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वसंत का स्पर्श

21 फरवरी 2017

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वसंत का स्पर्श / वसंत का स्पर्श अब आनंद नहीं है आदमी की आँखों में । 'जले पर छिड़का गया नमक है ।' कोई आशा बाकी नहीं है आदमी के भीतर सोये आदमी के जगने की । बेशक ! जिस गति से बढ़ रही है यह दुनियाँ आगे-आगे उसी रफ़्तार से जा रहा है आदमी पीछे-पीछे । यकीन है कि - भविष्य की दुनियाँ में सब-कुछ होगा सारा साज़-ओ-सामान होगा ऐश्वर्य का । किन्तु उसमें नहीं होगा आदमी और आदमियत का आनंद । ईश्वर दयाल गोस्वामी कवि एवं शिक्षक ।

ईश्वर दयाल गोस्वामी की अन्य किताबें

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अपने बेटे के लिए

1 फरवरी 2017
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मेरी स्वयं रचित समकालीन कविता -अपने बेटे के लिए /बेटे !मेरी रफ़्तार के लिएतब्दील होते थेदुनियाँ की तमामरफ़्तारों में मेरे पिता ।कई बारसुख का तमाम आनंदमहसूस करने के बाबजूददुख के महासमुद्रको भी पार करतेथे मेरे पिताजहाँ खत्म होता हैक्षण और शताब्दी का फ़र्क ।बेटे !रोज़ की तरहशाम को दफ़्तर सेलौटने के बाद

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वसंत का स्पर्श

21 फरवरी 2017
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वसंत का स्पर्श / वसंत का स्पर्शअब आनंद नहीं हैआदमी की आँखों में ।'जले पर छिड़कागया नमक है ।'कोई आशा बाकी नहीं हैआदमी के भीतरसोये आदमी के जगने की ।बेशक !जिस गति सेबढ़ रही हैयह दुनियाँ आगे-आगे उसी रफ़्तार सेजा रहा हैआदमी पीछे-पीछे ।यकीन है कि -भविष्य की दुनियाँ मेंसब-कुछ होगासारा साज़-ओ-सामानहोगा ऐश्व

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