यूंही आते रहना
वैसे तो वह रजनी के पापा थे। लेकिन हम बच्चों के लिए और पुरे गांव के लिए काका -पहलवान काका । काका जैसे बुढे़ होते गये पहलवान जैसी देह भी कमजोर होती गयी । अब कोई पहलवान काका बुलाता तो कहते बच्चे अब काका हीं बुलाया करो । पहलवान की देह से पहलवान को बहुत प्यार होता हैं। बुढ़ापे ने वह भी ले लिया।
एक बार नाग पंचमी के मेले में नौगढ़ में पंजाब का एक नामी पहलवान छुट्टन सिंह कुश्ती लडने आया था। लोग बाग तो कहते थे। कुश्ती के दौरान हनुमान जी की सवारी रहती थी छुट्टन सिंह पर।
जब कोई पहलवान उससे लड़ने को तैयार नहीं हुआ तो। जमींदार के ललकारने पर क्या नौगढ़ में जवान पैदा होने बंद हो गये । अब इस धरती की इज्जत हम बुढो़ के सहारे है। तभी छटंकी यादव ने कुर्ता फेंककर अखाड़े में उतर कर पहलवान छुट्टन सिंह को सलामी दिया। और ललकार दिया
कुश्ती देखने आये लोगो ने जमींदार को कोसना शुरू कर दिया कि कुश्ती बेजोड़ है। कहाँ छुट्टन सिंह हाथी जैसे कद काठी का । कहाँ 20 वर्ष का लडका छटंकी । क्या लडेगा इसका मरना तो तय है।
मशहूर धोबी पछाड़ दांव लगाकर छटंकी ने छुट्टन सिंह को चारो खाने चित्त कर दिया।
इधर छटंकी यादव को फुलों और उपहारों से लाद दिया जनता ने।
इसी कुश्ती को जीतने के बाद छटंकी यादव सभी के लिए काका हो गये पहलवान "काका "
जमींदार ने 5 बीघा जमीन गाय भैंस और खेती के लिए एक जोड़ी बैल उपहार दिया । तुमने नौगढ़ की लाज रख ली तुम सदैव मेरे कृपा पात्र रहोगे। इतना कहकर जमींदार ने गले से लगा लिया।
इसी वर्ष काका की शादी हो गयी काकी बहुत सुंदर थी। शादी के साल ही एक सुंदर सी बच्ची रजनी को जन्म दैकर काकी स्वर्ग सिधार गयी ।
काका ,काकी के जाने के बाद बहुत दुखी रहते । धिरे धिरे काका बुढे़ दिखाई देने लगे 40 की अवस्था में काका के बाल सन की तरह सफेद हो गये । काका भरी जवानी में बुढे़ हो गये। काकी के जाने के बाद कई रिश्ते आये शादी के लिए। रजनी का हवाला देकर शादी से इंकार कर दिया। रजनी को पढा-लिखाकर 16 कि उम्र में आते ही उसकी शादी कर जिम्मेदारी से मुक्त हो लिए। काका को एक डर सदैव बना रहा कि मेरे मरने पर मेरे भाई-भतीजे मेरी सम्पत्ति को जबरदस्ती ले लेंगे और रजनी को कुछ नहीं मिलेगा इस चिंता में रहते हुए काका ने अंतिम सांस ली।
कहानी अब आगे .....
हजारों की भीड़ काका को अंतिम विदाई दे रही थी। तब पता चला लोग काका को कितना चाहते थे। काका का सबसे छोटा भतीजा मुकेश काका को अग्नि दिया । काका के भाई भतीजे सभी नम आँखो से काका को श्रद्धांजलि दे रहे थे।
"काका" सदैव मेरे काका बनकर हम गांव वालों के काका बनकर यूंही आते रहना।
काका की तेरहवीं उनके भाई भतीजों ने अपने खर्चों पर की । खुब धूमधाम से हजारों लोगों ने भोजन किया । खाना खुब स्वादिष्ट बना था। लोगों ने तारीफे की ।
इस पुरे खर्चे में न तो एक रुपये रजनी से लिए गये । न तो काका की जमीन बिकी ।
रजनी के बड़े पापा रजनी और दामाद सुलभ को घरजमाई बना लिए ।
गांव के लोगों ने कहा काका नाहक हीं डर रह थे।
सभी ने एक फिर नारा लगाया "काका" ओ पहलवान "काका यूंही आते रहना हर जन्म में हमारे काका बनकर