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अपने बेटे के लिए

1 फरवरी 2017

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मेरी स्वयं रचित समकालीन कविता - अपने बेटे के लिए / बेटे ! मेरी रफ़्तार के लिए तब्दील होते थे दुनियाँ की तमाम रफ़्तारों में मेरे पिता । कई बार सुख का तमाम आनंद महसूस करने के बाबजूद दुख के महासमुद्र को भी पार करते थे मेरे पिता जहाँ खत्म होता है क्षण और शताब्दी का फ़र्क । बेटे ! रोज़ की तरह शाम को दफ़्तर से लौटने के बाद हाथ में बिल्कुल वही मेरी पसंद का 'जे-बी गंगाराम ' के बिस्किट का छोटा पैकेट । शायद ! अपने लाड़ का परिचय ही नहीं बल्कि वचन पालन की सीख या उत्तरदायित्व निर्वहन का अर्थ मुझे जताने के लिए । बेटे ! स्कूल में भर्ती करने के बाद मेरे लिए मेरे पिता पिता नहीं किताब थे दुनियाँ के तमाम आघात - प्रतिघात आरोह - अवरोह के बीच अनुभूति के संगीत से सजी किताब बतौर - ए - सुबूत । बेटे ! उस वक्त मैं बेटा नहीं संघर्ष था पिता के संतुलन का परिचय समाज को देने के लिए । आखिर ! हर किताब के संतुलन के लिए ज़रूरत है लगनशील पाठक की । बेटे ! पूरा बेटा होने के बाद ही कोई हो पाता है पूरा पिता । मैं हो पाया हूँ या नहीं यह नहीं जानता किन्तु तुम यह जान लो जानकर फिर मान लो कि कल तुम भी होओगे पिता उस वक्त धरातल बदल चुका होगा कुछ घटते या बढ़ते हुए प्रतीत होंगे मूल्य । पर ध्यान रहे उस वक्त भी बदलना घटना या बढ़ना नहीं चाहिए बेटा - पिता या पिता - बेटा । ईश्वर दयाल गोस्वामी । कवि एवं शिक्षक ।

ईश्वर दयाल गोस्वामी की अन्य किताबें

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अपने बेटे के लिए

1 फरवरी 2017
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मेरी स्वयं रचित समकालीन कविता -अपने बेटे के लिए /बेटे !मेरी रफ़्तार के लिएतब्दील होते थेदुनियाँ की तमामरफ़्तारों में मेरे पिता ।कई बारसुख का तमाम आनंदमहसूस करने के बाबजूददुख के महासमुद्रको भी पार करतेथे मेरे पिताजहाँ खत्म होता हैक्षण और शताब्दी का फ़र्क ।बेटे !रोज़ की तरहशाम को दफ़्तर सेलौटने के बाद

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वसंत का स्पर्श

21 फरवरी 2017
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वसंत का स्पर्श / वसंत का स्पर्शअब आनंद नहीं हैआदमी की आँखों में ।'जले पर छिड़कागया नमक है ।'कोई आशा बाकी नहीं हैआदमी के भीतरसोये आदमी के जगने की ।बेशक !जिस गति सेबढ़ रही हैयह दुनियाँ आगे-आगे उसी रफ़्तार सेजा रहा हैआदमी पीछे-पीछे ।यकीन है कि -भविष्य की दुनियाँ मेंसब-कुछ होगासारा साज़-ओ-सामानहोगा ऐश्व

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