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मेले में जा के आ कभी

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“गज़ल”जा मेरी रचना तू जा, मेले में जा के आ कभी घेरे रहती क्यूँ कलम को, गुल खिला के आ कभीपूछ लेना हाल उनका, जो मिले किरदार तुझको देख आना घर दुबारा, मिल मिला के आ कभी॥शब्द वो अनमोल थे, जो अर्थ को अर्था सके सुर भुनाने के लिए, डफली हिला के आ कभी॥छंद कह सकती नहीं तो, मुक्त हो

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