आभा
आभा- नाम तो दे दिया मुझे माता पिता ने- पर यह न सोचा कि मेरे नाम में , मेरी शक्ल सूरत में ज़मीन आसमान का फ़र्क है-
आंख का अंधा नाम नैन सुख वाली कहावत मुझपर शत प्रतिशत पूरी उतरती है! सांवला रंग सारी दुनिया को खटकता है यह बात समझने के लिए मुझे ज़्यादा देर नहीं लगी! मम्मी ,दादी को अक्सर बात करते सुना
"बच्ची प्यारी है ,नाक-नक्श ठीक हैं पर रंग ने धोखा दे दिया!पता नहीं बड़ी होते होते थोड़ा बहुत रंग निखरेगा या ऐसी ही रहेगी!क्या किस्मत लेकर आई है बेचारी!"
पापा को मेरे सांवलेपन से कुछ ख़ास मतलब न था!बस सारा दिन अपने काम में लगे रहते ,शाम को कभी जल्दी आते तो सर पर हाथ फेर कर ,ज़रा या पुचकार लेते,मैं खुश हो जाती! पता नहीं मम्मा ने कभी पापा से मेरे रंग पर कोई चर्चा की हो -पर मेहमानों से कभी तो मेरे स्कूल की सहेलियों की मम्मियों से कभी,मेरे रंग का इलाज कैसे किया जाए ज़रूर चर्चा का विषय होता था!
जैसे साँवला रंग न हुआ कोई बीमारी हो गई!आखिर वह सब शुभचिंतक थे न! और किसी का ध्यान इस ओर नहीं गया कि मैं उनकी बातें सुन रही हूं ,समझ रही हूं! उन्हें तो बस अपने अपने अनुभव की शेखी बघारनी थी ,अपनी धाक जमानी थी मम्मी पर -और मम्मी को लगा कि वह सभी उनकी शुभचिंतक हैं और उनकी बात मानना उनके और मेरे हित में होगा!
कभी उबटन कभी लेप,कभी कोई क्रीम आ जाती थी! और मुझे नफ़रत थी उन आंटियों से,उन क्रीम और उबटनों से..हर उस चीज़ से जो मुझे अपने सांवलेपन से जूझने को मजबूर करती!जो मुझे याद दिलाती कि साँवले रंग का होना दुष्कर्म से कम नहीं !
मुझे बाकी देशों का दुनिया भर का क्या मालूम..अपने सीमित दायरे में इतना समझ गई कि गोरा रंग पासपोर्ट है ज़िंदगी की खुशियों के लिए!चाहे आसपास के लोग,या स्कूल के संगी साथी,अपने टीचर्स - इन्टरव्यू हो या बोर्ड मीटिंग. कुछ भी,कुछ भी हो सुन्दर होने का अर्थ है गोरा होना- रूप लावण्य की कसौटी पर सांवले वर्ण की लड़कियां कभी खरी नहीं उतर सकतीं -
लड़कों का क्या-लड़के हैं, काफ़ी है! tall ,dark and handsome की जो तस्वीर बैठ गई थी लोगों में वह आज भी काफ़ी हद तक कायम है!वैसे पुरुष के लिए तो सौ गुनाह माफ़ हैं ही ,क़द या रंग या नाक नक्श को परे रख उसकी काबिलियत,उसकी नौकरी को तवज्जो देना आज भी मामूली बात है।पर लड़कियां चुनौतियों के घेरे में ऐसे घिर जाती हैं कि उन्हें निकलने के लिए अपनी हर ताकत को दांव पर लगाना पड़ता है!
मैं आठवीं कक्षा तक पहुंचते पहुचते,थक हार के ऐसी कगार पर पहुंच गई थी कि मुझे लगा मैं घर से भाग जाऊं और फिर कभी वापिस न आऊं..या जान ले लूं अपनी?किसी को परवाह नहीं है मेरी- फ़र्क किसे पड़ेगा-ढेर सारे विकल्प हैं मौत को गले लगाने के लिए! मरने का मन तो नहीं करता पर जीना भी तो कितना मुश्किल है!पापा समझने की कोशिश नहीं करते ,मामा नासमझ है उन्हें कैसे बताऊँ कि गोरे या काले रंग से नहीं गुण से असली पहचान बनती है! जो बात वो ख़ुद न समझ पाईं मुझे क्या समझातीं !
मुझे कहानियों पढ़ने का बहुत शौक था..घंटो बैठ कर उस दुनिया में विचरती जहां पर तरह तरह की कठिन से कठिन परिस्थितियों से जूझते-दर्द पीड़ा,असहनीय यातनाओं से गुज़रते,गुलामी की जज़ीरों में जकड़े स्त्री पुरुष की कहानियां -अविरल बहते आंसू , निरंतर अपमान सहते, कभी कुंठित ,कभी कलुषित, कभी क्रोध से फुंकारते हुए किरदारों को देखा ,जाना ,सुना और अपनाया ,मेरी ज़िंदगी में एक नया मोड़ आया!
असीम श्रद्धा और विनम्रता का अहसास- उन सभी लेखकों का जिन्होंने अपनी आपबीती हो या किसी और की ,हम तक पहुंचाई!
मैं जो अपने दुख दर्द को,अपनी उलझनों को पहाड़ सा मान बैठी थी...धीरे धीरे मुझे महसूस हुआ कि मैं इतनी जल्दी हिम्मत हार जाऊं यह नहीं हो सकता! हौसलों पर दुनिया कायम है और मुझे अपने हौसले बुलन्द करने होंगे!
ज़िन्दगी मिली है ,उसका मान रखना होगा! मुझे अपना मन अपनी पढ़ाई में लगाना होगा..कक्षा में अपनी जगह बनानी होगी! आत्मविश्वास को अपने जीवन का सबसे बढ़ा आधार बनाना होगा।
दोस्त मिलेंगे,हमसफ़र, हमराज़ मिलेंगे ,बस संकल्प चाहिए...माँ की सोच बदलेगी कभी,न भी बदली तो ग़म नहीं!मुझे जो ज़िंदगी मिली है उसकी गरिमा को बनाए रखना मेरी ज़िम्मेदारी है ,मेरा कर्तव्य है! साहित्य गवाह है हज़ारों हज़ारों किस्सों कहानियों का सच्चाइयों का-और यहीं से मिली एक और सीख कि अपने आसपास और बहुत लोग मिलेंगे जो निराश, निस्पृह,व्यथित हैं!उनको भी अपने साथ लेना होगा।उनका हमदर्द बनना होगा!
और मैं आभा,गवाह हूँ उनकी प्रेरणा का, प्रोत्साहन का!अब मुझे रंग रूप,जात पात ,धर्म की बेड़ियां बांध नहीं पाएंगी! इतनी संवेदनाओं को सोख लिया है कि छोटे मोटे तूफ़ान मुझे हिला न पाएंगे!
आज उम्र का वह पड़ाव पार कर चुकी हूँ,जब पीछे मुड़कर देखती हूं,तो गर्व होता है ..मुश्किल तो था पड़ाव, पर पार तो कर लिया..अब वक्त आ गया है आभार प्रकट करने का ..उस सारे साहित्य का ,किस्से कहानियों का जीवन के अनगिनत पहलुओं से परिचित कराने वाली किताबों का,उन लेखकों का...जिन्होंने मुझे हारने नहीं दिया!
आभा --अब यह नाम अच्छा लगने लगा है!