

उस अंबर के ऊपर हैं जहां जो
वहां राह तुम्हारी मैं तकू ?
तो बंधन धरा से मुक्त होकर
पास मेरे आ सकोगे?

जीवन में जो है प्रेम दिया
आखिर मोल उसका चुका सकोगे
गोद में मैं तुम्हारे ये सांस अंतिम ले सकूं
मेरी जीवन के अंतिम से इस क्षण में
क्या साथ मेरा निभा सकोगे ?

सुनो गर मैं कहूं..
के रूह अब साथ छोड़ रही 
और सांस भी खफा सी है
क्या प्रेम से सज्य आंखों से 
 तुम मुझे अलविदा कहने आ सकोगे

है मेरी ये अंतिम इच्छा  
क्या पूरी तुम कर सकोगे ??
क्या पूरी तुम कर सकोगे ??

✍️ प्रियंका विश्वकर्मा
कविता रावत

कविता रावत

प्रेम में विवशता की भाषा नहीं विश्वास की भाषा समझता है, जहाँ प्रेम होता है वहां दो दिल दो नहीं एक रहते हैं तभी तो कबिरा कह गए हैं - प्रेम गली अति सांकरी, जा में दो न समाय

6 मई 2022

Astha Singhal

Astha Singhal

बेहतरीन रचना 👌👌👍👌 मेरी पुस्तक अंखियों के झरोखों से पढ़कर समीक्षा करें।

6 मई 2022

Monika Garg

Monika Garg

बहुत सुंदर रचना मेरी रचना पढ़कर समीक्षा दें https://shabd.in/books/10085785

3 मई 2022

Priyanka Vishwakarma

Priyanka Vishwakarma

3 मई 2022

बहुत बहुत धन्यवाद मैम 🙏🏻😊

4
रचनाएँ
💞कोरे पन्ने💞
0.0
नमस्कार दोस्तो 🙏🙏 यह मेरे द्वारा लिखा गया एक काव्य संग्रह है,अगर आप भी हिंदी साहित्य में रुचिकर हैं तो आशा करती हूं की आपको यह पुस्तक और इसके सभी लेख आपके मन को अवश्य छू जायेंगे 🙏🙏💞💞💞😊😊😊
1

वेदना पुरुष की

11 अप्रैल 2022
3
2
4

एकाकी मन और भीड़ सघनचाह कि ,मन की व्यथा बताएंपर देखा तो कोई नजर न आए वात्सल्य से कुंठित हृदय जो था अब निर्मम जग से संधित है विलगन की है चाह अधम पर कर्तव्यों से वो क

2

मन पंख पसारे उड़ता है

12 अप्रैल 2022
3
1
4

मन पंख पसारे उड़ता है ख्वाबों के बादल बुनता है, है डगर नहीं आसान कोई पर मन को अब ये फिक्र नहीं धरती से नाता तोड़-मोड़ बस आसमान को सुनता है मन पंख पसारे उड़ता हैख्वाबों के बा

3

तुम्हारा प्रेम

15 अप्रैल 2022
0
0
0

तुम्हारा प्रेम.....मेरे लिए ईश्वर के समान था...परंतु अब लगता है ,की मैं नास्तिक हो रही हूं !! ✍️ प्रियंका विश्वकर्मा

4

"कर सकोगे "??

2 मई 2022
3
0
4

जीवन की हूं उस राह पर जहांछोड़ना आसान नहीं और पाना तुम्हें नामुमकिन सासुनो ... गर मैं कहूंके साथ ये बस यहीं तक था प्रियअब फिर मिलेंगे हम कभीजहां है नूर तारों का बिखरता प्रियसुनो गर मैं कहूं कीसाथ

---

किताब पढ़िए