1 सितम्बर 2024
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अवकाश प्राप्त (भारत सरकार सेवा) ।D
संस्मरण लिखना कठिन कार्य होता है। इसलिए नहीं कि कितना याद है अथवा कितना नहीं अपितु इस वजह से कि अपनी भी त्रुटियों को साफगोई से वर्णित करते हुए कैसे घटनाओं को सबके समक्ष प्रस्तुत किया जाये। यही स्थिति
रवि शंकर जी अपनी माँ के बहुत ही प्रिय थे क्योंकि वो चार भाई और एक बहन में सबसे छोटे थे। उनका अपनी माँ का इतना प्रिय होना उनके एक बड़े भाई के लिए ईर्ष्या का कारण भी बन गया था और वह समय व्यतीत होने के सा
मैं जब पीएचडी कर रहा था तो उस दौरान मुझे अक्सर एनआईसी मुख्यालय जाने की आवश्यकता कम्प्यूटर उपयोग हेतु पड़ा करती थी। इसी समय में वहाँ के कार्यालय के क्रिया कलापों को देख कर मेरी रुचि इस विभाग में उत्पन्न
फैज़ाबाद में कंधारी बाजार वाला मकान हम लोगों के शिफ्ट होते ही तुरंत नहीं बन गया था। कुछ दिन वह जिस स्थिति में था उसी स्थिति में देवेंद्र प्रकाश जी वहाँ रात्रि में अपनी पालतू पेट फीमेल डॉग सिली के साथ ज
रवि शंकर जी अपनी अम्मा जी के बहुत प्रिय थे और अम्माजी उनको 'ननकऊ' कह कर हमेशा सम्बोधित करती थी। लेकिन जब दादी जी को पैरालिसिस हुआ और वो चारपाई पर ही पड़ गयीं तो उनके द्वारा उनकी कोई भी परिचर्या न की जा
यह वही घर था जिसमे रघुबीरलाल जी का पूरा परिवार निवास करता था। इस घर का पच्छिमी हिस्सा जो स्वयं अपने आप में काफी विस्तृत था, देवी प्रसाद जी को जिस समय उन्हें अलग किया गया, प्रदान कर दिया गया था। वह मका
मेरे पिता जी नियमित सुबह स्नान के उपरांत श्री रामचरितमानस व श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करते थे और फिर भोजन कर कार्यालय जाते थे। जब मैं बहुत ही छोटा था तो उनको भोजन की थोड़ी मात्रा निकाल कर भगवान को भोग लग
नारायण प्रसाद जी घर से दो तीन किलोमीटर दूर स्थित देवगाँव में एक नए स्थापित विद्यालय में अध्यापन कार्य कर रहे थे। वो नियमित रूप से साइकिल से जाते थे। मठाधीश महंथ लालदास ने इस विद्यालय की स्थापना की थी।
जुलाई उन्नीस सौ तिहत्तर में मैं कक्षा ग्यारह में आ गया था। नई पुस्तकें आईं कुछ नए मित्र बने, कुछ पुराने मित्र छूटे और नए उत्साह के साथ सब कुछ नया प्रतीत हो रहा था। मेरी आयु भी पंद्रह वर्ष की तरफ बढ़ रह
रवि शंकर जी अपनी पत्नी सहित हम लोगों के साथ लगभग एक माह दालमंडी के मकान में रहे। इन लोगों को स्थान को लेकर कोई नवीन अनुभूति नहीं हुई होगी क्योंकि रजनी जी पूर्व में भी यहाँ पर्याप्त समय तक अपनी शिक्षा
मेरा जब परीक्षाफल समाचार पत्र के माध्यम से घोषित किया गया तो मैं गाँव में ही था। जानने की उत्सुकता स्वाभाविक थी। पढ़ाई उतनी सुव्यवस्थित और रसायन शास्त्र में अपनी कमजोर स्थिति के बावजूद मैं प्रथम श्रेणी
मुझे स्मरण है कि अक्टूबर नवम्बर में कृपा शंकर जी को अवमुक्त करने के लिए कोई विभागीय कार्मिक आ गए थे और वो वहाँ से अन्यत्र चले गए थे। उनके वहाँ से जाते ही मैं कॉलेज के छात्रावास चला गया था और फिर शेष क
रवि शंकर जी को बाहर निकलने पर अपनी पत्नी या बेटी की ज़रुरत तो सहयोग के लिए रहती ही थी। इनको बंटवारे के समय जो घर का पिछला हिस्सा मिला था, वह अबतक अनाज या अन्य वस्तुओं को रखने में प्रयोग होता था। अतः नि
ग्रीष्म कालीन अवकाश के समाप्ति पर मैं पुनः अपनी शिक्षा हेतु बलरामपुर चला गया था। जैसा कि मैंने एमएससी भौतिकी में करने के उपरान्त इलाहाबाद विश्वविद्यालय में विधि स्नातक की पढ़ाई के मध्य लगभग पांच माह ही
लेकिन मैं यह भी सोचने लगा था कि विवाह भी उचित समय पर होना चाहिए। इसलिए मैंने इस बात को अपने घर पर भी कह दिया कि उचित समय आ गया है और अब विलम्ब करना हानिकर होगा। मेरी अवस्था उन्तीस वर्ष के ऊपर हो चुकी
सीमा ईश्वर में आस्था रखती थीं इसलिए अधिक सोच विचार नहीं करती थीं। कम से कम में भी उनको रहना आता था। बताती हैं जब रवि प्रताप जी अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे हे तो इनके परिवार के सभी सदस्यों ने स्वयं की
नेहा ने अभी विद्यालय जाना प्रारम्भ नहीं किया था। जब भी मैं किसी विभागीय कार्य से लखनऊ जाता था तो अंग्रेजी और हिंदी में भी उसके पसंद और आयु के अनुरूप कहानियों की पुस्तकें लेकर आता था। वह पढ़ने में काफी
उन्नीस सौ अट्ठानबे की बात है। एक रात देवेंद्र की पत्नी या नीता जी का फ़ोन आया। उस समय मेरे और कंधारी बाजार दोनों स्थानों पर लैंडलाइन फ़ोन लग चुका था। फ़ोन का होना विशेष जाना जाता था क्योंकि कनेक्शन आसानी
सुलतानपुर टेलीफोन एक्सचेंज मार्ग पर एक मेडिकल स्टोर था। किसी सिंह जी का था यद्यपि वो बहुत कम ही वहाँ आते थे। उनसे मेरा विचार विमर्श दो तीन बार हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से की
मैं कभी किसी को अपना परिचय नहीं देता था। डॉक्टर शर्मा जी ने कहा भी था कि यदि आप किसी को अपना परिचय नहीं देंगे तो आपको वरीयता कैसे मिलेगी। डॉक्टर सुबोध जी से परिचय तब हुआ था जब मैं डॉक्टर रवि प्रताप जी
जब हम लोग जगन्नाथ पुरी से वापस लौटने के लिए स्टेशन पर आए तो इन लोगों को निर्धारित स्थान पर डिब्बे में बिठाकर मैंने सोचा कि फैज़ाबाद अवगत करा दूँ कि मैं वापस लौट रहा हूँ। एक तथ्य यह कि सूचनाएँ मैं ही दे
दो हजार चार में पापा जी को एक बार फिर आयु, अवस्था से सम्बंधित समस्या का सामना करना पड़ा था। जब इनके कूल्हे की शल्य क्रिया की गयी थी तभी से इनको यूरीन पास करने की समस्या हो रही थी इन्होने उस दौरान जब कै
गर्मी की छुट्टियाँ आम के लिए अधिक याद की जाती है। जो लोग गाँव से जुड़े होते हैं वो प्रायः अपना परिवार बच्चों के ग्रीष्मावकाश के दौरान गाँव पहुँचा देते हैं। बचपन में यही मेरे साथ भी था। मुझे याद है कि आ
पापा जी के देहान्त के उपरान्त कुछ दिन मम्मी जी फैज़ाबाद में रुक कर फिर देवेंद्र प्रकाश जी के साथ बाराबंकी चली गयी थीं। यह पहले से ही पता था कि वो वहीं जाएँगी। वहाँ इनकी पुत्रवधू, नीता जी, उनके पति और ब
मुझे अपने माँ बाप, विशेष रूप से पापा जी की, बहुत बातें जिन्हें व्यंग्य और आलोचना की श्रेणी में रखा जा सकता है, अन्य भाई या बहन की तुलना में अधिक सुननी व सहनी पड़ीं। इसका कारण यह था कि मुझे इनके साथ अधि
मेरी सर्विस सुचारु रूप से पूर्ववत चल रही थी। जब प्रथम बार सुल्तानपुर से अलग कर अमेठी को छत्रपति साहूजी महाराज नगर बनाया गया था तभी वहाँ के मूल निवासी महामहिम भरत जगदेव जी, राष्ट्रपति कोआपरेटिव रिपब्लि
इसी वर्ष हम लोगों ने अपने नए घर में आ जाने का भी निश्चय किया। यह पूरी तौर पर निर्मित था ही। यद्यपि मन निश्चय नहीं कर पा रहा था लेकिन बुद्धि ने यह निर्णय ले ही लिया। शिवेंद्र और नेहा के न होने के कारण