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भाग-8 द्वितीय विश्व युद्ध का जनक एडोल्फ हिटलर

29 मई 2022

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द्वितीय विश्व युद्ध का जनक एडोल्फ हिटलर
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हिटलर से ज्यादा महत्वाकांक्षी इंसान शायद ही इस धरती पर कोई पैदा हुआ होंगा। एडोल्फ़ हिटलर एक ऐसा नाम है जिसके नाम से सिर्फ जर्मनी ही नही बल्कि सारा विश्व एक समय काँपता था। 

यहूदियों पर उसके द्वारा किये गए अत्याचार से एक बार ऐसा लगा जैसे इस दुनिया से मानवता ख़त्म ही हो जायेंगी। 
कब्रिस्‍तान में एक नई कब्र के पास बैठकर एक नौजवान लड़का फूट-फूटकर रो रहा था और कब्र को कह रहा था कि ”मां मुझे छोड़कर क्‍यों चली गई ? मां की मौत पर कलेजा फाड़कर रोने वाला यह लड़का आगे चलकर 20 वीं सदी के सबसे खूँखार व्‍यक्‍तियों में से एक बना जिसका नाम था -एडोल्फ हिटलर 

20 अप्रैल, 1889 के दिन हिटलर का जन्‍म ऑस्‍ट्रिया में हुआ था। उसकी प्रारंभिक शिक्षा लिंज में हुई। पिता की मौत के बाद 17 साल की उम्र में हिटलर वियना चला गया। वियना में पोस्‍ट कार्ड पर चित्र बनाकर अपना गुजारा गुजारा करने लगा। और वही से हिटलर के दिल में साम्‍यवादियों और यहूदियों के लिए नफरत बढ़ने लगी थी। 

जब प्रथम विश्वयुद्ध का प्रारंभ हुआ तब हिटलर सेना में भर्ती हो गया और फ्रांस की कई लड़ाइयों में उसने भाग लिया। साल 1918 में युद्ध में घायल होने के कारण वो अस्पताल में रहा और उसके बाद उसने “नाजी दल” की स्थापना की। इसका उद्देश्य साम्यवादियों और यहूदियों से उसके सारे अधिकार छीन लेना था। 

“नाजी दाल” के सदस्यों में देशप्रेम कूट-कूटकर भरा था। इस दल ने यहूदियों को प्रथम विश्वयुद्ध की हार के लिए दोषी ठहराया। आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण जब नाजी दल के नेता हिटलर ने अपने ओजस्वी भाषणों में उसे ठीक करने का आश्वासन दिया तो अनेक जर्मन हिलटर का भाषण सुनकर उसके नाजी दल के सदस्य बन गए।

अपने कड़वे भाषणों की वजह से साल 1922 में हिटलर एक प्रभाव शाली व्यक्ति बन गया। उसने स्वस्तिक (हिन्दुओं के शुभ चिह्र) को अपने दल का चिह्र बनाया। समाचार पत्रों के द्वारा हिटलर ने अपने दल के सिद्धांतों का प्रचार जनता में किया। भूरे रंग की पोशाक पहने सैनिकों की टुकड़ी तैयार की गई।

साल 1923 में हिटलर ने जर्मन सरकार को उखाड़ फेंकने का प्रयत्न किया पर इसमें वो असफल रहा, जिस वजह से उसे जेल में कैद कर लिया गया। जेल में बैठे बैठे उसने “मेरा संघर्ष” नाम की अपनी आत्मकथा लिखी। इसमें नाजी दल के सिद्धांतों का विवेचन किया गया था। 

साल 1933 में हिटलर ने जर्मन संसद को नष्ट कर दिया, साम्यवादी दल को गैरकानूनी घोषित कर दिया और राष्ट्र को स्वावलंबी बनने के लिए ललकारा। नाज़ी दल के विरोधी व्यक्तियों को जेलखानों में डाल दिया गया। कानून बनाने की सारी शक्तियाँ हिटलर ने अपने हाथों में ले ली और साल 1934 में उसने खुद को सर्वोच्च न्यायाधीश घोषित कर दिया। 

उसी वर्ष हिंडनबर्ग की मृत्यु के बाद वो राष्ट्रपति बन बैठा।जो पूरी दुनिया के लिए बदकिस्मती थी। नाजी दल का आतंक जनजीवन के हर क्षेत्र में छा गया और साल 1933 से 1938 के बीच लाखों यहूदियों की हत्या कर दी गई थी। 

साल 1933 में जर्मनी की सत्ता पर जब एडोल्फ हिटलर आया तब उसने वहां एक नस्लवादी साम्राज्य की स्थापना की। उसके साम्राज्य में यहूदियों को इंसानी नस्ल का हिस्सा नहीं माना गया। यहूदियों के प्रति हिटलर की इस नफरत का नतीजा नरसंहार के रूप में सामने आया, “होलोकास्ट” इतिहास का वो नरसंहार था, जिसमें छह साल में तकरीबन 60 लाख यहूदियों की हत्या कर दी गई थी। इनमें 15 लाख तो सिर्फ बच्चे थे। 

हिटलर ने साल 1933 में राष्ट्रसंघ को छोड़ दिया और अगले युद्ध को ध्यान में रखकर जर्मनी की सैन्य शक्ति बढ़ाना प्रारंभ कर दिया। उसी वर्ष आस्ट्रिया के नाजी दल ने वहां के चांसलर डॉलफस को मार दिया।

हिटलर हमेशा मौत के डर के साये में रहता था। उसे हर पल यह डर सताता था कि कहीं उसके खाने में उसे जहर ना दे दिया जाए। उन्हें अपने हर निवाले में मौत नजर आती थी क्योंकि इंग्लैंड हिटलर को जहर देना चाहता था और हिटलर को अपने जासूसों से इस बात का पता चल गया था कि उसे जहर देकर मारने का प्रयास किया जा सकता है।

"हिटलर्स लास्ट डे मिनट बाई मिनट" किताब में हिटलर ने लिखा था कि “मैं और मेरी पत्नी ने समर्पण और मारे जाने की शर्म की बजाय मौत चुनी है। यह हमारी इच्छा है कि हमारे शवों को तुरंत जला दिया जाएगा।” इसके कुछ देर बाद हिटलर ने अपने साथियों को लंबा भाषण पिलाया और देर रात प्रेमिका ईवा ब्राउन के साथ शादी की रस्में पूरी हुईं। इसके बाद वरिष्ठ अधिकारियों ने चाय पार्टी दी।

लेकिन हिटलर का दिमाग युद्ध की लगातार बिगड़ती स्थिति में उलझा था। सुबह के कुछ पांच बजे वह और ईवा अपने अपने कमरे में चले गए। बाहर रूस की भयानक बमबारी जारी थी। रूसी सेना हिटलर के बंकर से कुछ सौ कदमों की दूरी तक पहुंच चुकी थी और उन्होंने नाजी दल को पूरी तरह से बिखेर दिया था।

हिटलर और ईवा की 30 अप्रैल, 1945 को बर्लिन में मौत हो गई थी। माना जाता है कि अपनी संभावित हार से हताश होकर उसने खुद को गोली मार ली थी जबकि ईवा ने जहर खा लिया था।
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