"आह्वान"
गर मैं होती एक कवयित्री
कर देती रचना इस छवि की
कैसा सुन्दर मनभावन सावन
करता जैसे मन का आह्वान
ठंडी ठंडी चली पुरवैया
डोल न जाए मेरी नैया
मैं निहारुँ इस छवि को
रोक न पाऊँ अपने मन को
फूल खिले हैं गुलशन गुलशन
नाच उठा है मेरा मन
नंदन वन में विचरण करता
गगन चूमता मेरा मन
मधुबन में मयूर नृत्य करते
और हिरन कुलांचे भरते
पक्षी कलरव से आकाश गुँजाते
मानो वे सब यह कहना चाहते
कैसा सुन्दर मनभावन सावन
करता जैसे मन का आह्वान
(मेरी सबसे पहली कविता,
यह मैंने तब लिखी थी,जब मैं आठवीं कक्षा की छात्रा थी)