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कृतज्ञ हूं हे प्रकृति

9 सितम्बर 2024

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कृतज्ञ हूं हे प्रकृति 

कृतज्ञ हूं हे प्रकृति 
जब तुम सुबह बनके आती हो
प्राची की दिव्यता लिए
नवपथ से गमन करते धरा का श्रृंगार करती हो!

कृतज्ञ हूं हे प्रकृति 
गोधूलि बेला में,कैसे सम्पूर्ण आकाश को,केशरियां रंग में रंग,अपना आलौकिक नेह बरसाती हो!

कृतज्ञ हूं हे प्रकृति 
तुमको तो कोई नहीं जगाता 
तुम ही सबको प्रेम से जगाती हो
कैसे, कैसे करके अपना आलस्य
अपने से दूर भगाती हो!

कृतज्ञ हूं हे प्रकृति 
कभी मंद पवन का बन ठंठा झौंका 
कभी अपनी गर्मी में, प्रचंड गर्मी बरसाती हो 
इतना गहरा प्रेम तो बस, मां की ममतामयी,ममता ही बरसाती है!

  कृतज्ञ हूं हे प्रकृति 
चार क़दम बढ़ाती तुम,चार क़दम पे चाल बदल लेती हो 
ससमय,समय पे नित दिन, निज श्रृंगार रचाती हो
किसने तुम्हें अलार्म पे लगाया
कौन है वो जिसने तुम्हें अनुपम श्रृंगार से सजाया है !

कृतज्ञ हूं हे प्रकृति 
देख रही हूं तुम्हारा रोना
आज़ दिनभर बरसी अपने दुःख पे पूरा 
किसने तुम्हें ऐसे इतना सताया है 
या प्रेमराग में तुम एकस्वर हो
गाती कोई गीत
भींगी चिड़िया भी तुम्हारे संग,संग गाती 
रिमझिम बरसों हे सावन सुहावन 
आज प्रिय की यादों में 
पत्ता, पत्ता बूटा,बूटा हाल हमारा, सुनायेंगे!

कृतज्ञ हूं हे प्रकृति 
प्रेम सुहावन,मनभावन
नैसर्गिक(प्राकृतिक) तुम
बसंत को सजीला बनाती हो!

कृतज्ञ हूं हे प्रकृति 
सर्दी आती और तुम यूं शर्माती
किस दूल्हे ने घूंघट तुम्हें ओढ़ाया है 
छुपी,छुपी दिन में भी ऐसी
जैसे प्रकृति ही बन नवयौवना कोई दुल्हन बन आई हो!

नतमस्तक हूं हे मां प्रकृति 
जीवन श्रृंगार तुम लयबद्ध करती हो
क्या, क्या लिखूं मैं,चंद शब्दों में तुम्हें 
कभी प्रलय की भीषणता रचती
कभी जीवन को अमरत्वता देती
धरा को स्वर्ग सरीखा कालजई कृति बनाती हो
कृतज्ञ हूं हे मां प्रकृति
तुम्हें कोटि कोटि प्रणाम,मैं करती हूं।

प्राची सिंह "मुंगेरी"
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रचनाएँ
मुंगेरी अल्फाज़ भाग-३
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मैंने,मुंगेरी अल्फाज़ भाग- ३ पर,आज़ से काम करने का मन बनाया है।ईश्वर की कृपा रही तो जल्दी ही इसे पूरा करूंगी। बाकी पाठकों पर भी निर्भर करता है कि वो कितना प्रेम,मेरी इस नई काव्य संग्रह को देना चाहेंगे। धन्यवाद आप सभी का,उम्मीद है कि आप सभी का प्रगाढ़ प्रेम मुझे मिलता रहेगा! पढ़ते रहें, मुस्कुराते रहें,ईश्वर का धन्यवाद देते रहें।
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पंक्तियां

28 अगस्त 2024
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"जिस्म से रूह तक उतरने में वक्त बहुत लगता है,संभालो उन नज़रों को जो मुझे बेहिसाब तकता है,कुछ गुनाह है तो बोलो यूं नज़रों में,कोई किसी कैद ऐसे करता है,सताए बहुत गए तुम्हारी नज़रों से,यूं ऐसे कोई,किसी क

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याद तुम्हारी आंखों में उतर आई है

29 अगस्त 2024
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आज़ याद तुम्हारी,मेरी आंखों में उतर आई है,पूछ रही हूं पता ऑफ़िस की आगे वाली पहाड़ी से,सब कहते हैं जबसे, तुमने मुझसे बातें करना छोड़ दी है,तुम उधर ही अपना खाने का डब्बा खोलते हो,दो रोटी ख़ुद खाते,मेरे

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सम्पूर्ण गीत हो तुम

30 अगस्त 2024
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अधूरे प्रेम में,मन में अटके गीतों सा तुम,श्वांस, श्वांस के बन प्रहरीलय से आलयबन स्वंय वेदनाहृदय तार में अटक जाते होफिर उभरती इक कविता की रेखाशब्द,शब्द प्रेम अारोह में सज जाता है !अधूरे प्रेम में, मन म

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गुमनाम ज़िंदगी

2 सितम्बर 2024
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गुमनाम ज़िंदगी इक इत्तेफ़ाक है तुम्हारी आंखें,जिसमें मेरी ज़िंदगी की, पूरी गज़ल धरी है,जब,जब देखते हो एकटक मुझे,नज़्मों की साज - सज्जा संभालती, जुगली करती तुम्हारी आंखें,विरह वेदना के तान छेड़ती

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कृतज्ञ हूं हे प्रकृति

9 सितम्बर 2024
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कृतज्ञ हूं हे प्रकृति कृतज्ञ हूं हे प्रकृति जब तुम सुबह बनके आती होप्राची की दिव्यता लिएनवपथ से गमन करते धरा का श्रृंगार करती हो!कृतज्ञ हूं हे प्रकृति गोधूलि बेला में,कैसे सम्पूर्ण आकाश

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हिंदी दिवस

14 सितम्बर 2024
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"शब्द, सामर्थ्य और उसका अर्थ लिखा,अपने हाथों से अपने होने अर्थ लिखा,बहुत सहेजा है शब्दों में, हे मां हिंदी आपको अपना प्राण लिखा,आपको अपना परम सौभाग्य लिखा,युग ,युग से भारत के प्राणों को शीतल

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हर हर महादेव

14 सितम्बर 2024
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अपने आराध्य महादेव के चरणों में समर्पित चंद पंक्तियां - हर हर महादेव 🚩🚩🙏प्रेम में परम समर्पित पार्वतीपतये गौरीशंकर महादेव हैअखंड प्रेम ज्योति जलाएमां नित्यस्वरूपा,विश्वकल्याणी करुणामयी गिरिजाद

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ज़िंदगी इक अधूरी किताब

21 सितम्बर 2024
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ज़िंदगी इक अधूरी किताबगीतों का सोम पीकर जब हम सम्पूर्ण हुएउनकी आंखों पे लिखी नज्में जिससे ये पूरी गज़ल बनी,कविताएं बनेंगी मीरा अनुरागी,जब जीवन हो जहर और रस आनंद का लिया जायेगा,लूटे कारवां से

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लेखक का मन क्या कहता है

23 सितम्बर 2024
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लेखक का मन क्या कहता है कवितास्वरचित -23/09/2024रचना - लेखक चुप रहता है लेखनी बोलती है कविता कहती - पढ़ ले मुझेसहज, सुलभ मन सेजीवनपथ पर चार क़दम आगे बढ़ ले!कहानी कहती - भार अतिशय म

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दिल के धूमकेतू तुम

24 सितम्बर 2024
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दिल के धूमकेतू तुमदिल के धूमकेतू तुम 'प्रेम'मन मेरा सूर्य बन जाता है लगाते,लगाते तेरा चक्करप्रेम,मेरा परिपूर्ण हो जाता है!'प्रेम' हम तो मुसाफ़िर है बस छांव तुम्हारी पलकों का चाहते हैं न

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पंक्तियां

26 सितम्बर 2024
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पंक्तियांअपने ही शहर में गुनेहगार लगते हैं लिखते हैं नाम उनका हथेली पर जिनका दाग दिल में छुपाके रखते हैं!तस्वीर पुरानी लगती है उस दुकान में बस बेचनेवाला नया लगता है क्या फितरत है इ

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अनकही फ़रियाद

28 सितम्बर 2024
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अनकही फ़रियाद कुछ आंखों से बह निकलीपानी नमकीन था गालों पे लुढ़क गई कसमें खाने वाले लोग नजरों से क्यों उतर जाते हैं समझाया था दिल को कि नाज़ुक ना बनखेलनेवाले लोग हैं इस ज

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ख्वाहिशों का सफ़र

29 सितम्बर 2024
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ख्वाहिशों का सफ़रख्वाहिशों के सफ़र में रात बड़ी अंधेरी होती है,जूगनुओं के देश में रात बड़ी चमकीली होती है!जब से ख्वाहिशें छोड़ी रात बड़ी आराम से कटती है,पागल मन है जो कभी कुछ भी चाहे,हम तरकीबों से बहल

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मैं जानती हूं तुम्हें

30 सितम्बर 2024
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मैं जानती हूं तुम्हें मैं जानती हूं तुम्हें 'प्रेम' तुम्हारी आत्मा से,जब मैं सोती हूं तुम सिरहाने खड़े रहते हो,टुकुर, टुकुर देखते हो मुझेकहना कुछ नहीं है तुम्हें बस मन में घुसना चा

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तुम्हें शिवकाशी बनना होगा

3 अक्टूबर 2024
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तुम्हें शिवकाशी बनना होगामेरी उलझनों के बीचतुम्हारा चेहरा आंखों में छा जाता है,फिर नीले - नीले अम्बर परबादल सफ़ेद हो जाता है!आज़ ज़रा क्या खोली फुरसत में,मैंने यादों वाली गुलाबी गठरी'प्रेम' नैनों पर म

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एक विचार

4 अक्टूबर 2024
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एक विचारदिमाग में टिक टिक करता एक विचार याद क्यों आता हर रोज़ सुबह शाम रुकने का काम नहीं है झुकने का नाम नहीं है चलने को अमानत समझिएमुहब्बत तो विरासत है इश्क़ वालों कीसंभाल के सीने

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पंक्तियां

5 अक्टूबर 2024
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"आंखों में भरके जाम रखते हैं दिल मेरा है,उसमें भरके मुहब्बत का पैग़ाम रखते हैं जिसने भी देखा, सोचा नदी तो छोटी हैजब चाहेंगे, तैरकर पार करेंगेख्वाहिश गलत बना ली आपनेछोटी नदी में भी सैलाव होती

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वो किस जहां में रहती है

8 अक्टूबर 2024
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वो किस जहां में रहती है तेरी रहमत(दया) जो बरसे ओ मेरे खुदायाज़मीं से भी तो वो आसमां दिखता है क्या - क्या छुपाएं हम तेरी नज़रों से तू बड़ा नेक दिल साफ़ - साफ़ नज़रों से बड़ी इनायत(कृपा)

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पंक्तियां

11 अक्टूबर 2024
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"दिल की सरहद पार करने चला हूंयाद तुम्हारी आती है आती रहेगीयाद में आज़ तुम्हारी मैं मरने चला हूं सजा देना अधूरे प्रेम की ख्वाहिशकोई तुम्हारी आंखों में अपना जहां बसाने चला है।"प्राची सिंह "मुंगेरी"

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मैं वहम में थी

15 अक्टूबर 2024
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वहम में थीअहम में थीबस वो ही तो छूटा है कच्चा था वोक्षणिक एहसास ही तो छूटा है पता नहीं थाइतना विरल हो जायेगा तेरे प्रेम में दिल पागल हो जायेगा शब्दों से इतना जूझी मैं कि आंखों

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गधे का रंग

17 अक्टूबर 2024
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गधे का रंग गधे के रंग पर भी उठ रहा इक सवालइत्तेफ़ाक देखो नगर में भी मिलतेचाहे घूमों गांव ग्राम मैं ही हूं जनाब सबसे ख़ास जैसी मिट्टी का रंग बेमिसालगधा भी कहता अपने ढंग में दिखता हू

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पति चालीसा

23 अक्टूबर 2024
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पति चालीसा मेरे पति मेरे भगवान् करते काम सुबह शाम सुबह की चाय बनामुझे जगाएजागते ही मेरे उनके होश उड़ जाए !हम कहते उनको अपना आराध्यवेतन की सारी रकम,इक बार में ही थमाए,मुझे मेरे भगवान्&nb

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पंक्तियां

23 अक्टूबर 2024
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पंक्तियां नदी सी बनी रहने के लिए चंचल होना पड़ता है!मशहूर होने के लिए रोज़ अखबारों में छपना पड़ता है!पर्वत सा होने के लिए स्थिर होना पड़ता ह

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हृदय के सितार

28 अक्टूबर 2024
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हृदय के सितार क्या ये वही इश्क़ है प्रिये जिसके दंभ पे कभी बजते थे हमारे हृदय के सितारआंखों में उतर आता थासितारों की बारात! क्या ये वही इश्क़ है प्रिये जिसके दंभ पे कभी बजते थ

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मैं तुझसे इश्क़ लगा बैठी

29 अक्टूबर 2024
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मैं तुझसे इश्क़ लगा बैठी सफरनामा ज़िंदगी का साथ चलते,चलतेकारवां बन गुजरता गयामुकर्रर ज़मीं थी आरज़ू दिल की धरी की धरी रह गई सब सिमटता गया मन की आंखों में ओर ये इश्क़ बेमतलब हो गया ऐ

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पल का पहाड़ बना इंतज़ार

17 नवम्बर 2024
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कुछ भाव तेरी प्रीत काहमने एहसासों में जिया हैकुछ याद तुम्हारी बातों काहमने खामोशियों से अश्क का समंदर घूंट, घूंट पिया है!तेरी आंखों से क्या निकले हमआंसूओं से सूख गए हैं कभी रहते रहे दिल में तुम्ह

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