अपने बेटे के लिए
मेरी स्वयं रचित समकालीन कविता -अपने बेटे के लिए /बेटे !मेरी रफ़्तार के लिएतब्दील होते थेदुनियाँ की तमामरफ़्तारों में मेरे पिता ।कई बारसुख का तमाम आनंदमहसूस करने के बाबजूददुख के महासमुद्रको भी पार करतेथे मेरे पिताजहाँ खत्म होता हैक्षण और शताब्दी का फ़र्क ।बेटे !रोज़ की तरहशाम को दफ़्तर सेलौटने के बाद