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वेदना पुरुष की

11 अप्रैल 2022

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एकाकी मन 
और भीड़ सघन
चाह कि ,
मन की व्यथा बताएं
पर देखा तो कोई नजर न आए
 वात्सल्य से कुंठित
 हृदय जो था
 अब निर्मम जग से संधित है
 विलगन की है चाह अधम 
 पर कर्तव्यों से वो कुंठित है
 दूर दराज के शहर निकलते
 जब पेट की अग्नि जलाती है
 इस निर्मोही से शहर में यारा
 अब गांव की याद सताती है
 बालक बनकर जन्मे हैं हम
 अब घर में कहाँ ठिकाना है
 दो जून की रोटी नहीं है काफी
गांव में पक्का मकान भी बनवाना है
एक स्त्री की व्यथा तो फिर भी
बन कर के आंसू बह जाए
पर पुरुष बेचारा , कर्तव्यों का मारा
कैसे अपने घाव दिखाए !!

भारती

भारती

बहुत ही बढ़िया

11 अप्रैल 2022

Priyanka Vishwakarma

Priyanka Vishwakarma

12 अप्रैल 2022

बहुत बहुत धन्यवाद मैम 🙏😊

11 अप्रैल 2022

Priyanka Vishwakarma

Priyanka Vishwakarma

12 अप्रैल 2022

बहुत बहुत धन्यवाद मैम 🙏😊

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रचनाएँ
💞कोरे पन्ने💞
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नमस्कार दोस्तो 🙏🙏 यह मेरे द्वारा लिखा गया एक काव्य संग्रह है,अगर आप भी हिंदी साहित्य में रुचिकर हैं तो आशा करती हूं की आपको यह पुस्तक और इसके सभी लेख आपके मन को अवश्य छू जायेंगे 🙏🙏💞💞💞😊😊😊
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मन पंख पसारे उड़ता है

12 अप्रैल 2022
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मन पंख पसारे उड़ता है ख्वाबों के बादल बुनता है, है डगर नहीं आसान कोई पर मन को अब ये फिक्र नहीं धरती से नाता तोड़-मोड़ बस आसमान को सुनता है मन पंख पसारे उड़ता हैख्वाबों के बा

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तुम्हारा प्रेम

15 अप्रैल 2022
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तुम्हारा प्रेम.....मेरे लिए ईश्वर के समान था...परंतु अब लगता है ,की मैं नास्तिक हो रही हूं !! ✍️ प्रियंका विश्वकर्मा

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"कर सकोगे "??

2 मई 2022
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जीवन की हूं उस राह पर जहांछोड़ना आसान नहीं और पाना तुम्हें नामुमकिन सासुनो ... गर मैं कहूंके साथ ये बस यहीं तक था प्रियअब फिर मिलेंगे हम कभीजहां है नूर तारों का बिखरता प्रियसुनो गर मैं कहूं कीसाथ

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