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याद तुम्हारी आंखों में उतर आई है

29 अगस्त 2024

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आज़ याद तुम्हारी,मेरी आंखों में उतर आई है,
पूछ रही हूं पता ऑफ़िस की आगे वाली पहाड़ी से,
सब कहते हैं जबसे, तुमने मुझसे बातें करना छोड़ दी है,
तुम उधर ही अपना खाने का डब्बा खोलते हो,
दो रोटी ख़ुद खाते,मेरे हिस्से का चिड़ियों को खिला दिया करते हो!
 आज़ याद तुम्हारी, मेरी आंखों में उतर आई है,
पुराने किताबों में,तुम्हारा दिया फ़ूल ढूंढके 
मन ही मन मुस्काती हूं,
ऐसा क्या है तुममें,मेरा जो मैं समझ नहीं पाती हूं,
ये गुलाबी रंग का जयपुरी दुपट्टा,कॉलेज की लास्ट ईयर की पढ़ाई के बाद,
तुमने अपने पैकेट मनी से बचा,सबसे नज़र बचा,मुझे थमाई थी,
आज़ याद तुम्हारी, मेरी आंखों में उतर आई तो मैंने दुपट्टे को सिर पे सजा,अधूरे प्रेम की रागिनी गुनगुनाई है!

आज़ याद तुम्हारी, मेरी आंखों में उतर आई है,
कोरे सपने बुनते बुनते,ये ज़िंदगी हमें किस मोड़ पे ले आई है,
वादा किया कि हमेशा एक दूजे के वास्ते अधूरे रहेंगे हम,
चाहे सावन बीते या पतझड़ मरघट पसारे
गीतों में हम बसंत - ऋतु - राग रहेंगे,
आंखों ही आंखों में कटी जवानी,
बुढ़ापे में क्या ख़ाक करेंगे,
मिले, न मिले हम
मर्ज़ी या खुदगर्जी कह लीजिए हमारी,
किताबों में बहुत पढ़ा प्रेम,जैसे सबकी कटती है, वैसे ही हमारी भी गुजर जायेगी,
कौन आसमां से उतर आए हैं जो धरा पर बिखेर दिए जायेंगे,
कागज़ के फ़ूल सरीखे इश्क़ हमारा
जबतलक शीशे में रक्खा है तबतलक महफूज़ लगते हैं 
जिस दिन लगा दिया ना बागों में 
बच्चे भी गुलाब समझ तोड़ कर फेंक दिया करते हैं!

आज़ याद तुम्हारी, मेरी आंखों में उतर आई है,
अधूरे किस्सों में पूरा, इश्क़ हमारा
नाम हमारा इतिहास होगा
लिखते रहेंगे,लिखते रहेंगे.....
और जो कभी पूरी न हो 
इक ऐसी ही कहानी बनेंगे 
हम एक दूजे के लिए अधूरे में ही पूरे रहेंगे।

प्राची सिंह "मुंगेरी"
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रचनाएँ
मुंगेरी अल्फाज़ भाग-३
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मैंने,मुंगेरी अल्फाज़ भाग- ३ पर,आज़ से काम करने का मन बनाया है।ईश्वर की कृपा रही तो जल्दी ही इसे पूरा करूंगी। बाकी पाठकों पर भी निर्भर करता है कि वो कितना प्रेम,मेरी इस नई काव्य संग्रह को देना चाहेंगे। धन्यवाद आप सभी का,उम्मीद है कि आप सभी का प्रगाढ़ प्रेम मुझे मिलता रहेगा! पढ़ते रहें, मुस्कुराते रहें,ईश्वर का धन्यवाद देते रहें।
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पंक्तियां

28 अगस्त 2024
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याद तुम्हारी आंखों में उतर आई है

29 अगस्त 2024
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सम्पूर्ण गीत हो तुम

30 अगस्त 2024
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गुमनाम ज़िंदगी

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गुमनाम ज़िंदगी इक इत्तेफ़ाक है तुम्हारी आंखें,जिसमें मेरी ज़िंदगी की, पूरी गज़ल धरी है,जब,जब देखते हो एकटक मुझे,नज़्मों की साज - सज्जा संभालती, जुगली करती तुम्हारी आंखें,विरह वेदना के तान छेड़ती

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कृतज्ञ हूं हे प्रकृति

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कृतज्ञ हूं हे प्रकृति कृतज्ञ हूं हे प्रकृति जब तुम सुबह बनके आती होप्राची की दिव्यता लिएनवपथ से गमन करते धरा का श्रृंगार करती हो!कृतज्ञ हूं हे प्रकृति गोधूलि बेला में,कैसे सम्पूर्ण आकाश

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"शब्द, सामर्थ्य और उसका अर्थ लिखा,अपने हाथों से अपने होने अर्थ लिखा,बहुत सहेजा है शब्दों में, हे मां हिंदी आपको अपना प्राण लिखा,आपको अपना परम सौभाग्य लिखा,युग ,युग से भारत के प्राणों को शीतल

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हर हर महादेव

14 सितम्बर 2024
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अपने आराध्य महादेव के चरणों में समर्पित चंद पंक्तियां - हर हर महादेव 🚩🚩🙏प्रेम में परम समर्पित पार्वतीपतये गौरीशंकर महादेव हैअखंड प्रेम ज्योति जलाएमां नित्यस्वरूपा,विश्वकल्याणी करुणामयी गिरिजाद

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