मेरी एक यात्रा थी
जिस पर मैं जाना चाहता था
ये यात्रा गुलाब से शुरू होकर
गेंदे पर खत्म होना चाहती थी
इसी यात्रा में मुझे कीचड़ में भी उतरना था
तुम्हारे लिये कमल लाने को
क्योंकि तुम्हारे घर में
झूले के पास बने चबुतरे पर
मैंने देखे थे मिट्टी के बर्तन में
कमल तैरते हुए
मुझे तुम्हारे बालो के लिये
मोग़रा लाने की भी ख्वाहिश़ थी
कैसे ये न्नहे से पुष्प
तुम्हारे बालो की जटिल गुथाई को
एक सरल संरचना में तब्दील कर देते थे
जिसे समझना शायद आवश्यक भी नही है
हालांकि ये सफर गुलाब पर आकर
कब का खत्म हो चुका है
पर मुझे आज भी तुम में
मेरा आने वाला कल दिखाई देता है
जिसमें गेंदे की जडे़ इतनी फैल चुकी हैं
कि, आस-पास कोई गाजर घास उग ही न सके।