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आ जा चित्तवन के चकोर

13 अप्रैल 2017

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featured imageस्वर्णिम यौवन का सागर-अपार टकरा रहा तन से बारंबार विपुल स्नेह से सींचित् ज्वार रसमय अह्लादित करता पुकार अन्तःस्थल में उठता हिलोर आ जा ! चित्तवन के चकोर ! सुरभित- सावन मधुमास बिता फाल्गुन का हर उत्पात फीका अंतरत्तम में हिय रिस चुका अवचेतन, मन रिक्त सब अभि लेख ा है पतझड़ कब का मचाता शोर आ जा चित्तवन के चकोर ! हिय मधुरस घोले अन्वेषण में हो अवचेतन डोले अवशोषण में रस – सिक्त ह्रदय खोले , मधुमय पोषण में अहा ! निरवता में बोले कैसा रोषण में विस्मित यौवन व्यथित हर छोर आ जा चित्तवन के चकोर ! है सुख रही अधरों की मीठास जीवन – पथ में सरस बहारों की आस सदृश स्वप्न अवलंबित सुख की तलाश मेघ आच्छादित पलकों की बुझति चिर प्यास बरसे अधरामृत , पी , बढता चल यौवन की ओर आ जा चित्तवन के चकोर ! मन चंचल चित्तवन में डोले झीना यौवन मधुरस घोले घिरा अंतस् में प्यासा बोले किससे मधुरम् प्रतिबिंब खोले ! हिय डूब रहा रस में विभोर आ जा चित्तवन के चकोर ! प्रणय निवेदन है तुमसे नव – तुषार के बिंदु बने हो यौवन – प्रवाह में सतत् – उन्मत्त ज्यों विकल – वेदना मध्य सने हो उफनाति लहरें व्यथित हर छोर आ जा चित्तवन के चकोर ! © कवि पं आलोक पान्डेय

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आ जा चित्तवन के चकोर

13 अप्रैल 2017
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स्वर्णिम यौवन का सागर-अपार टकरा रहा तन से बारंबार विपुल स्नेह से सींचित् ज्वार रसमय अह्लादित करता पुकार अन्तःस्थल में उठता हिलोर आ जा ! चित्तवन के चकोर ! सुरभित- सावन मधुमास बिता फाल्गुन का हर उत्पात फीका अंतरत्तम में हिय रिस चुका अवचेतन, मन रिक्त सब अभिलेखा है पतझड़ कब का मचाता शोर आ जा चित्तवन के

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आर्त्त गैया की पुकार

6 जून 2017
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कंपित! कत्ल की धार खडी ,आर्त्त गायें कह रही –यह देश कैसा है जहाँ हर क्षण गैया कट रही !आर्त्त में प्रतिपल धरा, वीरों की छाती फट रहीयह धरा कैसी है जहाँ हर क्षण 'अवध्या' कट रही |अाज सांप्रदायिकता के जहर में मार मुझको घोल रहा,सम्मान को तु भूल ,मुझे कसाई को तू तोल रहाहे भारत! याद कर पूर्व किससे था समृद्ध

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