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व्यक्तित्व के रंग

31 जुलाई 2022

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नमस्कार मित्रो।

आज 31अगस्त 2022 को मैं प्रमोद अवस्थी आप सभी के बीच इस सम्मानित मंच के माध्यम से उपस्थित हूं। कहते है कि व्यक्ति को कभी हार नहीं माननी चाहिए क्योंकि असफलताएं ही हमे सिखाती है कि हमारे प्रयास मे कहां और कितनी कमी रह गई। समाज मे बहुत से ऐसे लोग है जिन्होंने अपनी मेहनत की दम पर नित नई ऊंचाइयां प्राप्त की है। अपनी इस पुस्तक के माध्यम से आप सभी को ऐसे ही व्यक्तित्व वाले लोगो से मिलाऊंगा और ऐसे लोगो से भी परिचय कराने का प्रयास रहेगा जिन्होंने असफल होने पर भी हार नहीं मानी और शिखर को छू लिया।

प्रमोद अवस्थी                                                                                      

महात्मा गांधी के जीवन की कुछ अनछुई कहानियां।      

अहिंसा के पुजारी व हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हमारी स्वतंत्रता मे बहुत योगदान है। उनके जीवन से जुड़ी अन्य बातें किसी न किसी प्रकार से हमारे जीवन को प्रभावित करती रहती है। 

अहिंसा के पुजारी व हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हमारी स्वतंत्रता मे बहुत योगदान है। उनके जीवन से जुड़ी अन्य बातें किसी न किसी प्रकार से हमारे जीवन को प्रभावित करती रहती है। महात्मा गांधी जब सात वर्ष के थे तभी उनका विवाह एक व्यापारी की बेटी कस्तूरबा माकनजी से पक्का हो गया था। वर्ष 1869 में महज 13 वर्ष की आयु में इन दोनों का विवाह हुआ और कस्तूरबा गांधी ने ताउम्र महात्मा गांधी का साथ निभाया।  वर्ष 1906 में जब महात्मा गांधी ने आत्मानुशासन और आध्यात्मिकता का अनुसरण करने के लिए ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया उसके बाद भी कस्तूरबा गांधी ने अपने पति यानि महात्मा गांधी का साथ नहीं छोड़ा. लेकिन 74 वर्ष की उम्र में जब कस्तूरबा गांधी का देहांत हुआ तब महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी एक-दूसरे से अलग हुए। वर्ष 1888 में गांधी जी वकालत की पढ़ाई के लिए लंदन गए। पढ़ाई पूरी करने और बैरिस्टर बनने के बाद जब वह भारत लौटे तो यहां उन्हें कोई भी नौकरी नहीं मिली इसीलिए उन्होंने दक्षिण अफ्रीका जाकर वकालत करने का निश्चय किया। ने ताउम्र महात्मा गांधी का साथ निभाया।  वर्ष 1906 में जब महात्मा गांधी ने आत्मानुशासन और आध्यात्मिकता का अनुसरण करने के लिए ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया उसके बाद भी कस्तूरबा गांधी ने अपने पति यानि महात्मा गांधी का साथ नहीं छोड़ा. लेकिन 74 वर्ष की उम्र में जब कस्तूरबा गांधी का देहांत हुआ तब महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी एक-दूसरे से अलग हुए। वर्ष 1888 में गांधी जी वकालत की पढ़ाई के लिए लंदन गए। पढ़ाई पूरी करने और बैरिस्टर बनने के बाद जब वह भारत लौटे तो यहां उन्हें कोई भी नौकरी नहीं मिली इसीलिए उन्होंने दक्षिण अफ्रीका जाकर वकालत करने का निश्चय किया।

   महात्मा गांधी जब सात वर्ष के थे तभी उनका विवाह एक व्यापारी की बेटी कस्तूरबा माकनजी से पक्का हो गया था। वर्ष 1869 में महज 13 वर्ष की आयु में इन दोनों का विवाह हुआ और कस्तूरबा गांधी ने ताउम्र महात्मा गांधी का साथ निभाया।  वर्ष 1906 में जब महात्मा गांधी ने आत्मानुशासन और आध्यात्मिकता का अनुसरण करने के लिए ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया उसके बाद भी कस्तूरबा गांधी ने अपने पति यानि महात्मा गांधी का साथ नहीं छोड़ा. लेकिन 74 वर्ष की उम्र में जब कस्तूरबा गांधी का देहांत हुआ तब महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी एक-दूसरे से अलग हुए। वर्ष 1888 में गांधी जी वकालत की पढ़ाई के लिए लंदन गए। पढ़ाई पूरी करने और बैरिस्टर बनने के बाद जब वह भारत लौटे तो यहां उन्हें कोई भी नौकरी नहीं मिली इसीलिए उन्होंने दक्षिण अफ्रीका जाकर वकालत करने का निश्चय किया।

महात्मा गांधी जब सात वर्ष के थे तभी उनका विवाह एक व्यापारी की बेटी कस्तूरबा माकनजी से पक्का हो गया था। वर्ष 1869 में महज 13 वर्ष की आयु में इन दोनों का विवाह हुआ और कस्तूरबा गांधी ने ताउम्र महात्मा गांधी का साथ निभाया।  वर्ष 1906 में जब महात्मा गांधी ने आत्मानुशासन और आध्यात्मिकता का अनुसरण करने के लिए ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया उसके बाद भी कस्तूरबा गांधी ने अपने पति यानि महात्मा गांधी का साथ नहीं छोड़ा. लेकिन 74 वर्ष की उम्र में जब कस्तूरबा गांधी का देहांत हुआ तब महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी एक-दूसरे से अलग हुए। वर्ष 1888 में गांधी जी वकालत की पढ़ाई के लिए लंदन गए। पढ़ाई पूरी करने और बैरिस्टर बनने के बाद जब वह भारत लौटे तो यहां उन्हें कोई भी नौकरी नहीं मिली इसीलिए उन्होंने दक्षिण अफ्रीका जाकर वकालत करने का निश्चय किया।महात्मा गांधी जब सात वर्ष के थे तभी उनका विवाह एक व्यापारी की बेटी कस्तूरबा माकनजी से पक्का हो गया था। वर्ष 1869 में महज 13 वर्ष की आयु में इन दोनों का विवाह हुआ और कस्तूरबा गांधी ने ताउम्र महात्मा गांधी का साथ निभाया।  वर्ष 1906 में जब महात्मा गांधी ने आत्मानुशासन और आध्यात्मिकता का अनुसरण करने के लिए ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया उसके बाद भी कस्तूरबा गांधी ने अपने पति यानि महात्मा गांधी का साथ नहीं छोड़ा. लेकिन 74 वर्ष की उम्र में जब कस्तूरबा गांधी का देहांत हुआ तब महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी एक-दूसरे से अलग हुए। वर्ष 1888 में गांधी जी वकालत की पढ़ाई के लिए लंदन गए। पढ़ाई पूरी करने और बैरिस्टर बनने के बाद जब वह भारत लौटे तो यहां उन्हें कोई भी नौकरी नहीं मिली इसीलिए उन्होंने दक्षिण अफ्रीका जाकर वकालत करने का निश्चय किया।

. उस समय दक्षिण अफ्रीका अंग्रेजों के अधीन था और प्रत्येक भारतीय को उस समय नस्ली भेदभाव का सामना करना पड़ रहा था। दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए महात्मा गांधी ने भारतीयों के साथ होने वाले इस भेदभाव खिलाफ लड़ाई शुरू की और धीरे-धीरे उन्होंने सत्याग्रह और अहिंसा की अवधारणा को विकसित किया। महात्मा गांधी के राजनैतिक गुरु उदारवादी नेता गोपालकृष्ण गोखले थे। गांधी जी की संघर्ष-विराम-संघर्ष रणनीति गोखले से ही प्रेरित थी। गांधी जी को महात्मा की उपाधि कवि रविंद्र नाथ टैगोर ने दी थी और सबसे रोचक बात यह है कि उन्हें सर्वप्रथम राष्ट्रपिता के नाम से संबोधित सुभाष चन्द्र बोस ने किया था। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के हितों के लिए लड़ते हुए महात्मा गांधी कई बार गिरफ्तार किए गए लेकिन इसके बावजूद वह वर्ष 1914 तक दक्षिण अफ्रीका में रहे और स्वदेश वापस आते ही उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध अहिंसा आंदोलन की शुरुआत की जिसके फलस्वरूप अंग्रेजों की गुलामी से देश को आजाद करवाया जा सका। बचपन में महात्मा गांधी इतने शर्मीले स्वभाव के थे कि कोई यह अंदाजा भी नहीं लगा सकता था कि एक दिन यह बालक ऐसा कारनामा कर जाएगा जो उसे देश-विदेश में पहचान दिलवाएगा। जिस महात्मा गांधी के आज हजारों अनुयायी हैं वो बचपन में सिर्फ इसीलिए स्कूल से भाग जाया करते थे ताकि उन्हें लोगों से बात ना करनी पड़े। अहिंसा की प्रतिमूर्ति कहे जाने वाले महात्मा गांधी ने आजीवन अहिंसा का पालन किया। उनके अहिंसा के सिद्धांत को विश्व स्तर पर स्वीकार किया गया लेकिन अपने संपूर्ण जीवन में एक बार भी महात्मा गांधी अपने इसी अहिंसा के सिद्धांत के लिए नोबेल पुरस्कार नहीं जीत पाए। हालांकि 1937, 1938, 1939 और 1947 में महात्मा गांधी चार बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामित हुए लेकिन कभी पुरस्कार प्राप्त नहीं कर पाए। हालांकि वर्ष 1948 में अपने देहांत के बाद भी महात्मा गांधी को नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया परंतु मरणोपरांत यह पुरस्कार नहीं जीता जा सकता इसीलिए महात्मा गांधी का नाम इस सूची से हटाना पड़ा। 30 जनवरी, 1948 को जब महात्मा गांधी प्रार्थना सभा से बाहर आ रहे थे तो नाथुराम गोडसे नामक एक युवक ने उन पर तीन गोलियां चलाईं, जिसकी वजह से महात्मा गांधी की मृत्यु हो गई। नाथुराम गोडसे का कहना था कि महात्मा गांधी भारत विभाजन के लिए जिम्मेदार थे, उनकी वजह से भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ इसीलिए उसने महात्मा गांधी की हत्या की।              


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