माँ! कोटि-कोटि सर तेरे हैं।
तू चाहे जब जिसे पुकारे
दिवा-रात्रि फिर या भिनसारे,
दौड़ पड़ें हम सुन ललकार
बिखरें पथ चाहे अंगार।
प्रमुदित प्राण निसर्ग किये बहुतेरे हैं
माँ! कोटि - कोटि सर तेरे हैं।
किसमें बल जो हमें हिला दे
रौंद मृदा में कभी मिला दे,
चट्टानों - सी अपनी छाती
क्या कर सकता दुर्जन ,घाती!
डर के मारे सिमटे घने अँधेरे हैं
माँ! कोटि - कोटि सर तेरे हैं।
कर्ज चुकाने का अवसर दे
काम तुम्हारे आऊँ वर दे,
मौत मिले तो ले लूँ हँस के
जकड़ूँ निज बाहों में कस के।
मृत्यु संग ही लिए सात हम फेरे हैं
माँ! कोटि - कोटि सर तेरे है।
दुश्मन का सह लूँ प्रहार मैं
सह लूँ हँस तीखी कटार मैं,
तुझ पर आँच न आने दूँगा
आँसू नहीं बहाने दूँगा।
लाख चतुर्दिक फैले अरि के घेरे हैं
माँ! कोटि- कोटि सर तेरे हैं।
अनिल मिश्र प्रहरी।