4- क्रिस्टोफर कोलंबस
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क्रिस्टोफर कोलम्बस विश्व के महानतम साहसी व्यक्तियों में से एक थे। जिन्होंने अपने अदम्य आत्मविशवास से मार्ग में आने वाली अनेक कठिनाईयों एवं बाधाओं का सामना किया।
जीवन भर तिरस्कार और अपमान की पीड़ा भोगते हुए भी उन्होंने जो कारनामा कर दिखाया उसके लिए इतिहास में अमर हो गये।कोलम्बस ने न केवल अमेरिका की खोज की थी अपितु समुद्री मार्गो का पता भी लगाया। उन्होंने पृथ्वी की कर्क रेखा की वास्तविक स्थिति की खोज की थी।
जिसने बचपन से समुद्र की यात्रा का सपना देखा था। शुरू से ही जिसके मन में एक इच्छा अंकुरित हो रही थी कि वो ऐसा कुछ करेगा जिससे पूरी दुनिया उसका नाम फक्र से लेगी। समुद्र और जहाज़ों के सपनो में खोये रहने वाले उस महान यात्री का नाम था क्रिस्टोफर कोलंबस। जी हाँ, वही कोलंबस जिसने अमेरिका की खोज करके सही मायने में दुनिया को बदल दिया था ।
कोलंबस की साहसिक यात्राओं के कारण ही यूरोपीय देशों को पहली बार पता लगा कि इस धरती पर और भी दुनिया है। वहां भी विपुल सम्पदा है। अदम्य साहसी और महत्त्वाकांक्षी कोलंबस का मानना था कि- "जब तक आप किनारा छोड़ कर आगे नही बढ़ेंगे। तब तक अपने सपनों के समुन्दर को पार नही कर पायेंगे।"
इटली में पैदा हुए कोलंबस के पास विरासत में कोई धन नही था। उसका सबसे बड़ा धन था साहसिक प्रवृत्ति, जिसके बल पर उसने सिद्ध किया कि दुनिया गोल है। उस दौरान प्रचलित मान्यताओं में पांच महाद्वीप माने जाते थे।
यूरोप के देशों को पहली बार पता लगा कि इस धरती पर एक दुनिया और भी है। जब कोलंबस ने अमेरिका की खोज की तो अमेरिका को छठा महाद्वीप माना गया। हालांकि कोलंबस हमेशा भारत और चीन आना चाहता था। यही वजह है कि कोलंबस अमेरिका की खोज के बाद भी यात्रायें करता रहा।
कोलबंस के जन्म को लेकर कोई ठोस जानकारी नहीं है। माना जाता है कि 1451 में अगस्त से अक्टूबर के बीच में कभी उसका जन्म हुआ था। जन्म इटली में हुआ था इस बात का पुख्ता सबूत इटली के उत्तरी जिले जिनेवा से प्राप्त होता है।
कोलंबस का जन्म पुनर्जागरण काल में हुआ था। इसी काल में नई खोज के साथ कला, संस्कृति और साहित्य की नई बयार बहनी शुरु हुई थी। 15 वीं सदी को बदलाव की सदी भी कहा जाता है और इसी सदी में कोलंबस ने अपनी खोज से स्पेन को न केवल अकूत धन दौलत से मालामाल किया बल्कि स्पेन के साम्राज्य को अमेरिका के बड़े भूभाग तक पहुँचा दिया।
कोलंबस का परिवार मामूली हैसियत वाला था। दो भाईयों में कोलंबस छोटा था।कोलंबस की एक बहन भी थी। पिता बुनकर थे। लिहाजा वे कोलंबस को भी यही पेशा अपनाने को कहते थे। बचपन में पढाई-लिखाई के लिये स्कूल जरूर गये थे किन्तु बहुत आगे तक शिक्षा प्राप्त नही कर सके। फिर भी उनको किताबें पढने, नई-नई जानकारियाँ हासिल करने और दुनियाभर की बातों में दिलचस्पी थी। कोलंबस को खास तौर से समुद्री दुनिया की जानकारी बचपन से ही बहुत लुभाती थी।
अक्सर बंदरगाह पर जहाजों को देखते और सोचते थे कि जिनेवा से बाहर के शहर कैसे होंगे, वहां के लोग कैसे होंगे। उन दिनों यूरोप में जहाज परिवहन ने बड़े उद्योग की शक्ल ले ली थी। यूरोप का पूरा व्यापार इसी के जरिये होता था, इसलिये बंदरगाह पर तमाम बड़े जहाज आते-जाते थे। इस पर यात्रा करने वाले जहाजी, बालक कोलंबस के गुरु के समान थे। जो कोलंबस की जिज्ञासा को शांत करते थे। कोलंबस को इन लोगों का आत्मविश्वास बहुत आर्कषित करता था। यही वजह है कि कोलंबस में आत्मविश्वास बचपन से ही पल्लवित हो गया था।
जीवन आगे बढ़ रहा था। उनको अपने पिता के साथ काम करने में बोरियत महसूस होने लगी थी। कोलबंस को स्कूली शिक्षा से ये फायदा हो गया था कि उनको लेटिन पढ़नी एवं यूरोप में प्रचलित कैस्टिलियन भाषा लिखनी आ चुकी थी।
अपना ज्ञान बढ़ाने के लिये कोलंबस ने एक किताब की दुकान पर क्लर्क की नौकरी कर ली थी। उस दौरान प्रिटिंग शुरु ही हुई थी। फिर भी जिनेवा में अच्छी किताबें उपलब्ध थीं। युवा कोलंबस ने ढेरों किताबें पढ़ीं और अपनी लेटिन भाषा को काफी दुरस्त कर लिया।
चौदह साल की उम्र में कोलंबस के कदम उसी ओर चल पड़े। जहाँ उसकी नियती ले जाना चाहती थी। 1474 में कोलंबस को एक मेडिटेरियन शिप जो ग्रीस के पूर्व में स्थित एक द्वीप चिओस जा रहा था। इस पर साधारण जहाजी की नौकरी मिल गई। 1476 में जब उसका जहाज इंग्लैंड की ओर जा रहा था। तब पुर्तगाल के पास फ्रेंच समुद्री लुटेरों ने जहाज पर हमला किया और उसमें आग लगा दी थी। तब कोलंबस किसी तरह से अपनी जान बचाकर तैरते हुए पुर्तगाल के बंदरगाह केपसेंट पहुँच गया था।
पन्द्रहवीं शताब्दी में पुर्तगाल समुद्र परिवहन, भूगोल, जहाज संचालन एवं कला के अध्ययन का केन्द्र था। कोलंबस ने वहां एक जहाज संचालन संस्थान में प्रवेश ले लिया और बहुत कुछ सीखा। समुद्र की यात्राएं अनुभव एवं समुद्री ज्ञान से कोलंबस काफी मजबूत बन चुका था। उसके ज्ञान के कारण लिस्बन में उसकी गिनती मास्टर जहाजी के रूप में होने लगी थी।
कोलंबस की शादी फेलिपा के साथ हुई थी। फेलिपा अमीर एवं अभिजात्य वर्ग से थी। समुद्र के प्रति दीवानगी देखकर फेलिप की माँ ने कोलंबस को ऐसे चार्ट और उपकरण दिये जो उसके समुद्री शौक में बहुत उपयोगी थे।
कोलंबस ने पुर्तगाल के राजा जॉन द्वितीय के सामने भारत की खोज करने का प्रस्ताव रखा। दरअसल कोलंबस को लग रहा था कि, पुर्तगाल पूर्व में व्यापार और उपनिवेश की संभावनाओं को तलाश रहा है।
कोलंबस की योजना को पुर्तगाल के विद्वानों ने असंभव करार देते हुए उसे सपनो में रहने की संज्ञा दे दी। लिहाजा कोलंबस स्पेन चला गया। कहते हैं इंतजार कभी-कभी इतना लंबा हो जाता है कि उम्मीदें डावांडोल हो जाती है। कोलंबस भी निराश हो रहा था, उसका धैर्य टूटने लगा था। लेकिन कहते हैं ना-
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती है।
बहुत जद्दोज़हद के बाद कोलंबस का सपना साकार होता नजर आने लगा था।
कोलंबस ने अपनी पहली यात्रा तीन अगस्त 1492 को स्पेन के पालोस बंदरगाह से शुरु की। उस दिन बंदरगाह की रंगत कुछ और ही थी। स्पेन के राजा-रानी समेत हजारों लोग उस दिन एक ऐसे अभियान को हरी झंडी दिखाने आये थे, जो अगर कामयाब हो जाता तो आने वाले सालों में पूरे स्पेन की किस्मत बदल सकता था।
बंदरगाह पर जो जहाज निकले थे उनका नाम था-सांता मारिया,नीना, और पेंटा सफर के दौरान कोलंबस अपनी यात्रा का विवरण लिखता रहा। 6 सितंबर को जहाज अफ्रिका के निकट केनेर द्वीप पहुँचा। एक महीना बीतते -बीतते भोजन का समान खत्म होने लगा था। बरहाल कोलंबस अपने साथियों का मनोबल बढाते हुए निरंतर यात्रा कर रहा था।
आखिरकार लम्बी यात्रा के बाद 10 अक्टूबर को यात्रा के सत्तर दिन पूरे हो गये तब उन्हें एक चिड़िया उड़ती नज़र आई, लगा की गल्फ की खाड़ी आ पहुंची है।
11 अक्टूबर को कोलंबस ने घोषणा की, कि दूर उन्हे रोशनी टिमटिमाते हुए दिखी है। उन्होंने रोशनी का पीछा किया। 12 अक्टूबर की रात दो बजे जहाजी चिल्लाने लगे, जमीन-जमीन जहाज पर उत्सव का माहोल बन गया था। जहाज रुकने के बाद कोलंबस उस धरती पर सबसे पहले उतरा। कोलबंस ने घोषणा की कि आखिर मैंने सिद्ध कर दिया कि पश्चिम से यात्रा करके पूरब तक पहुँचा जा सकता है।
कोलंबस ने सोचा कि वह इंडिया आ गया है। जबकी वह दक्षिण अमेरिका की ओर पहुँच गया था। लिहाज़ा ये भी उसके लिये नई दुनिया थी। वहाँ के स्थानीय लोगों ने उसका स्वागत किया और उपहार में सोना चाँदी दिया। चूंकि कोलंबस इंडिया की खोज में निकला था। तो उसने वहाँ के निवासियों को इंडियन कहा था। इसलिये आज भी दक्षिण अमेरिका के मूल निवासी को रेड इंडियन कहा जाता है।
आज हम जिस अमेरिका को जानते हैं हकीकत में कोलंबस वहां नहीं पहुंचा था, बल्कि उसने आस-पास के द्वीपों और साउथ अमेरिका में कदम रखे थे। चूँकि ये सभी जगहें आस-पास या आपस में कनेक्टेड हैं इसलिए डिस्कवरी ऑफ़ अमेरिका का क्रेडिट कोलंबस को जाता है।
कुछ दिन यहाँ रुकने के बाद उसका काफिला आगे बढ़ा और कोल्बा पहुँचा। जिसे आज क्यूबा के नाम से जाना जाता है। क्रिसमस के दिन कोलंबस सांता मारिया पहुँचा। उसने इस जगह को इस्तापोलियाना नाम दिया। यहाँ उसने लकड़ी का एक विशाल भवन बनवाया था।
सफर के दौरान हैती में उसकी मुलाकात तैनियो अरावांक कबीले के लोगों से हुई। यहाँ से वह अपार धन सम्पदा स्पेन ले गया। उसके आगमन पर राजा-रानी ने स्वागत किया और जश्न मनाया गया। कोलंबस का सपना साकार हो गया था। उसे अनेक सम्मान के साथ एडमिरल कोलंबस की पदवी से नवाज़ा गया।
महत्वाकांक्षी कोलंबस अपनी इस उपलब्धी से उत्साहित होकर दूसरी यात्रा की तैयारी करने लगा। एडमिरल कोलंबस 23 सितंबर 1493 को 17 जहाज और 1500 लोगों के साथ दूसरी यात्रा पर निकला। इसबार उसका बेड़ा इस्तापोलियाना जल्दी पहुँच गया क्योंकि पूर्व की यात्रा से रास्ता पता चल चुका था। इसबार इस्तापोलियाना में उसको संघर्ष का सामना करना पड़ा। पिछला घर टूट जाने से उसने वहाँ अपना एक नया घर बनाया, जिसका नाम इसाबेला रखा।
इसाबेला पर अब स्पेन का अधिकार हो गया था। सफर के दौरान जहाँ भी कोलंबस रुका और वहाँ उसने स्पेन का झंडा लगा दिया। इस तरह स्पेन का अधिकार क्षेत्र बढ़ता जा रहा था। लेकिन इसके साथ ही हर जगह काफी कत्लेआम भी कोलंबस के द्वारा हुआ।जिसकी शिकायतें स्पेन में लगातार पहुँच रही थीं।
कोलंबस के खिलाफ भ्रष्टाचार, क्रूरता एवं स्थानीय लोगों को दास बनाकर बेचने के आरोप थे। इस कारण दूसरी यात्रा की वापसी पर उसका स्वागत बहुत ठंडा रहा।
इसी बीच ये खबर आ रही थी कि, पुर्तगाल नाविक वास्कोडिगामा भारत की खोज पर निकल चुका है। लिहाजा स्पेन को कोलंबस की जरूरत थी इसलिये नई खोज के लिये वो अपनी तीसरी यात्रा के लिये निकला। हालांकि कोलंबस के नाम अमेरिका और वेस्टइंडीज के तमाम द्वीपों और देशों को खोजने का श्रैय इतिहास के पन्ने पर लिखा जा चुका था।
कोलंबस के क्रूरता पक्ष का अवलोकन तीसरी यात्रा में देखा जा सकता है। अटलांटिक से आगे बढ़ने पर जहाज में ही विद्रोह हो गया था। जहाजियों ने कोलंबस के साथ काम करना मना कर दिया था। परंतु कोलंबस ने उनको साथ में काम करने के लिये मना लिया।
सफर आगे बढ़ने पर कोलंबस को तीन पहाड़ियों के बीच जमीन दिखी। जिसे उसने त्रिनिडाड नाम रखा। इसी बीच इस्तापोलियाना में हालात बहुत बिगड़ चुके थे, जहाँ कोलंबस को जाना पड़ा।जबकि वो अब वहाँ जाना नहीं चाहता था।
इसबार इस्तापोलियाना की बिगड़ी स्थिती को काबू करने में कोलंबस असर्मथ रहा और वहाँ की स्थिती काबू करने के लिये ईमानदार उच्चाधिकारी बोबाडिला को भेजा गया। सबूतों के आधार पर कोलंबस और उसके भाई को हथकड़ी बाँधकर स्पेन ले जाया गया।
उस समय कोलंबस की उम्र 53 साल की हो गई थी।
कोलंबस ने अपनी खोज के कारण जो प्रसिद्धी पाई थी वो उसकी क्रूरता के कारण धूमिल हो गई थी। हालांकि स्पेन के साथ-साथ कोलंबस ने भी धन खूब कमाया था।
स्पेन पहुँचकर कोलंबस ने माफी की गुहार की। जिससे वहाँ के राजा ने माफ कर दिया तथा तत्काल हथकड़ी खोलने का आदेश भी दिया। राजा ने माफ तो कर दिया परंतु चौथी यात्रा पर उसे जाने का आदेश दे दिया। जबकि उम्र की अधिकता के कारण कोलंबस यात्रा पर जाना नहीं चाहता था। फिर भी उसे चौथी यात्रा के लिये निकलना पड़ा।
कोलंबस अपने अनुभव तथा समुद्री ज्ञान की वजह से तूफानों की गणना एंव मौसम की भविष्यवाणी बहुत सटीक करता था। यात्रा की शुरुवात में ही कोलंबस ने भविष्यवाणीं कर दी थी कि बहुत भयकंर तूफान आने वाला है और ये तूफान इतिहास का सबसे खतरनाक तूफान था।
कोलंबस के मना करने पर भी बोबाडीला अनेक जहाजों का काफीला लेकर स्पेन के लिये निकला।जिसमें से 27 जहाज डूब गये। बोबाडीला किसी तरह से बचते हुए स्पेन पहुँचा।लेकिन स्पेन के पास ही उसका जहाज जो तमाम जेवरातों से लदा हुआ था डूब गया। उसके खजाने की खोज वर्तमान में भी जारी है।
वहीं कोलंबस तूफानी खतरे को देखते हुए रियो जेना में रुक गया था और तूफ़ान गुजरने के बाद यात्रा आरंभ की।
इस यात्रा के दौरान कोलंबस जमैका में डेढ़-दो साल तक रुका रहा। उसने घोषणा की थी कि, 29 फरवरी, 1504 को सूर्यग्रहण होगा और ऐसा ही हुआ। कोलंबस समुद्री हलचल के साथ सूर्य और चन्द्रमा की गतिविधियों का भी ज्ञाता था।
7 नवम्बर 1504 को कोलंबस स्पेन पहुँच गया था। वित्तिय तौर पर मजबूत कोलंबस उस समय स्वस्थ्य से बेहद कमजोर हो गया था। मलेरिया जैसी कई बिमारियों ने उसे जकड़ लिया था।
20 मई 1506 में 55 साल की उम्र में कोलंबस इहलोक से परलोक की यात्रा पर निकल गया। कोलंबस के मन में ये कसक रह गयी थी कि स्पेन के राजा ने वादे के अनुसार उसके द्वारा लूटी हुई सम्पत्ति का दसवां हिस्सा नही दिया।
कोलंबस का भारत की खोज का सपना भी पूरा न हो सका क्योंकि पुर्तगाल निवासी वास्कोडिगामा ने 1498 में भारत की खोज पूर्ण कर ली थी।
जीवनभर यात्रा करने वाले कोलंबस को कब्र में भी चैन से रहने नही दिया गया। ये जानकर हैरानी होगी कि जन्म की तरह उसकी कब्र का कोई स्थाई साक्ष्य नही है। उसकी कब्र को कई बार खोदा गया। कई बार उसे अलग-अलग जगहों पर दफनाया गया। दरअसल आज किसी को भी पता नही है कि कोलंबस कहाँ दफन है।
कोलंबस की मृत्यु के बाद उसके अवशेष स्पेन के मठ कारटूजा में रखे हुए थे। 100 साल बाद इसे सेंट डोमिंगो में दफन कर दिया गया था। 1795 में जब फ्रांस सरकार ने इस्तापोलियाना पर कब्जा कर लिया तो, कब्र को खोदकर कोलंबस के अवशेष को क्यूबा में दफनाया गया।
1897 में अमेरिका और स्पेन के युद्ध के बाद क्युबा स्वतंत्र हो गया। कोलबंस की कब्र फिर खुदी और इसे स्पेन के सेविले के कैथेड्रेल भेज दिया गया। बाद में लोगों ने शक जाहिर किया कि कोलंबस के अवशेष असली नही हैं और डीएनए की मांग की गई। परंतु सेंट डेमिंगो की सरकार इसके लिये राजी नही हुई और मान लिया गया कि दोनों ही जगह कोलंबस की कब्र है।
ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि कोलंबस की अमेरिका खोज का दुनिया पर व्यापक असर पड़ा। वेस्टर्न दुनिया जो पन्द्रहवीं सदी तक सबके लिये अनजानी थी। अचानक कोलंबस की मेहनत की वज़ह से कामयाब हो गई।
आज जो दुनिया दिख रही है। उसमें कोलंबस का अहम योगदान है। यूरोप में भले ही किसी जमाने में उसकी छवी को दागदार माना गया हो। फिर भी कोलंबस वो महानायक है जिसने विश्व के मानचित्र में ऐसे द्वीपों और देशों का परिचय करवाया जिससे दुनिया अंजान थी।
कोलंबस यूरोप की महान सम्मानित शख्सियतों में से एक है। आज भी पूरे अमेरिका में लोग अक्टूबर के दूसरे सप्ताह के सोमवार को कोलंबस दिवस मनाते हैं। इस दिन अमेरिकी सरकार ने सार्वजनिक अवकाश भी घोषित कर रखा है।
जितने द्वीप और क्षेत्र कोलंबस ने अपने जीवन में खोजे और जितनी यात्राएं की।उतनी मानव इतिहास में किसी ने न की होगी। इतिहास के पन्नों में कोलंबस के साहसिक खोज को सम्मान से लिखा गया है। कोलंबस ने सिद्ध कर दिया किसफलता उनको ही मिलती है जिनमें अपने सपनों को पूरा करने के लिये जोश एवं जुनून होता है।
अच्छा हुआ कोलंबस भारत नहीं पहुँचा
ये जाना माना तथ्य है कि महान नाविक क्रिस्टोफ़र कोलंबस भारत और पूर्वी एशियाई देशों के लिए सीधा समुद्री रास्ता खोजने के नाम पर कैरीबियन द्वीपों के रास्ते अमरीका तक पहुँचा था।
कोलंबस का इस बात पर पक्का यक़ीन था कि धरती गोल है, लेकिन तब मौज़ूद अपूर्ण भौगोलिक सूचनाओं के आधार पर कोलंबस को ये ग़लतफ़हमी हो गई थी कि यूरोप से पश्चिम की ओर समुद्री यात्रा करते हुए महान पूर्वी सभ्यताओं तक पहुँचने में बहुत ज़्यादा दूरी नहीं तय करनी पड़ेगी।
कोलंबस अपनी यात्रा के लिए पहले पुर्तगाल के शासक की शरण में गया। लेकिन पुर्तगालियों को एक तो कोलंबस की दलीलों में ज़्यादा दम नहीं दिखा, और दूसरा पुर्तगाली ख़ुद अफ़्रीकी महाद्वीप का चक्कर लगाते हुए भारत पहुँचने की योजना में लगे हुए थे। लंबे समय तक चली बातचीत के बाद अंतत: स्पेन के शासकों ने कोलंबस की यात्रा में पैसा लगाने की हामी भरी।
वो तो अच्छा हुआ कोलंबस भारत पहुँचने से रह गया, वरना स्पेन के शासकों के साथ उसके क़रार के अनुसार वो भारत या कम-से-कम भारत के किसी इलाक़े का गवर्नर या वॉयसराय तो ज़रूर ही होता। ऐसा होने पर भारतीय आबादी को कोलंबस के कुशासन और उसकी क्रूरता का उसी प्रकार सामना करना पड़ता जैसा कि कैरीबियन जनता को करना पड़ा।
स्पेन में मिले पाँच सदी पहले के एक दस्तावेज़ में महान नाविक कोलंबस के चरित्र के काले पक्ष को विस्तार से उजागर किया गया है।दस्तावेज़ में कोलंबस पर चलाए गए मुक़दमे का विवरण है। इसमें बताया गया है कि इंडीज़ नाम कोलंबस ने कैरीबियन द्वीपों को भारत का हिस्सा मानते हुए दिया था। गवर्नर और वॉयसराय रहने के दौरान महान नाविक कोलंबस क्रूरता की सीमाओं का लाँघ गया था।
कोलंबस के तानाशाही शासन में दी जाने वाली सज़ाओं में शामिल था- लोगों के नाक-कान कटवा देना, औरतों को सरेआम नंगा घुमाना और लोगों को ग़ुलामों के रूप में बेचना।
जिस दस्तावेज़ में कोलंबस की तानाशाही का सबूत मिला है वो दरअसल कोलंबस पर भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच-रिपोर्ट है। स्पेन के राजा फ़र्डिनांड और रानी इसाबेला के आदेश पर यह जाँच फ़्रांसिस्को डि बोबादिला ने की थी। जो कि पद से हटाए गए कोलंबस की जगह इंडीज़ का गवर्नर बना था।
बोबादिला की जाँच-रिपोर्ट स्पेनी शहर वलादोलिद के पुरालेखागार में धूल फाँक रही थी। एक इतिहासकार की नज़र इस 48 पेजी दस्तावेज़ पर पड़ी और इसे सार्वजनिक किया गया। कोलंबस का 1506 में एक धनी किंतु बदनाम व्यक्ति के रूप में निधन हो गया था।
बोबादिला की जाँच-रिपोर्ट का अध्ययन करने वाले दो इतिहासकारों के अनुसार इंडीज़ में सात साल के शासन के दौरान कोलंबस और उसके भाइयों की करतूतों का ख़ुलासा हुआ।
कैरीबियन द्वीपों, ख़ास कर मौज़ूदा डोमिनिकन गणतंत्र वाले इलाक़े, से आने वाली अत्याचार की ख़बरों ने स्पेन के शासकों को बाध्य किया कि वो कोलंबस को वापस बुलाएँ।कोलंबस को बेड़ियों में जकड़ कर स्पेन लाया गया। उसके ख़िलाफ़ मुक़दमा चला। जिसके लिए बोबादिला ने 23 गवाहों से सबूत जुटाए। कोलंबस की पदवी छीन ली गई, हालाकि उसे कोई कड़ी सज़ा नहीं दी गई।
ये सब जानने के बाद यही लगता है कि चलो अच्छा हुआ जो कोलंबस भारत तक नहीं पहुँचा।