विश्वास के बिना जीवन में कुछ भी सम्भव नहीं है | कुछ भी बड़ा करने के पहले आस-पास विश्वास की दीवार बनानी जरूरी है | वही दीवार आने वाली मुसीबतों से आपकी रक्षा करता है | अपने परिवार को बाँध कर रखने के लिए परिवार के सदस्यों के बीच विश्वास का धागा ही होता है , जो उन्हें जोड़ कर रखता है | इसके द्वारा एक- दूसरे की भावनाओं का भी आदान - प्रदान होता है | जरुरी नहीं है कि आप जिस पर विश्वास करें वह आप के लिए सही हो | उसके दिमाग में चलने वाले फितूर से आप अनभिज्ञ होते हैं | हो सकता है कि वह धोखेबाज हो | लेकिन अपनी खोज बरकरार रखनी चाहिए | ऐसा ही कुछ मेरी इस लघुकथा के किरदार के साथ हुआ -
घंटी बजने पर प्रताप जी ने दरवाजा खोला तो सामने बिहारी को पाया | देखते ही बिहारी उनके पैरों पर गिर पड़ा ,
'' सरकार ! मुझे पाप से बचा लीजिये |''
'' कुछ बताओगे भी | '' उसे उठाते हुए प्रताप जी ने पूछा |
'' मालिक , मैंने आपको धोखा दिया था | मैंने सीसम की जगह आम की लकड़ी सोफे में लगा दी है | पैसा सीसम का ले लिया है |'' हाथ जोड़कर खड़े बिहारी ने कहा |