shabd-logo

यह सागर कितना प्यासा है!

15 सितम्बर 2021

38 बार देखा गया 38

यह सागर कितना प्यासा है!                            

जिसको  जितना मिलता  रत्न
और अधिक  का  करता  यत्न,
अगणित नद पीकर सागर  की
बुझती     नहीं     पिपासा    है।
यह  सागर  कितना  प्यासा  है!

मिला न जग को अब तक  तोष
विभव, रत्न  हो  या     मणिकोष,
बाहर  की  सुषमा  अनन्त   पर
अंदर    अमित     हताशा     है।
यह  सागर  कितना  प्यासा  है!

शमित  न  होता  उर  का  ज्वार
अंतर्मन     में     तृषा      अपार,
उड़ने   को   ले   पंख  गगन   में
खड़ी    सदा     अभिलाषा     है।
यह  सागर  कितना  प्यासा   है!

अनिल  मिश्रा प्रहरी  ।  
   

   
 

Anil Mishra Prahari की अन्य किताबें

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए