सागर से गहरा अम्बर से,है ज्यादा विस्तार ।
कुछ लफ्जों में कैसे लिख दूँ, अपने दिल का प्यार ।
अवचेतन मन में बस मेरे, तेरा ही तो ठौर।
बदल अभी ये दुनिया जाए, बदले चाहे दौर।
रोना गाना हँसना तुमसे,जीत तुम्हीं से हार ।
छंद गीत तुम गज़ल रुबाई, हो तुम ही अशआर ।
आते ही आगोश तुम्हारे, लेती आंखें मूंद।
ज्यूँ सहेज के रखा सीप ने, मणिकर्णिका की बूँद।
पावन इतना प्रेम है अपना, ज्यों गीता का सार।
सागर से गहरा अम्बर से,है ज्यादा विस्तार ।
इन अधरों की प्यास लिखूँ या, प्रणय भरी वो रात।
तुम्हीं बताओ कैसे लिख दूँ, बिन बादल बरसात।
बिन पायल के ही पाँवों में, *गूँज* रही झनकार ।
सागर से गहरा अम्बर से, है ज्यादा विस्तार।
अनहद गुंजन
मौलिक/ सर्वाधिकार सुरक्षित
29/08/17