आर्त्त गैया की पुकार
कंपित! कत्ल की धार खडी ,आर्त्त गायें कह रही –यह देश कैसा है जहाँ हर क्षण गैया कट रही !आर्त्त में प्रतिपल धरा, वीरों की छाती फट रहीयह धरा कैसी है जहाँ हर क्षण 'अवध्या' कट रही |अाज सांप्रदायिकता के जहर में मार मुझको घोल रहा,सम्मान को तु भूल ,मुझे कसाई को तू तोल रहाहे भारत! याद कर पूर्व किससे था समृद्ध