मेरी डायरी ,
आज मैं अपने विचारों को तुमसे बाँटना चाहती हूँ | अधिकतर बुजुर्गों को देखा है कि उन्हें अपने घर से ज्यादा प्रेम होता है | नानी , दादी और माँ- पापा सभी को देखा है घर के लिए परिवार को छोड़ते | मैं उनके विचारों कस सम्मान करती हूँ | लेकिन खुद के विचारों को उनसे अलग पाती हूँ | मेरा मानना है कि परिवार से घर बनता है, न कि ईंटे पत्थरों से | बच्चों को अपने बड़ों के बारे में मालूम होना चाहिए | उन पलों की मधुर यादें उनके जेहन में हमारा स्वरूप जीवित रखेंगी | हमें भी उनके जीवन के महत्वपूर्ण पलों का आनंद प्राप्त होगा | जब हमारे बच्चे छोटे होते हैं तब हम अपने आय व घर- गृहस्थी के कार्यों में व्यस्त होते हैं | उम्र होने पर वो सभी झमेले खत्म हो जाते हैं और हमारे पास वक्त ही वक्त होता है | उसका सही उपयोग है बच्चों के बीच रहना | भले ही बगल में आशियाना बना लो | बस आज इतना ही |