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पुनर्जन्म..

22 नवम्बर 2021

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      पुनर्जन्म का तो मालूम नहीं
       इस जन्म का लेखा जोखा
      काफ़ी मुझ नाचीज़ के लिए

     सब ने ढूंढी अपनी अपनी राह
     मैं भी उसी ज़िंदगी का हिस्सा
       पाना चाहूं जीवन की थाह

देखे होंगे औरों ने, जन्म मरण के आगे
    होगा क्या, किस भट्टी में सुलगेंगे
कहां ले जाएंगे हमें अपने कर्म के धागे

   मंद बुद्धि ही सही, नादां ही सही
  मगर इस दुनिया से नाता है काफ़ी
    यहीं शुरू यहीं ख़तम मेरी बही

इस दुनिया में रहकर इस दुनिया की होकर
  रहना चाहूँ मैं - सब को मान सकूं अपना
कल्मष,क्लेश,दोष,द्वेष को सदा के लिए धोकर

मेरी ख़ुशियां जुड़ी रहें औरों की खुशियों से
  मेरा अहं न आए आड़े मेरी संवेदनाओं के
पाऊं छुटकारा 'मैं'और 'मेरा' कि प्रवृति से

          यह जन्म हो जाए सार्थक,
      कर पाऊं औरों का,अपना ,उद्धार
        इस जन्म के आगे का फाटक
     खुले न खुले,न ही जीत न ही हार
         क्या लेना मुझे पुनर्जन्म से
    अपना नाता इस जीवन से लूं संवार
      बाकी ख़ुद ब ख़ुद संवर जाएगा
  इस जन्म के आगे पीछे किसने है देखा
       बस,इस जन्म को पाऊँ संवार
   नहीं मुझे और किसी दर्शन की दरकार


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