कार्यक्षेत्र का तनाव
आज के युवा अपने कार्य के तनाव के कारण इतना अधिक व्यस्त रहते हैं कि उनके पास अपने लिए और अपनों के लिए प्रायः समय नहीं निकल पाता। आज उच्च पदासीन और एम.एन.सी. में कार्यरत युवाओं का अपने कार्यक्षेत्र में जाने का समय तो निश्चित होता है परन्तु उनके घर लौटने का कोई समय ही नहीं होता। सारा दिन काम की अधिकता रहती है और लगातार होने वाली मीटिंग्स के कारण वे देर-सवेर घर लौटते हैं।
इसलिए सबसे अधिक उनका भोजन ही नकारे जाने का शिकार बनता है। जिस खाने के लिए वे इतना अधिक परिश्रम करते हैं, पापड़ बेलते हैं, उसी के लिए ही उनके पास समय नहीं बचता। बहुत बार उनके खाने का डिब्बा ऐसे ही वापिस घर लौटकर आता है। बताइए, इस तरह भूखे रहकर या मात्र चाय-काफी पीकर तो जीवन नहीं चलता। ऐसी स्थिति मे तो स्वास्थ्य खराब हो जाने का भय रहता है। सबसे बड़ी समस्या तो तब होती है, जब बीमार होने पर भी डॉक्टर के पास जाकर दवाई लेने अथवा आराम करने का समय उनके पास नहीं होता। वे उसी हालत में गधों की तरह अपने कार्य में जुटे रहते हैं।
एक बहुत उपयोगी श्लोक स्मरण आ रहा है। इसमें कवि बता रहे हैं कि सौ काम छोड़कर भी भोजन कहना चाहिए-
शतं विहाय भोक्तव्यं, सहस्रं स्नानमाचहरेत्।
लक्षं विहाय दातव्यं कोटिं त्यक्त्वा हरिं भजेत् ।।
अर्थात् सौ काम छोड़कर भोजन करना चाहिए, हजार काम छोड़ कर स्नान करना चाहिए, एक लाख काम छोड़कर दान करना चाहिए और करोड़ काम छोड़कर ईश्वर का स्मरण करना चाहिए।
इस श्लोक में कवि स्पष्ट निर्देश दे रहा है कि जीवनी शक्ति भोजन से मिलती है। उसकी अनदेखी नहीं कि जानी चाहिए। यदि स्वास्थ ही ठीक नहीं रहेगा, तो मनुष्य क्या कर सकेगा? इसके बाद कवि कहते हैं कि शरीर की शुद्धि हजार कार्य छोड़कर करनी चाहिए। इसी प्रकार आत्मिक और मानसिक सन्तोष के लिए एक लाख कार्य छोड़कर दान करना चाहिए। यानी देश, धर्म और समाज के कार्य सुचारू रूप से चलते रहें, इसलिए दान अवश्य करना चाहिए। अन्त में कवि कहता है कि एक करोड़ कार्य छोड़कर प्रभु का स्मरण करना चाहिए, तभी मनुष्य का इहलोक और परलोक सुधार सकता है।
कहने का तात्पर्य यही है कि चौबीसों घण्टे सिर्फ पैसा कमाने के पीछे पागल नहीं रहना चाहिए बल्कि अपने लिए और अपने परिवार के लिए कुछ समय अवश्य निकलना चाहिए। मनुष्य को केवल यन्त्रवत नहीं बनाना चाहिए। दूसरे शब्दों में कहें तो उसे सिर्फ पैसा कमाने की मशीन नहीं बन जाना चाहिए। कभी-कभार ऑफिस से जल्दी घर आकर बच्चों को समय देना चाहिए। इसी प्रकार कभी कुछ दिन की छुट्टी लेकर परिवार सहित देश-विदेश में कहीं घूमने जाने चाहिए।
जीवन में एकरसता से बोरियत होने लगती है। समय न मिल पाने के कारण ऐसे मनुष्य को पता ही नहीं चल पाता कि वह धीरे-धीरे अपने समाज और बन्धु-बान्धवों से काटता जा रहा है। दिन-प्रतिदिन और अधिक ऊँचाइयों पर सफलतापूर्वक कदम बढ़ाता हुआ एक दिन जब वह अपने पीछे की ओर मुड़कर देखता है तो स्वयं को नितान्त अकेला पाता है। उस समय वह चाहता है कि कोई ऐसा हो जो दो घड़ी उसके पास बैठकर उससे बात करे, उसके सुख-दुख साझा करे। परन्तु तब वैसा नहीं हो पाता।
अतः आज युवाओं से मेरा अनुरोध है कि अपने कार्य में वे इतना न डूब जाएँ की उन्हें दीन-दुनिया की ही बेखबर हो जाएँ। अपने में व्यस्त समयाभाव के कारण वे अपनों को ही पराया बना दें। अपने स्वास्थ्य के साथ कदापि खिलवाड़ न करें अपितु शरीर रूपी गाड़ी की मशीन को स्वस्थ रखें। तभी वे अपने कार्यों को तन्मयता से पूर्ण कर सकते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद