कभी ऑनलाइन तो,
कभी ऑफलाइन
शिक्षा का आजकल
बच्चे चख रहें हैं स्वाद,
हम ही थे बस ऐसे जो ,
रोज़ स्कूल जा जाकर हुए थे बेहाल
दोस्तों के संग बैठ के पढ़ना
एक दूसरे के साथ मिलकर खेलना
और शेयर करना टिफन का,
ऑफलाइन में कहां रहता है
मज़ा इन सब का।
ऑफलाइन में भी आजकल मज़े
ख़ूब बच्चों के आ रहे हैं
टीचर पढ़ा रही है
और बच्चे सो रहे हैं
मां बाप की सिर दर्दी
ऑफलाइन में और भी बढ़ गई है।
फोन है उनका मज़ा बच्चे ले रहे हैं
रिश्तेदारों की आती कॉल जब
बच्चे हीऑनलाइन मिल रहें हैं
क्या बताएं मम्मी
सिर अपना धुन रही है
हर वक़्त बैठी रसोई में
कुछ ना कुछ बना रही है।
कभी ऑफलाइन तो
कभी ऑनलाइन के चक्कर में
दिनों रात पिसी जा रही है,,
बस पिसी जा रही है,,,।
मौलिक रचना सय्यदा खा़तून ✍️
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