राष्ट्रोत्कर्ष
यह राष्ट्र मुझे करता अभिसींचित् प्रतिपल मलय फुहारों से , प्रतिदानों में मिले ठोकरों , धिकारों, दुत्कारों से , जो लूट रहे मुझको हर क्षण ,उन कायर कुधारों से , विविध द्रोहियों के विषबाणों , कुटिलता के कलुषित वारों से | गाँव ,समाज के लोग असहाय , क्यों नैतिकता फूट रही, अभी कल तक जन-जन सहाय,क्यों आज सत्