अकेला होता हूँ तो करता हूँ तुझे याद,
महफ़िल में होता हूँ तो करता हूँ तेरी बात.
सुबह, दिन, शाम हो या हो काली रात,
हर वक्त रहता है तेरे आने का इंतज़ार.
भूल नहीं पाता वक्त जो गुज़रा तेरे साथ,
धुंधला ना जाए यादे करता हूँ तेरी बात.
जानता हूँ नामुमकिन है यूँ मिलन अपना,
फिर भी रहेगी उम्मीद आखिरी दम तक.
शमा सीने में तेरी याद की जला रखी है,
वस्ले-यार की एक उम्मीद जगा रखी है. (आलिम)