अधूरे प्रेम में,मन में अटके गीतों सा तुम,
श्वांस, श्वांस के बन प्रहरी
लय से आलय
बन स्वंय वेदना
हृदय तार में अटक जाते हो
फिर उभरती इक कविता की रेखा
शब्द,शब्द प्रेम अारोह में सज जाता है !
अधूरे प्रेम में, मन में अटके गीतों सा तुम,
स्वंय बन प्रेम परागा
पुष्प,पुष्प कुसुमित कर देते हो
गा रहा हृदय सारंगा
विरह में तुम श्रृंगार सुहावन
हृदय तेरी आहट का
पग,पग गीत सुनाता है
जाने आ जाओ किस डगरियां
मन बन मयूरा
बिना थमे,सारी हदें तोड़के
जी भर,भर के नाचा है!
अधूरे प्रेम में,मन में अटके गीतों सा तुम,
प्रीत तेरी ही रागिनी में,क्यों खो जाता है
कभी आधा,कभी पूरा
क्यों ये बिन अभिव्यक्त अनवरत चलता रहता,
सांसों के द्वारे आ,ऐसे क्यों मन से खेलता है
देखो तुम, प्रिय चांद मेरे,मन बहुत नाजुक है मेरा
चंचल चकोर,असाध्य,साधने लग जाता है
कैसे आराध्य बन तुम,अराधिता के रग, रग
में समां जाते हो!
अधूरे प्रेम में,मन में अटके गीतों सा तुम,
अर्द्धतरासी ईश्वर की मूरत बन तुम
कण,कण में तुम
श्वांसमाल से तुम
जैसे शिव में गंगा
काशी में शिव
ब्रज के द्वारे,द्वारे कान्हा रास रचाते हैं!
अधूरे प्रेम में, मन में अटके गीतों सा मन
सम्पूर्ण गीतों में, तुम्हें लयबद्ध करते हैं
जोगी बन नाम तुम्हारा श्वांस, श्वांस पे सुमरते हैं
तुम आ बैठो प्रिय
हृदय में मेरे
ऐसा प्रणय गीत गुनगुनाते हैं
सारे गीत तुम पे आ,रुक जाए
तुम्हें हम,अपने गीतों का सम्पूर्ण भाव बनाते हैं।
प्राची सिंह "मुंगेरी"