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वीर गोगाजी महाराज

25 जनवरी 2023

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राजस्थान के लोक देवता हैं जिन्हे जाहर पीर के नाम से भी जाना जाता है। हनुमानगढ़ जो की राजस्थान का एक जिला है और जो भादरा विधानसभा क्षेत्र का एक शहर गोगामेड़ी जिसे धुरमेड़ी के नाम से भी जाना जाता है। यहां भादों कृष्णपक्ष की नवमी को गोगाजी देवता का मेला लगता है। इन्हें हिन्दू और मुसलमान दोनो भी पूजते हैं। गुजरात मे रेबारी (Rewari) जाती के लोग गोगाजी को गोगा महाराज केे नाम सेे बुलाते है।

गोगाजी गुरुगोरख नाथ के परम शिष्य थे। गोगाजी का जन्म विक्रम संवत 1003 में चुरू जिले के तारा नगर तहसील ददरेवा गाँव में एक प्रतिष्ठित राजपूत परिवार के बिच हुआ था। पर इन्हे सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग मात्था टेकने के लिए दूर-दूर से आते हैं। कायम खानी जो की एक मुस्लिम समाज है वह गोगोजी को जाहर पीर के नाम से पुकारते हैं तथा उक्त स्थान पर मत्‍था टेकने और मन्नत माँगने दूर दूर से आते हैं। इस तरह यह स्थान हिंदू और मुस्लिम एकता का प्रतीक बताया गया है। मध्यकालीन महापुरुष गोगाजी हिंदू, मुस्लिम, सिख संप्रदायों की श्रद्घा अर्जित कर एक धर्मनिरपेक्ष लोक देवता के नाम से पीर के रूप में प्रसिद्ध हुए थे । गोगाजी का जन्म राजस्थान के चुरू चौहान वंश के शासक जैबरजी (जेवरसिंह) की पत्नी बाछल कंवर के गर्भ से गुरु गोरखनाथ जी के वरदान से भादो सुदी नवमी को हुआ था। चौहान वंश में राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा हुआ करते थे। गोगाजी का राज्य सतलुज सें हांसी (जो की हरियाणा में है) तक था। 

जाहरवीर बाबा की जीवन कथा

जाहर वीर की माता का नाम बाछल था। और पिता का नाम राजा जेवर सिंह था। जो ददरेवा में राज्य किया करते थे, पर राजा जेवर सिंह के कोई संतान न होने की वजह से उन्हें प्रजा के लोग मनहूस कहा करते थे। राजा जेवर इस बात से बहुत परेशान और दुखी रहा करते थे, तथा वह जहां भी जाते थे, वहां के लोग उन्हें ताना दिया करते थे।

नौलखा बाग

एक बार जब राजा जेवर ने अपने बाग में 900000 पेड़ लगवाए, जिससे उस बाग का नाम नौलखा बाग पड़ गया। उसकी रखवाली के लिए उन्होंने माली और मालन को भी रखा हुआ था, कुछ समय के बाद जब उन बाग के पेड़ों पर फल लगे, तो माली और मालन ने सोचा क्यों ना ये फल राजा जेवर को जा कर दे दूं, तब माली वह फल लेकर राजा के पास जाता है, तथा राजा के दरबार में फल ले जाकर रख देता है, और माली राजा से बोला हे राजन ! आपके बाग से कुछ पके हुए फल लाया हूं, इस बात पर राजा बहुत ही प्रसन्न हुए और आज हम अपने बाकी बचे फलों को अपनी जनता के साथ बाँटना चाहते हैं, अब राजा जेवर अपने बाग की तरफ जाते हैं, तो बाग की जमीन में कदम रखते ही सारा का सारा बाग सूख जाता है, इस पर राजा अत्यंत ही दुखी होते हैं।

नौलखा बाग का फिर से हरा होना

एक बार जब गुरु गोरखनाथ अपनी समाधि से उठकर ददरेवा नगरी की ओर प्रस्थान करते हैं। तो रास्ते में उन्हें नौलखा बाग दिखाई पड़ता है, तथा वह वहां पर वह अपनी समाधि जमा लेते हैं, इस पर गुरु गोरखनाथ जी सभी शिष्य हंस कर बोलते हैं, कि हे गुरु गोरखनाथ इस सूखे हुए जंगल में कंद मूल फल कहीं से नहीं मिलेंगे। इस बात पर गुरु गोरखनाथ ने हंसकर जवाब दिया। लो यह मेरे कमंडल से थोड़ी धूनी ले जाओ, इसको जो भी पेड़ सुखा हुआ है सब पर मार देना, शिष्यों ने ऐसा ही किया और जो बची हुई धूनी थी उसको सूखे पेड़ पर डाल दिया, इतना करते ही सभी वृक्ष और कुएं 12 साल से सूखे हुए पड़े थे, उनमें पुनः पानी आ जाता है, तथा पेड़ भी हरे भरे हो जाते हैं । 

माता बाछल का घोर तप 12 वर्षो तक

महारानी बाछल पुत्र प्राप्ति के लिए बाबा गुरु गोरख नाथ की 12 सालो तक तपस्या करती है । फ़िर एक दिन बाबा गुरु गोरख नाथ महारानी बाछल की तपस्या से खुश हो कर वहा आते है । ददरेवा नगरी में अपने सेषीयो के साथ फ़िर वो बागड़ में जो राजा के बाग हुआ करते थे वहा आकर बैठ जाते है । और रानी बाछल को अपने पास आने का निमन्तरण देते है । फ़िर अगली सुबह वहा रानी के बहन काछल आ जाती है । और बाबा गुरु गोरख नाथ से प्रथना करते हुऐ संतान का वर मांगती है । फ़िर बाबा गोरख नाथ । उसे दो फल देते हुए दो पुत्र का वरदान देते है । और कहते है की तुम अपने पुत्रो का नाम अर्जन और सर्जन रखना ये दुनिया में तुम्हरा नाम रोसन करेंगे । 

माता बाछल को गुरु गोरख नाथ का वरदान

और वो वरदान ले कर वह से चली जाती है । फ़िर गोरख नाथ वह से चलने लगे है । तब वहा महारनी बाछल आती है । और गुरु गोरख नाथ से कहती है बाबा मैने 12 सालो से आपकी पूजा अर्चना की है आप मुझे इस तरह छोड़ कर नहीं जा सकते हो । तब गुरु गोरख नाथ ने रानी बचल को ये वरदान दिया की उसके से एक बहुत ही भाग्य साली पुत्र होगा । जो दुनिया में नाम रोसन करेगा । पूरी दुनिया उसे गोगा जी,जाहरवीर पीर के नाम से भी जानेगी ।

माता बाछल को जाहरवीर गोगा जी के जन्म का वरदान

जब माता बाछल को गुरु गोरखनाथ के बारे में पता चला कि वह उनके नौलखा बाग में आए हुए हैं, और जब माता बाछल को पता चला कि नौलखा बाग भी पहले की तरह हरा-भरा हो गया है, तो वह सुंदर-सुंदर पकवान बनाकर गुरु गोरखनाथ जी के पास जाने की तैयारी करने लगी, और प्रातः उठकर गुरु गोरखनाथ जी के पास पहुंच जाती है, और गुरु गोरखनाथ जी से कहती हैं की गुरु गोरखनाथ महाराज मैंने आपकी 12 वर्ष तपस्या की है। कृपया मुझे पुत्र प्राप्ति का वरदान दीजिये। मेरे भाग्य में सात जन्म तक कोई भी संतान की उत्पत्ति नहीं होगी ऐसा लिखा है। कृपया मुझे पुत्र प्राप्ति की वरदान दे प्रभु, इस पर खुश होकर गुरु गोरखनाथ जी ने माता बाछल को एक बहुत ही चमत्कारी पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया ।

जाहरवीर गोगा जी का जन्म

जाहरवीर गोगा जी का जन्म चढ़ते भाद्रपद को राजस्थान के ददरेवा नाम गांव में हुआ था। जो सादुलपुर गांव के निकट में है। इनकी माता का नाम रानी बाछल था । और पिता का नाम जेवर सिंह चौहान था । जो बहुत ही दयावान, न्याय करने वाले व्यापक राजा थे। बाबा जाहरवीर के जन्म के दौरान ही प्रकृति का मानो ऐशा नजारा प्रतीत हो रहा था , कि जैसे बाबा जाहरवीर के जन्म की पूरी कायनात कर रही है । इनके जन्म लेने के बाद मानो की पूरी नगरी में उत्साह की लहर दौड़ गई हो । राजा की जनता बहुत ही खुश हो रही थी । डाभी जगह खुशी का माहौल था । इनको बचपन से ही बड़े प्यार से पाला गया था । जब ये बड़े होने लगे तो इनके सभी विधा सेखानी शुरु कर दी । बाबा जाहरवीर के जो गुरु थे । उनका नाम बाबा गुरु गोरख नाथ था । यह उनके प्यारे शीयों में से एक थे । इन्होने सब्भी विषय में महारथ हासिल का ली । बाबा जाहरवीर जो थे ये चौहान वंश के राजा थे । जिस वंश के राजा प्रथवी थे ये उन वंश के दुशरे राजा थे । बाबा जाहरवीर के दादा जी का नाम महाराज उमर सिंह था ।

जाहरवीर का गोगाजी नाम कैसे पड़ा

जाहरवीर बाबा का गोगा जी नाम इस तरह पड़ा, कि जब रानी बाछल गुरु गोरखनाथ के पास पुत्र प्राप्ति का वरदान लेने गई थी, तब उनके भाग्य में पृथ्वी पर सातों जन्म तक कोई भी संतान उत्पत्ति नहीं होना नहीं था, तब गुरु गोरखनाथ जी ने समुद्र के मार्ग पाताल लोक जाकर नाग नागिन से गूगल फल मांगा, जो पदम नगर में तारी नाग और नागिन के पास था, तो जब गुरु गोरखनाथ ने वह गूगल मांगा, तो उन्होंने गोरखनाथ जी को गूगल देने को साफ मना कर दिया, इस पर गोरखनाथ जी ने उन्हें बिन के नशे में बेहोश कर गूगल को चुरा कर ले आए। और वह गूगल माता बाछल को दे दिया था। गूगल फल के कारण ही उनका नाम गोगाजी रखा गया था !

गोगा जी का विवाह

गोगाजी महाराज का विवाह कुंतल देश की एक महारानी रानी सीरियल के साथ हुआ था। रानी सीरियल को बाबा गोगाजी सपने में दिखाई दिए थे। और सपने में रानी सीरियल ने गोगाजी के साथ तीन फेरे ले लिए थे। और तभी से बाबा गोगा जी महाराज अर्ध विवाह के पवित्र बन्धन में बद्ध गए थे । और जब इस बात का पता महारानी बाछल को पता चला तो उन्होंने कहा यह चौहान परिवार को शोभा नहीं देता इस कष्ट के लिए तो इस पर माता बाछल ने गोगा जी को बहुत ही धमकाया। गोगाजी का विवाह केमल दे (सीरियल) के साथ हुआ एक दिन सर्प के काटने से केमल दे की मृत्यु हो गई इस वजह से गोगा जी बहुत अधिक क्रोधित हुए। उन्होंने सभी सम्पूर्ण सांपो को मारने का निश्चय कर लिया और सर्पों को मारने के लिए यज्ञ करने लगे। उनको यज्ञ करता देख सभी देवता घबराने लगे और सोचने लगे कि इस प्रकार तो पृथ्वी से सभी सांपो का अंत हो जाएगा।
तभी नारद मुनि भगवान शनिदेव और इंद्र गोगाजी के पास आए और उन्होंने यज्ञ को रोकने की विनती की और उन्होंने गोगा जी की पत्नी के केमल दे को जीवनदान दिया और साथ ही यह वरदान भी भी दिया कि किसी भी व्यक्ति को यदि सांप काट लेता है तो आपके स्थान पर आने से उसका इलाज हो जाएगा। तभी से जाहरवीर गोगा जी को सांपों के देवता के रूप में भी जाना जाने लगा। 

अर्जन और सर्जन की मृत्यु

माना जाता ही की जब गोगा जी की शादी हो गई थी । तब उनके जो मोसेरे भाई थे । वै उनसे बहुत ही ज्यादा जलते थे । और उनकी माता काछल भी बाबा जी से नफरत करती थी । वै चाहती थी की सारा राज्य सिर्फ उनके दोनों पुत्रो को ही मिले। इसलीय वे अपने पुत्रो को बाबा गोगा जी के खेलाफ भड़काया करती थी । एक दिन गोगा जी की पत्नी ने बागड़ में सावन के महीने में झूला जुलने के ले अपनी माता बचल से आज्ञा मागी तब माता ने जाने दीया जब वह अपनी सखियों के साथ वहा गई । तो राजा अर्जन और सर्जन ने उनके वहा जुलने से माना कर दिया । और वह वह से आ गई और सारी बात माता बाचल से कही । माता ने गोगा जी से ये बात कहने को माना कर दिया । फिर कुछ दिनों बाद एक दिन राजा को दोपहर में बहुत प्यास लगी । तब रानी सेरियल ने कहा की महाराज में आपके लिए पानी ले आती हु । राजा जी ने मना कीया पर रानी नहीं मानी और ठंडा पानी लेने बागड़ के कुए में से पानी लेने चली गई । तभी वहा बागो में अर्जन और सर्जन भी घूम रहे थे ।

फ़िर अर्जन और सर्जन ने रानी सेरियल को वहा आते देखा और चुपके से रानी के साथ दुर्व्यवाहर करने लगे । तब रानी बड़ी मुश्किल से वहा से भाग आई और महल आकर रोने लगी तब राजा गोगा जी ने उन से पूछा की क्यों रो रही हो रानी क्या बात है । तब रानी ने सारी बात बता दी । तब गोगा जी अपने भाइयो पर बहुत गुसा हुए और उन्होंने अपने बागो में जाकर अपने भाइयो से यूद्ध कर दिया। तब उनके हाथो से अर्जन और सर्जन मारे गए। 

महमूद गजनवी से संघर्ष और गोगा जी को वीरगति प्राप्त होना

राजा हर्षवर्धन के समय से ही हिन्दुस्तान के पश्चिमी भूभाग बलूचिस्तान के कोने में एक काला बादल मंडराने लगा था। ये संकेत था हिन्दुस्तान में पर आने वाले उस मजहबी बवण्डर का जिसका इंसानियत से कोई वास्ता नहीं रहने वाला था।लूटमार दरिद्रता वेश्यावृत्ति की कुरीतियों से जकङे तुर्कियों ने इसे मजहब का नकाब पहनाकर हिन्दुस्तान मे जो हैवानियत का खेल खेला,उसे युगों युगों तक भुलाया नहीं जा सकता है । एक हाथ में इस्लाम का झंडा व दुसरे हाथ में तलवार से बेगुनाहो के खुन की नदियाँ बहाता हिन्दुस्तान की तरफ आ रहा था गजनी का सुल्तान महमूद गजनवी हर साल हिन्दुस्तान आता था और लूटमार कर गजनी भाग जाता था!

पहली बार जब महमूद गजनवी हिन्दुस्तान में लूट के इरादे से आया तो उसका मुकाबला तंवर वंशी जंजुआ राजपूत राजा जयपाल शाही के साथ हुआ। धोखाधड़ी से उसने जयपाल को हराया, राजा जयपाल शाही ने अपनी सेना के साथ अन्तिम साँस तक डटकर मुकाबला किया और वीरगती को प्राप्त हुए. 

महमूद गजनवी ने सन 1024 ईस्वी में गुजरात में सोमनाथ के मंदिर को लूटकर रक्त की नदियाँ बहाई और मंदिर को भी तोड़ दिया,जब यह समाचार गोगा जी महाराज को मिला तो बूढे गोगा जी का शरीर क्रोध से थर्राने लगा और उनका खून खोलने लगा…

महमूद गजनवी सोमनाथ पर आक्रमण कर उस अद्वितीय धरोहर को नष्ट करने में सफल रहा लेकिन उसको इतनी घबराहट थी कि वापसी के समय बहुत तेज गति से चलकर अनुमानित समय पूर्व गोगा जी के राज्य के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र मे प्रवेश कर गया।

गोगा जी ने महमूद की फौज से लोहा लेने का निश्चय कर लिया।उन्होंने अपने पोते जिसका नाम सामंत चौहान था जो बहुत ही चतुर था उन सभी राजाओं के पास सहायता हेतु भेजा जिनके राज्यों के रास्ते लूटमार करते हुए गजनवी को सोमनाथ मन्दिर लूटने जाना था। सामंत सहायता के लिए सभी राजाओ से मिले लेकिन हर जगह उसे निराशा ही हाथ लगी।महमूद की फौज गोगामढी की तरफ से गुजर रही थी। मदद की कोई आशा नहीं देखकर गोगा जी ने अपने चौहान भाईयो के साथ केसरिया बाना पहनकर मात्र 900 सिपाहियों के साथ महमूद की फौज का पीछा किया और रास्ता रोक कर.भयंकर युद्ध हुआ गजनवी के लाखों सिपाहियों से लोहा लेते हुए और उनका संहार करते हुए अपनी छोटी सी सेना के साथ गोगा जी महाराज भी वीरगती को प्राप्त हो गये।

ऐसा कहा जाता है जिस स्थान पर उनका शरीर गिरा था उसे गोगामेड़ी कहते हैं यह स्थान हनुमानगढ़ जिले की नोहर तहसील में स्थित है गोगा जी ने आक्रमणकारियों को 12 बार युद्ध कर उन्हें हराया था अफगानिस्तान के बादशाह के द्वारा लूटी गई कई हजारों गायों को उन्होंने बचाया था उनकी वीरता के ही डर से अरब के लुटेरों ने गोधन को लूटना बंद कर दिया था

जब गोगा जी की मृत्यु का समाचार सामंत को मिला तो उन्होंने महमूद की फौज का खात्मा करने की योजना बनाई। उन्होंने ऊटनी पर सवार होकर महमूद की फौज का पीछा किया और मुहम्मद की फौज में रास्ता बताने वाला बनकर महमूद की फौज के साथ शामिल हो गए .भीषण तेज गर्मी और आँधियों के कारण महमूद और उसकी फौज सोमनाथ का रास्ता ही भटक गयी .

तब सामंत ने कहा कि वो सोमनाथ मन्दिर का एक और रास्ता जानता है जिससे कम समय मे ही सोमनाथ मन्दिर पहुंचा जा सकता है.महमूद के पास कोई चारा न था। उसने अपनी पैदल फौज को सामंत के साथ जाने का हुक्म दे दिया.फिर क्या था सामंत चौहान अपनी योजना अनुसार फौज को गुमराह करते हुए जैसलमेर के रेतीले रेगिस्तान में ले गया जहां कोसो की दूरी तय करने पर पानी भी नसीब न हो सके और जैसे ही सामंत को अवसर मिला तो उन्होंने ने अपनी शमशेर खींच ली और हर हर महादेव का नारा बुलंद करते हुए शत्रुओ पर भूखे शेर की तरह टूट पड़े।। 

तभी सामंत ने आँधी ने भी विकराल रूप धारण कर लिया रेतीले टीलों में पहले पीले साँप पाये जाते थे जिन्होंने शत्रुओ का डस डस कर वध कर दिया। और जो बचे वे रेतीले तूफान भीषण गर्मी में जलकर वहीँ स्वाहा हो गये.इस प्रकार सावंत चौहान महमूद की आधी फौज के साथ लड़ते हुआ रेगिस्तान में धरती माता की गोद में समा गया।।

गोगा जी के बारे में मिथ्या।।

ये प्रचार बिल्कुल गलत है कि गोगा जी कलमा पढकर मुसलमान बन गए थे बल्की वो तो गायो को बचाते हुए और तुर्क मुस्लिम हमलावरों से जूझते हुए खुद वीरगति को प्राप्त हो गए थे !

सत्य ये है कि उनके तेहरवे वंशधर कर्मसी(कर्मचन्द) जो उस समय बालक थे को जंगल मे से दिल्ली के फिरोजशाह तुगलक(१३५१-१३८८) उठाकर ले गया था ! फिरोजशाह ने उसे जबरदस्ती मुसलमान बनाकर अपनी पुत्री उससे ब्याह दी और उसका नाम कायंम खान रख दिया और बाद मे ये ही कायंम खान बहलोल लोदी के शासनकाल मे हिसार का नवाब बना था इसी कायम खां के वंशज कायम खानी चौहान (मुसलमान) कहलाए और ये अभी भी गौगा जी की पूजा करते है!

गोगा जी की मान्यता

गोगा जी चौहान को उत्तर भारत मे लोक देवता के रूप मे पूजा जाता है,गोगामेढी पर हर साल भाद्र पद कृष्ण नवमी को मेला लगता है जहां दूर दूर से हिन्दू और मुसलमान पूजा करने आते है!आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गोगाजी की पूजा की जाती है. गोगाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकडी पर सर्प मूर्ती उत्कीर्ण की जाती है. लोक धारणा है कि सर्प दंश से प्रभावित व्यक्ति को यदि गोगाजी की मेडी तक लाया जाये तो वह व्यक्ति सर्प विष से मुक्त हो जाता है.

गोगादेव की जन्मभूमि पर आज भी उनके घोड़े का अस्तबल है और सैकड़ों वर्ष बीत गए, लेकिन उनके घोड़े की रकाब अभी भी वहीं पर विद्यमान है। उक्त जन्म स्थान पर गुरु गोरक्षनाथ का आश्रम भी है और वहीं है गोगादेव की घोड़े पर सवार मूर्ति है.हनुमानगढ़ जिले के नोहर उपखंड में स्थित गोगाजी के पावन धाम गोगामेड़ी स्थित गोगाजी का समाधि स्थल जन्म स्थान से लगभग 80 किमी की दूरी पर स्थित है. 

गोगामेडी में गोगाजी का मंदिर एक ऊंचे टीले पर मस्जिदनुमा बना हुआ है, इसकी मीनारें मुस्लिम स्थापत्य कला का बोध कराती हैं। कहा जाता है कि फिरोजशाह तुगलक सिंध प्रदेश को विजयी करने जाते समय गोगामेडी में ठहरा था। रात के समय बादशाह तुगलक व उसकी सेना ने एक चमत्कारी दृश्य देखा कि मशालें लिए घोड़ों पर सेना आ रही है।तुगलक की सेना में हाहाकार मच गया। तुगलक की सेना के साथ आए धार्मिक विद्वानों ने बताया कि यहां कोई महान सिद्ध है जो प्रकट होना चाहता है। फिरोज तुगलक ने लड़ाई के बाद आते समय गोगामेडी में मस्जिदनुमा मंदिर का निर्माण करवाया।

हरियाणा पंजाब उत्तर प्रदेश राजस्थान में हजारो गाँव में गोगा जी की माडी बनी हुई हैं और उनकी हर जगह हर धर्म और जाति के लोगो द्वारा पूजा की जाती है,उनकी ध्वजा नेजा कहलाती है,गोगा जाहरवीर जी की छड़ी का बहुत महत्त्व होता है और जो साधक छड़ी की साधना नहीं करता उसकी साधना अधूरी ही मानी जाती है क्योंकि मान्यता के अनुसार जाहरवीर जी के वीर छड़ी में निवास करते है।

गोगा नवमी कब होती है ?

भाद्रपद महीने में श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन गोगा नवमी मनाई जाती है। राजस्थान के लोकप्रिय लोक देवता गोगा जी को गोगा, जाहरवीर गोगा, गुग्गा, गोगा पीर, जाहरपीर, गोगा चौहान, गोगा राणा, गोगा बीर, गोगा महाराज और राजा मंडलिक आदि नामों से भी जाना जाता है। हनुमानगढ़ जिले का एक छोटा सा कस्बा है गोगामेड़ी जो की राजस्थान में आता है, भादों कृष्णपक्ष एवं शुक्लपक्ष की नवमी को गोगाजी का मेला बहुत ही उल्लास से साथ मनाया जाता है। इस मेले में श्रद्धालु राजस्थान के अलावा जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश एवं गुजरात आदि जगह से आते हैं। गोगा नवमी को श्री जाहावीर गोगाजी की जयंती के रूप में बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है।

गुरु गोरखनाथ के परमशिष्य गोगाजी महाराज को नागों का देवता भी माना जाता है। इसलिए इस दिन नागों की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस पूजा स्थल की मिट्टी को घर में रखने से सांपों के भय से मुक्ति मिलती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार गोगा जी महाराज की पूजा करने से सर्पदंश का खतरा नहीं रहता है। हिन्दू इन्हें गोगाजी तथा मुसलमान इनको गोगापीर एवं जाहरपीर के रूप में पूजते हैं।

राजस्थान में एक लोगों के अनुसार पाबूजी, हड़बूजी, रामदेवजी, मंगलियाजी और मेहाजी को पांच मुख्य पीर(पंच पीर) माना जाता है। इस जनश्रुति को दोहा के रूप में इस प्रकार से जाना जाता है:

पाबू, हड़बू, रामदे, मांगलिया, मेहा ।
पांचो पीर पधारज्यों, गोगाजी जेहा ॥ 

साभार : https://bhaktivarsha.com/goga-ji-maharaj-jaharveer-baba/  

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वीर गोगाजी महाराज
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इस पोस्ट में हमने जगह जगह से लिए गए सूत्रों की सहायता ली है, हम इसकी पूरी तरह से सत्यता की घोषदा नहीं करते है क्यूंकि हर किताब या व्यक्ति के द्वारा गोगा जी महाराज की अपनी एक अलग कहानी है तो कृपया कर अगर इसमें कोई गलती हुई है तो हमें जरूर आगाह करें। बाकी आप सब खुश रहे यही कामना करते हैं

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