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आ सजा दूँ

29 दिसम्बर 2016

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आ सजा दूँ आ सजा दूँ। काजल सी काली दाग दे कर आँखों को आग मन को मन में भर कर कर को कर में कर-कर ,पर सजकर, सजाकर ,संवर कर, मन को हो भारी संताप ,कह कर आ सजा दूँ। आ सजा दूँ। रूप, कुरूप मन और करके मिलन तन हो आए तृप्त जीवन,पर बुझ कर, बुझा कर ,बूझ कर मन को हो भारी संताप,कह कर आ सजा दूँ। आ सजा दूँ। जीवन, अपनी तालों और लय से प्रेम की हर नई किसलय से बना कर गीत, संगीत दे कर, पर बज कर, बजा कर, बांच कर मन को हो भारी संताप, कह कर आ सजा दूँ। आ सजा दूँ। गले में, दूँ गले का हार जिसमे है जीवन का सार लुटा कर अधरों का भार, पर लुट कर, लुटा कर, लूट कर मन को हो भारी संताप, कह कर आ सजा दूँ।
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चाँद बुलाये री ।

29 दिसम्बर 2016
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चाँद बुलाये री ।अरमान बुलाये री।मन इस तन काअमन गगन काचाँद और चांदनी काएहसान बुलाये री।चाँद...तुम थे कल 'पर' परआकर आँगन घरस्नेहल बरखा, बरसा करमुक्त मगन मन हर्षाकर, हो कहाँ तुम्हें घर की सोपान बुलाये री।चाँद...रहते हो पास मन केबन कर एहसास जीवन केमन से मन का तार, जोहो कर जार-जार व मेरीअधरों का भार बुला

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आ सजा दूँ

29 दिसम्बर 2016
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आ सजा दूँआ सजा दूँ।काजल सी काली दागदे कर आँखों को आगमन को मन में भर करकर को कर में कर-कर ,परसजकर, सजाकर ,संवर कर,मन को हो भारी संताप ,कह करआ सजा दूँ।आ सजा दूँ।रूप, कुरूप मनऔर करके मिलन तनहो आए तृप्त जीवन,परबुझ कर, बुझा कर ,बूझ करमन को हो भारी संताप,कह करआ सजा दूँ।आ सजा दूँ।जीवन, अपनी तालों और लय सेप

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