भिन्न-भिन्न फूलों को जब साथ मै है पिरोया जाए
अद्भुत मनोरम माला बन जाए,यही विविधता मै एकता कहलाए।
भिन्न प्रांत है,भिन्न है बोली
भिन्न धर्म के लोग यहाँ।
नयन नक्श मैं भले है भिन्न
फिर भी एक ही माला(देश) कहलाएं
देवता है सबके भिन्न,लेकिन पूजा की श्रद्धा है एक।
भांगड़ा,गरबा,चाहे हो कथकली
नृत्य भले है भिन्न, फिर भी भारतीय संस्कृति है एक ।
वेशभूषा चाहे भिन्न है,धरोहर लेकिन सबकी है एक।
प्रान्त भले है भिन्न-भिन्न,
लेकिन सबकी सत्ता है एक।
धर्म है भिन्न,त्योहार तो है एक।
संविधान एक,कानून एक
राष्ट्र ध्वज व गीत है एक।
भारतीय सेना के वीर हो या हो खेल का कोई खिलाड़ी,
राष्ट्रीय स्तर पर सब है एक ।
फिर भी क्यों चक्रव्यूह मैं है फंसे हुए ।
इंसान इंसानियत की दृष्टि से दूर खड़े हुए।
हिन्दू,मुस्लिम या हो सिख ईसाई
क्यों नही कहते है ,है भाई-भाई।
गीता ,ग्रन्थ या हो कुरान, बाइबिल
सबमे केवल अमन ही सिखलाए।
माने हम अपने ग्रन्थ को
शांति अमन के पथ को अपनाए।
तभी सही मायनों मैं विविधता मैं एकता हमारा देश बन जाए।
क्योंकि
भिन्नताएं है यहाँ कई फिर भी देश