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हमसफ़र

9 नवम्बर 2021

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राहें थी जुदा , मंज़िलें न थीं तय अभी
आंखों में लिए सपने बेशुमार 
चले जा रहे थे अपनी अपनी धुन में -
आगन्तुक,अनजान एक दूजे से
मिले जिस मोड़ पर,न था जाना-पहचाना -
पर तक़दीर ने तो था मिलवाना
जिन दिलों को,उसमें कहां था उनका हाथ-

थे मन मे दोनों के अरमान हज़ारों,
आंखों में सपने अनगिनत 
जब  से बने  हमराह , हमसफ़र
लगा उन्हें, ज़िन्दगी की नाव
लग ही जाएगी किनारे अब डर कैसा
मांझी है संभाले हुए पतवार
चल निकल पड़ें, सपने करेंगे साकार -

महकते दिन रात, बहकते ,चहकते लम्हे  
उमड़ता प्यार , दिलकश वह साथ
खुशियां दुनिया भर की अपनी झोली में-
था कितना दिलनशीं ,कितना रंगीन
यह साथ,यह सफ़र,उमंग भरी इन राहों में
फक्र ख़ुद पर,अपनी किस्मत पर
ज़िंदगी हुई मुकम्मल प्यार भरी बाहों में

पर यह कैसा है माजरा कि आंख झपकते ही
सपनों की नगरी में हुई हलचल
हमसफ़र,हमराही ,हमराज़,रूठ गए एक दूजे से
ढहने लगे किले सपनों के, पल में   
एक छत के नीचे रहते ,जब दोनों के अहं टकराए
सच के अजीबोगरीब पहलू सामने आए
परिपक्वता हो जिस में ,बात ज़रूर समझ जाए 

नव दम्पति निकल तो पड़े जीवन के सफ़र पर
मगर समझ न पाए ,क्या बदल गया
हर  वह  अदा जो एक दूजे में लगती थी प्यारी 
चुभती है आज , जैसे कोई  कटारी
धीरे -धीरे आ जाती उदासीनता  की  बारी
एक दूजे को फूटी आंख न भाएं
पहले जो एक दूजे से अलग पलभर न रह पाएं

सच तो यह है कि पत्नी का था विश्वास सदा
कि उस पर जान छिड़कने वाले को,
बदल पाएगी एक दिन वह-थी नादानी उसकी
कौन है ऐसा पुरुष जो सहेगा यह आघात!
पत्नी रहे बन कर पत्नी ,पहचाने अपनी औकात-
बड़ी बड़ी बातें कितनी भी कर लें
दाम्पत्य जीवन में है बस पुरुष का ही चलता राज

पतिदेव ने चाहा,और यह सोचा कि पत्नी उनकी
रहेगी सदा खूबसूरत, पहले सी
चुलबुली, शोख ,हंसती खिलखिलाती सालों साल
घर-गृहस्थी ,परिवार,चूल्हा-चौका संभाल-
साथ उसके निकले सज संवर कर जब वह चाहे!
नज़र उसकी इधर उधर  करे तलाश 
उस युवती  को जो खो गई गृहस्थी के झमेलों मे!

       न पति को पत्नी  बदल पाई,
            न पत्नी खरी उतरी
           पति की कसौटी पर
    सच्चे हमसफ़र दोनों ही न बन पाए
        राही फिर से हैं तलाश रहे
            एक नया  हमसफ़र 
  
      




          

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