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<p>यह सागर कितना प्यासा है!
माँ! कोटि-कोटि सर तेरे हैं। तू चाहे जब जिसे पुकारे दिवा-रात्रि फिर या भिनसारे, दौड़ पड़ें हम सुन ललकार बिखरें पथ चाहे अंगार। प्रमुदित प्राण निसर्ग किये बहुतेरे हैं