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काफ़िला

17 सितम्बर 2021

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काफ़िला

काफ़िला ज़िन्दगी का
आगे बढ़ता जाए,बढ़ता ही जाए
न रुकने दे न थमने दे
न सांस लेने की मोहलत दे

जानी अनजानी राहों पर चलना पड़े
चलते ही रहना पडे
रिश्तों को निभाते हुए
उलझनों से उलझते हुए

ऊबड़ खाबड़ रास्तों पर भी
निकल पड़े हंसी खुशी
कभी रोते सिसकते पिछुड़ भी गए
थक हार कर सिकुड़ भी गए

लाखों की तादाद में जुड़ते गए
लोग इस काफ़िले से
अपनी मर्ज़ी से तो शायद ही
कोई जुड़ा हो इस काफ़िले से

सांस की डोरी टूटी तो क्या
लड़खड़ा कर गिर पड़े तो क्या
कुछ आगे बढ़ गए तो क्या
कुछ पीछे रह गए तो क्या

कुछ टूट गए तो क्या
कुछ जुड़ गए तो क्या
कुछ लड़खड़ा कर संभल गए तो क्या
कुछ संभल न भी पाए तो क्या

काफ़िला क्यों रुके,काफ़िला क्यों थमे
आगे बढ़ना उसका काम
तुझसे मुझसे उसका क्या लेना देना
न रुका था न रुकेगा कभी यह काफ़िला

सच को पहचानें हम
आए यहां अकेले,जाएंगे अकेले
काफ़िले के हिस्से तो हैं हम
पर हैं अकेले

जब से यह सच
मन में घर कर गया
दिल से मानो
एक भारी बोझ उतर गया ।।

...................
...................

माना काफ़िला ज़िन्दगी का,
आगे बढ़ता जाए,बढ़ता ही जाए
न रुकने दे न थमने दे
न सांस लेने की मोहलत दे

माना रुकेगा नहीं यह काफ़िला
माना अपनी औक़ात है बूंद बराबर
बहुत कम है अपने बस में
फिरभी,बूंद बिना समुन्दर कहां
हमारे बिना काफ़िला कहां?

जब से होश संभाला
सवाल उठता ही रहा मन में
अगर कुछ भी बस में अपने नहीं
तो क्या हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें?

होता है जो होने दो कह कर
अपनी हस्ती को नकार दें
छोटी ही सही यह हस्ती
पर इतनी भी नहीं सस्ती
कि इसे दुत्कार दें।

ज़िन्दगी मिली है तक़दीर से
बुलन्द करें इस तक़दीर को
ख़ुद को बेबस क्यों समझें
खुद ही खड़ी करें अपनी बुनियाद

तंगदिलियों से न हो कोई वास्ता
औदार्य बने दायरा अपना
आह किसी की छू जाए
हाथ हमारा आगे बढ़ जाए
देने उसे सहारा

पीड़ा का संचार बना रहे
दर्द के रिश्ते जुड़ते रहें
सुख दुख बंटते रहें
बांध सकें हम सारी दुनिया को
एक उदार बंधन में

हम छोटी सी एक बूंद सही
छोटी सी अपनी औक़ात सही
पर बसी है इस बूंद मे वह शक्ति
जो जोड़ सके और जुड़ सके हर बूंद से
जो लीन हो जाए सागर में

हम काफ़िले का छोटा सा हिस्सा ही सही
पर काफ़िला बना तो हमीं से है
अब काफ़िला रुके न रुके कोई ग़म नहीं
अब काफ़िला चलता ही रहे,कोई ग़म नहीं।।


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