मन पंख पसारे उड़ता है
ख्वाबों के बादल बुनता है,
है डगर नहीं आसान कोई
पर मन को अब ये फिक्र नहीं
धरती से नाता तोड़-मोड़
बस आसमान को सुनता है
मन पंख पसारे उड़ता है
ख्वाबों के बादल बुनता है
चाहे राहों में काँटों हो जितने
चाहे बैरी बन चट्टान मिले
अब कदम नहीं पीछे लेगें
चाहे कोई सिंघों से बलवान मिले
चाहे विरुद्ध लहरों के चलना हो
अब धैर्य नहीं खो सकता है
मन पंख पसारे उड़ता है
ख्वाबों के बादल बुनता है
अंधियारों की अब डर कैसा
जब नजर चाँदनी पे रहती हो
मीलों की अब फिक्र हो कैसी
जब मंजिल आँखों में बसती हो
आलोचनाओं से डरूं में अब क्यों
जब संघर्षों से इसका नाता है
मन पंख पसारे उड़ता है
ख्वाबों के बादल बुनता है।
✍️ प्रियंका विश्वकर्मा
ख्वाबों के बादल बुनता है।